सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने कहा कि जलाशयों का सौदा उद्योगपतियों के साथ नहीं किया जा सकता. जलाशय ग्रामीण आबादी और स्थानीय वनस्पतियों व जीवों के लिए जीवनयापन का जरिया होते हैं. सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने यह बातें 2016 में उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा ग्रेटर नोएडा इलाके के तालाब और नहर को एक निजी कंपनी को देने के निर्णय पर कही.
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कोर्ट ने यह फैसला ग्रेटर नोएडा निवासी जितेंद्र सिंह की याचिका पर दिया. जस्टिस अरुण मिश्रा और जस्टिस सूर्यकांत की पीठ ने यह फैसला सुनाया. उन्होंने कहा कि जलाशय खासतौर पर मत्स्य पालन और पीने के पानी का महत्वपूर्ण स्रोत है. इस देश में कई क्षेत्रों में जल संकट है. अधिकतर भारतीयों के लिए न तो पीने का साफ पानी है और जो है वह पर्याप्त नहीं है.
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ऐसे में बहुमूल्य सामुदायिक संसाधनों को कुछ लोगों को सौंप देना गैरकानूनी है. पीठ ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत ग्रामीण समुदाय द्वारा सामूहिक रूप से इस्तेमाल की जाने वाली इस तरह की चीजों का संरक्षण आवश्यक है. यह लोगों के मौलिक अधिकार से जुड़ा मामला है.
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पीठ ने कहा कि राज्य सरकार द्वारा उद्योगपतियों को जलाशय सौंपने के निर्णय को सही ठहराने की कोशिश संवैधानिक भावनाओं के विपरीत है. पीठ ने कहा कि झील या जलाशय को नष्ट करने से आसपास की वनस्पति नष्ट हो जाएगी.
साथ ही क्षेत्र में पहले से व्याप्त भूजल स्तर की समस्या और बढ़ जाएगी. कोर्ट ने यह भी पाया कि झील के आसपास रहने वाले लोगों को वैकल्पिक रास्ते पर जाने के लिए मजबूर होना पड़ेगा और लोगों के लिए तीन किलोमीटर तक बढ़ जाएगी.
Source : न्यूज स्टेट ब्यूरो