सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को दिल्ली पुलिस को 20 वर्षीय एक युवती को सुरक्षा देने का निर्देश दिया, जिसने आरोप लगाया था कि उसे अपने परिवार के सदस्यों से जान का खतरा है।
न्यायमूर्ति बेला एम. त्रिवेदी और न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा की अवकाशकालीन पीठ ने शुरू में युवती से वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए बातचीत की और उसे अदालत में व्यक्तिगत रूप से पेश होने की अनुमति दी।
युवती ने दावा किया कि वह अपने घर से भाग गई थी और उसे अपने परिवार के सदस्यों से जान का खतरा है। अदालत के सामने पेश होकर उसने कहा कि उसका भाई उसका पीछा कर रहा है और उसे उसकी मर्जी के खिलाफ घर लौटने के लिए मजबूर किया जाएगा। उसने कहा कि वह वाराणसी में रहती है। उसने अदालत से सुरक्षा प्रदान करने का आग्रह किया।
शीर्ष अदालत मध्यप्रदेश हाईकोर्ट के उस आदेश के खिलाफ याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें युवती के अपहरण के आरोपी व्यक्ति की अग्रिम जमानत रद्द कर दी गई थी। युवती ने अदालत को सूचित किया कि वह वाराणसी लौटना चाहती है।
शीर्ष अदालत ने कहा कि हाईकोर्ट ने अपहरण के आरोपी व्यक्ति की अग्रिम जमानत यह जानने के बाद रद्द कर दी थी कि वह जांच में सहयोग नहीं कर रहा था और जब उसकी मौजूदगी की मांग की गई तो उसने जांच अधिकारी को जवाब नहीं दिया।
दलीलें सुनने के बाद पीठ ने कहा कि वह हाईकोर्ट के आदेश में हस्तक्षेप करने को तैयार नहीं है। पीठ ने याचिकाकर्ता को दो दिनों के भीतर पुलिस के समक्ष आत्मसमर्पण करने का निर्देश दिया। पीठ ने नई दिल्ली में तिलक मार्ग के एसएचओ को युवती को सुरक्षा देने और मंगलवार को ही उसके वाराणसी लौटने की व्यवस्था करने का निर्देश दिया।
शीर्ष अदालत ने स्पष्ट किया कि याचिकाकर्ता कानून के तहत अनुमेय जमानत की मांग कर सकता है और संबंधित अदालत को वर्तमान आदेश में की गई टिप्पणियों से प्रभावित हुए बिना यथासंभव शीघ्र निर्णय लेना चाहिए।
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Source : IANS