नागरिकों के मूल अधिकारों के हनन पर कोर्ट मूकदर्शक नहीं रह सकता : सुप्रीम कोर्ट
नागरिकों के मूल अधिकारों के हनन पर कोर्ट मूकदर्शक नहीं रह सकता : सुप्रीम कोर्ट
नई दिल्ली:
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पॉलिसी द्वारा नागरिकों के मूल अधिकारों के हनन पर कोर्ट मूकदर्शक नहीं रह सकता. कोर्ट ने कहा- शक्तियों का बंटवारा , संविधान के मुख ढांचे का हिस्सा है. पॉलिसी बनना , Executive का काम है, न्यायपालिका का नहीं . लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि कोर्ट न्यायिक समीक्षा नहीं कर सकता. जब किसी पॉलिसी से नागरिकों के मूल अधिकारों का हनन हो रहा हो, तो कोर्ट महज मूकदर्शक नहीं रहता, हमारे संविधान में कोर्ट की ऐसी स्थिति में मूकदर्शक की भूमिका में रहने की कल्पना नहीं की गई है. किसी भी पॉलिसी को संवैधानिक कसौटी पर परखना कोर्ट का दायित्व है. इसके अलावा कोर्ट ने कहा है कि कोविन ऐप पर रजिस्ट्रेशन होने से ग्रामीण क्षेत्र के और कमज़ोर तबके के लोगों की अपनी दिक्कते हैं. भारत में अभी डिजिटल डिवाइड है.बड़ी संख्या में लोगों को इंटरनेट उपलब्ध नहीं है. लोगों को कोविन ऐप पर स्लॉट बुक करने में भी लोगों को दिक्कत आ रही है. ऐप बनाने वालों ने नेत्रहीन लोगों के बारे में भी पूरी तरह विचार नहीं किया.
सेंट्रल विस्टा परियोजना के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका पड़ी
केंद्र सरकार की सेंट्रल विस्टा परियोजना (Central Vista Project) के निर्माण कार्य को जारी रखने की अनुमति देते हुए दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) ने हाल ही में कहा था कि यह एक अहम और आवश्यक राष्ट्रीय परियोजना है. वहीं, अब दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में चुनौती दी गई है. सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में प्रदीप कुमार नाम के एक शख्स ने याचिका दायर की है. हालाकि प्रदीप कुमार दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court में याचिकाकर्ता नहीं थे. प्रदीप यादव ने यह अर्जी दाखिल करते हुए सुप्रीम कोर्ट से दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) के फैसले की समीक्षा की मांग की है.
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सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में दाखिल अर्जी में कहा गया कि देश कोरोना संक्रमण से अभी उबर नहीं पाया है. छोटी और बड़ी दुकानें बंद हैं. लिहाजा सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट को कुछ समय के लिए रोक देना चाहिए. दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) ने सेंट्रल विस्टा को राष्ट्रीय महत्व की परियोजना बताते हुए काम स्थगित करने से इंकार कर दिया था. इसके साथ ही दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) ने याचिकाकर्ता की मंशा पर सवाल उठाते हुए 1 लाख का जुर्माना भी लगाया था.
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