समलैगिंकता को अपराध करार देने वाली धारा 377 के खिलाफ याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला रखा सुरक्षित

मंगलवार को हुई सुनवाई के दौरान जजों की टिप्पणियों से साफ संकेत मिल रहा है कि कोर्ट समलैंगिकता को अपराध के दायरे से बाहर रखने का पक्षधर है।

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Deepak Kumar
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समलैगिंकता को अपराध करार देने वाली धारा 377 के खिलाफ याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला रखा सुरक्षित

सुप्रीम कोर्ट ने फैसला रखा सुरक्षित

समलैगिंकता को अपराध करार देने वाली IPC 377 के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया है। इसके साथ ही कोर्ट ने 20 जुलाई तक सभी संबंधित पक्षों से कहा कि वे समलैंगिकता मामले में अपने दावों के समर्थन में लिखित में दलीलें पेश करें।

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हालांकि मंगलवार को हुई सुनवाई के दौरान जजों की टिप्पणियों से साफ संकेत मिल रहा है कि कोर्ट समलैंगिकता को अपराध के दायरे से बाहर रखने का पक्षधर है।

सुनवाई के दौरान जस्टिस रोहिंटन नरीमन ने कहा कि अगर कोई कानून मूल अधिकारों  के खिलाफ है, तो हम इसका इंतजार नहीं करेंगे कि बहुमत की सरकार इसे रद्द कर दे। हम जैसे ही आश्वस्त हो जायेगे कि कानून मूल अधिकारों के खिलाफ है, हम ख़ुद फैसला लेंगे, सरकार पर नहीं छोड़ेंगे।

जस्टिस नरीमन ने कहा कि अगर वेश्यावृति को कानूनन अनुमति दे दी जाती है तो इसमे शामिल लोगो को स्वास्थय सेवा दी जा सकती है। लेकिन अगर वेश्यावृति को अवैध करार देकर छिपा कर रखा जाए तो कई तरह की दिक्कते सामने आती है।

जस्टिस चंद्रचूड़ ने इस बात पर असहमति जताई कि IPC 377 को रद्द करना एड्स जैसी बीमारियों को बढ़ावा देगा। उन्होनें कहा कि बल्कि समलैंगिक सम्बन्धों को कानूनी मान्यता पब्लिक हेल्थ सेक्टर में जागरूकता लाएगी।

सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस ने साफ किया अगर हम समलैंगिकता को अपराध के दायरे से बाहर भी करते हैं, तब भी किसी से जबरन समलैंगिक संबंध बनाना अपराध ही रहेगा।

सुनवाई के दौरान ईसाई समुदाय के तरफ से वकील मनोज जॉर्ज ने कहा कि समलैंगिकता अप्राकृतिक है। सेक्स का मकसद सिर्फ बच्चा पैदा करने के लिए होता है।

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Source : News Nation Bureau

Section 377 Supreme Court homosexuality IPC SC
      
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