सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बांड योजना पर अंतरिम रोक लगाने से किया इनकार, 10 अप्रैल को अगली सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता एनजीओ से कहा कि वह इसके लिए उचित अर्जी दाखिल करे
नई दिल्ली:
सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने राजनीतिक दलों को चंदा देने के मामले पर केंद्र सरकार की चुनावी बांड योजना पर अंतरिम रोक लगाने से शुक्रवार को इनकार कर दिया है. हालांकि कोर्ट ने याचिकाकर्ता एनजीओ से कहा कि वह इसके लिए उचित अर्जी दाखिल करे. अब इस मामले में अगली सुनवाई 10 अप्रैल को होगी.
चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की पीठ ने कहा कि इस मुद्दे पर विस्तार से सुनवाई करने की आवश्यकता है. पीठ ने एनजीओ एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स की ओर से उपस्थित वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण से कहा, 'अंतरिम रोक के लिए आपने उचित आवेदन नहीं दाखिल किया है. हम 10 अप्रैल को मामले पर विचार करेंगे.'
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एक स्वयंसेवी संगठन एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) ने इस मामले में याचिका दायर की है. याचिककर्ता की तरफ से पेश हुए वकील प्रशांत भूषण ने आरोप लगाया कि राजनीतिक दलों को गुमनाम ढंग से हजारों करोड़ रुपये का चंदा दिया जा रहा है और इन बांड्स का 95 फीसदी सत्तारूढ़ दल को दिया गया है.
इसके बाद सुप्रीम कोर्ट में केंद्र का पक्ष रखते हुए अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने कहा कि चुनावी बांड योजना को इसलिए लाया गया था ताकि राजनीतिक दलों को मिलने वाले कालेधन के प्रवाह को रोक जा सके. उन्होंने कहा कि भूषण चुनावी भाषण दे रहे हैं. इस पर अदालत ने हल्के फुल्के ढंग से कहा, 'यह चुनाव का समय है. हम इस मामले की सुनवाई 10 अप्रैल को करेंगे.'
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एडीआर की याचिका में चुनावी बांड योजना 2018 पर रोक लगाने की मांग की गई है. केंद्र ने गतवर्ष जनवरी में इसे अधिसूचित किया था. इसमें कहा गया है कि संबंधित अधिनियमों में किए गए संशोधनों ने 'राजनीतिक दलों के लिए असीमित कॉरपोरेट चंदों और भारतीय एवं विदेशी कंपनियों के गुमनाम ढंग से चंदा देने का रास्ता साफ कर दिया है, जिसके भारतीय लोकतंत्र के लिए गंभीर परिणाम हो सकते हैं.' यह मामला केंद्र और चुनाव आयोग के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इसमें दोनों ने विपरीत रुख अपनाया है.
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केंद्र ने यह कहते हुए इसे न्यायोचित ठहराया है कि इससे राजनीतिक चंदा में पारदर्शिता को बढ़ावा मिलेगा, जबकि आयोग का मानना है कि कानून में किए गए बदलावों के गंभीर परिणाम होंगे. केंद्र ने कहा है कि बांड को दो जनवरी 2018 को लाया गया था ताकि राजनीतिक दलों को कोष जमा करने और चंदे लेने के काम में पारदर्शिता आ सके और इन्हें योग्य राजनीतिक दल केवल अपने आधिकारिक बैंक खाते के माध्यम से भुना सकते हैं.
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इसमें कहा गया है कि बांड पर चंदा देने वाले और प्राप्तकर्ता राजनीतिक दल का नाम अंकित नहीं होता. इसमें केवल अल्फान्यूमेरिक क्रम संख्या होती है, जिसे सुरक्षा के लिए बनाया गया है. केंद्र ने कहा है कि जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 29ए के तहत पंजीकृत दल और लोकसभा अथवा विधानसभा के बीते चुनावों में कम से कम एक प्रतिशत मत पाने वाले दल ही ये बांड स्वीकार करने के योग्य होंगे.
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27 मार्च को चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया था कि उसने केंद्र को लिखित में कहा है कि राजनीतिक कोष एकत्रीकरण के संबंध में कई कानूनों में बदलाव का पारदर्शिता पर गंभीर दुष्प्रभाव पड़ेगा.
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