आधार मामले में सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि उसने कभी भी मोबाइल नंबर से आधार को जोड़ने का निर्देश नहीं दिया है।
पिछले लंबे वक्त से कई उपभोक्ता कंपनियां उपभोक्ताओं से मोबाइल नंबरों से आधार को जोड़ने का दबाव बना रही हैं। ऐसे वक्त में सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी बहुत महत्वपूर्ण है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सरकार ने जो आदेश दिया था उसकी गलत व्याख्या की गई है।
चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के नेतृत्व में सुनवाई कर रही पांच जजों की बेंच ने कहा, 'असल में उच्चतम न्यायालय ने ऐसा कोई निर्देश नहीं दिया। लेकिन सरकार ने इसे मोबाइल नंबर की अनिवार्यता के औजार के रूप में इस्तेमाल किया।'
बता दें कि पांच जजों की बेंच में जस्टिस एके सिकरी, जस्टिस एएन खानविलकर, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एके भूषण शामिल हैं।
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वहीं भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (UIDAI) की ओर वकील राकेश द्विवेदी ने कोर्ट के सामने दलील पेश करते हुए कहा कि दूरसंचार विभाग की अधिसूचना ई केवाईसी प्रक्रिया के अनुसार फिर से पहचान सत्यापन की बात करती है।
इतना ही नहीं राकेश द्विवेदी ने बेंच से कहा टेलीग्राफ कानून सेवाप्रदाताओं की लाइसेंस स्थितियों पर फैसले के लिए केंद्र सरकार को विशेष शक्तियां देता है। इस पर संवैधानिक पीठ ने कहा, 'आप कैसे उपभोक्ताओं के सामने मोबाइल फोन से आधार को जोड़ने की शर्त रख सकते हो।'
पीठ ने कहा कि यह समझौता सरकार और कंपनियों के बीच है। वहीं राकेश द्विवेदी ने फिर बेंच से कहा कि आधार जोड़ने का निर्देश ट्राई की सिफारिशों के संदर्भ में दिया गया था। उन्होंने कहा कि यह सनिश्चित हो जाना कि सिम कार्ड उन्ही को दिए गए हैं जिन्होंने इसके लिए अप्लाई किया है, राष्ट्र के हित में है।
दरअसल यह सुनवाई आधार और इसके 2016 के एक कानून को चुनौती देने वाली याचिका पर हो रही है।
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Source : News Nation Bureau