सुप्रीम कोर्ट ने धारा 377 की सुनवाई को स्थगित करने वाली केंद्र सरकार की याचिका को ठुकरा दिया है। इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट की बेंच मंगलवार से सुनवाई करेगी।
सोमवार को केंद्र की याचिका पर सुनवाई करते हुए चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने अतिरिक्त समय देने से इंकार करते हुए कहा कि सुनवाई टाली नहीं जाएगी।
बता दें कि केंद्र सरकरा ने धारा 377 की सुनवाई को लेकर केंद्र ने कुछ और समय मांगा था।
केंद्र ने याचिका में कहा था कि इस मामले में सरकार को हलफनामा दाखिल करना है जो इस केस में महत्वपूर्ण हो सकता है। इस कारण केस की सुनवाई चार हफ्ते के लिए टाल दी जाए।
इससे पहले, चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने भारतीय दंड संहिता की धारा 377 को बरकरार रखने वाले अपने पहले के आदेश पर पुनर्विचार करने का निर्णय लिया था।
जस्टिस मिश्रा ने कहा था, 'हमारे पहले के आदेश पर पुनर्विचार किए जाने की जरूरत है'।
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केंद्र ने मामले के संबंध में जवाब दाखिल करने के लिए अदालत से समय मांगा, जिसके बाद प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति ए.एम. खानविलकर और न्यायमूर्ति डी.वाई. चंद्रचूड़ ने मामले को स्थगित करने से इंकार कर दिया।
न्यायालय ने कहा कि मामला कुछ समय से लंबित पड़ा हुआ है और केंद्र को अपना जवाब दाखिल करना चाहिए। इसके साथ ही अदालत ने कहा, "हम प्रस्तावित सुनवाई करेंगे। हम इसे स्थगित नहीं करेंगे। आप सुनवाई के दौरान कुछ भी दाखिल कर सकते हैं।"
मामले की सुनवाई के लिए सर्वोच्च न्यायालय के पांच न्यायाधीशों की नई संविधान पीठ गठित की गई है।
न्यायमूर्ति रोहिंटन फली नरीमन और न्यायमूर्ति इंदु मल्होत्रा अब प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति ए.एम. खानविलकर और न्यायमूर्ति डी.वाई. चंद्रचूड़ के साथ मामले की सुनवाई करेंगे। ये दोनों न्यायमूर्ति ए.के.सीकरी और न्यायमूर्ति अशोक भूषण का स्थान लेंगे।
इससे पहले सर्वोच्च न्यायालय ने 2013 में समलैंगिक सैक्स को दोबारा गैर कानूनी बनाए जाने के पक्ष में फैसला दिया था, जिसके बाद कई प्रसिद्ध नागरिकों और एनजीओ नाज फाउंडेशन ने इस फैसले को चुनौती दी थी। इन याचिकाओं को सर्वोच्च न्यायालय ने संविधान पीठ के पास भेज दिया था।
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शीर्ष न्यायालय ने आठ जनवरी को कहा था कि वह धारा 377 पर दिए फैसले की दोबारा समीक्षा करेगा और कहा था कि यदि 'समाज के कुछ लोग अपनी इच्छानुसार साथ रहना चाहते हैं, तो उन्हें डर के माहौल में नहीं रहना चाहिए।'
सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले में 2013 में दिए अपने फैसले में दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा दो जुलाई, 2009 को दिए फैसले को खारिज कर दिया था। दिल्ली उच्च न्यायालय ने समलैंगिक सैक्स को अपराध की श्रेणी से बाहर करने के पक्ष में फैसला सुनाया था।
अदालत ने यह आदेश 12 अलग-अलग याचिकाकर्ताओं की याचिकाओं पर दिया था, जिसमें कहा गया है कि आईपीसी की धारा 377 अनुच्छेद 21 (जीने का अधिकार) और अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) का उल्लंघन है।
इन याचिकाकर्ताओं में सेलिब्रिटीज, आईआईटी के छात्र और एलजीबीटी एक्टिविस्ट हैं।
आपको बता दें कि धारा-377 का निर्माण 1862 में अंग्रेजों के द्वारा लागू किया था। इस कानून के तहत अप्राकृतिक यौन संबंध को गैरकानूनी ठहराया गया है। अगर कोई स्त्री-पुरुष आपसी सहमति से भी अप्राकृतिक यौन संबंध बनाते हैं तो इस धारा के तहत 10 साल की सजा व जुर्माने का प्रावधान है।
किसी जानवर के साथ यौन संबंध बनाने पर इस कानून के तहत उम्र कैद या 10 साल की सजा एवं जुर्माने का प्रावधान है। इस धारा के अंतर्गत गिरफ्तारी के लिए किसी प्रकार के वारंट की जरूरत नहीं होती है।
गौरतलब है कि धारा-377 एक गैर-जमानती अपराध है।
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Source : News Nation Bureau