कार्यस्थलों पर महिलाओं का यौन-उत्पीड़न रोकन के लिए 2013 में बने कानून को समुचित ढंग से लागू करने की मांग करते हुए एक याचिका दायर की गई थी।
इस पर सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र व राज्य सरकारों और संघ शासित प्रदेशों के प्रशासनों को नोटिस भेजा है।
सर्वोच्च न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायाधीश ए.एम.खानविलकर और न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ ने एनजीओ की ओर से दाखिल याचिका पर केंद्र और राज्यों को नोटिस भेजा।
बतौर न्यासी पल्लवी पारिख और ईश शेख के प्रतिनिधित्व वाले गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ) की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता संजय पारिख ने अदालत को बताया कि कार्यस्थल पर यौन-उत्पीड़न रोकने के लिए कानून के तहत प्रदान की गई प्रकिया पूर्ण रूप से नहीं बनाई गई है।
उन्होंने बताया कि कानून को लागू करने के लिए जरूरी पूरी संरचना के तहत चाहे सरकारी निकाय हो या निजी संस्था, प्रत्येक संगठन में आंतरिक शिकायत कमेटी, स्थानीय शिकायत कमेटी (एलसीसी) का प्रावधान है। साथ ही, कानून के तहत शक्तियों के प्रयोग के लिए बतौर जिला अधिकारी जिला दंडाधिकारी का पद और नोडल अधिकारी की नियुक्ति का भी प्रावधान है।
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शिकायत प्राप्त करने और उसे संबद्ध एलसीसी को अग्रसारित करने के लिए 2013 के अधिनियम में ग्रामीण व जनजातीय इलाकों में प्रत्येक ब्लॉक, तालुका और तहसील और शहरी क्षेत्र में वार्ड या नगरपालिका में नोडल अधिकारी की नियुक्ति का प्रावधान है।
पारिख ने बताया कि संसद में विधेयक को पारित हुए चार साल बीत जाने के बाद भी पूरी संरचना, जिसे कार्यरूप में आ जाना चाहिए, अब तक अमलीजामा नहीं पहनाया गया है।
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Source : IANS