भीमा कोरेगांव हिंसा: SC ने आरोपी आनंद तेलतुंबे के खिलाफ FIR रद्द करने से किया इंकार
सुप्रीम कोर्ट ने भीमा कोरेगांव हिंसा मामले के आरोपी आनंद तेलतुंबे के खिलाफ FIR रद्द करने से इंकार कर दिया. हालांकि कोर्ट ने तेलतुंबे को अगले 4 हफ्ते तक के लिए गिरफ्तारी से अंतरिम राहत दे दी है.
नई दिल्ली:
सुप्रीम कोर्ट ने भीमा कोरेगांव हिंसा मामले के आरोपी आनंद तेलतुंबे के खिलाफ FIR रद्द करने से इंकार कर दिया. हालांकि कोर्ट ने तेलतुंबे को अगले 4 हफ्ते तक के लिए गिरफ्तारी से अंतरिम राहत दे दी है. मुख्य न्यायाधीश रंजन गगोई ने कहा, 'मामले की जांच लगातार विस्तृत होती जा रही है. ऐसे में हम अभी इसमें बाधा नहीं डाल सकते.' पुणे पुलिस के मुताबिक़ आनंद तेलतुंबे के माओवादियों से तार जुड़े हैं और इसी आरोप में उनके ख़िलाफ़ केस दर्ज़ किया गया है.
आनंद तेलतुंबड़े के भाई मिलिंद तेलतुंबड़े प्रतिबंधित पार्टी भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) के वरिष्ठ सदस्य हैं. इसके साथ ही आनंद दलित विचारक भी माने जाते हैं.
Supreme Court refuses to quash FIR against Anand Teltumbde, one of the accused in the Bhima Koregaon case. However, SC grants him four weeks protection to obtain bail. CJI says, "Investigation is getting bigger & bigger. At this stage quashing of the proceedings is uncalled for"
— ANI (@ANI) January 14, 2019
बता दें कि पुणे पुलिस ने जून में माओवादियों के साथ कथित संपर्कों को लेकर वकील सुरेंद्र गाडलिंग, नागपुर विश्वविद्यालय की प्रोफेसर शोमा सेन, दलित कार्यकर्ता सुधीर धवले, कार्यकर्ता महेश राउत और केरल निवासी रोना विल्सन को जून में गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम (UAPA) के तहत गिरफ्तार किया था.
पुणे में साल 2017 के 31 दिसंबर को एलगार परिषद सम्मेलन के सिलसिले में इन कार्यकर्ताओं के दफ्तरों और घरों पर छापेमारी के बाद यह गिरफ्तारी हुई थी. पुलिस का दावा था कि इसकी वजह से अगले दिन भीमा-कोरेगांव हिंसा हुई.
एलगार परिषद सम्मेलन का इतिहास
गौरतलब है कि अंग्रेजों और मराठों के बीच हुए तीसरे ऐतिहासिक युद्ध की बरसी की याद में होने वाले समारोह में लोग यहां एकत्र होते हैं. यह युद्ध सबल अंग्रेजी सेना के 834 सैनिकों और पेशवा बाजीराव द्वितीय की मजबूत सेना के 28,000 जवानों के बीच हुई थी जिसमें मराठा सेना पराजित हो गई थी. अंग्रेजों की सेना में ज्यादातर दलित महार समुदाय के लोग शामिल थे.
अंग्रेजों ने बाद में वहां विजय-स्तंभ बनवाया था. दलित जातियों के लोग इसे ऊंची जातियों पर अपनी विजय के प्रतीक मानते हैं और यहां नए साल पर 1 जनवरी को पिछले 200 साल से सालाना समारोह आयोजित होता है.
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