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चुनावी 'फ्री' वादे पर SC सख्त, केंद्र-ECI को नोटिस देकर 4 हफ्ते में मांगा जवाब

चुनाव से पहले वोटरों को लुभाने के लिए मुफ्त उपहार बांटने और गैरवाजिब वादे करने वाले पार्टियों की मान्यता रद्द करने की मांग की.

Updated on: 25 Jan 2022, 03:30 PM

highlights

  • गैरवाजिब वादे करने वाली पार्टियों की मान्यता रद्द करने की मांग की
  • बीते हफ्ते सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दाखिल की गई थी

नई दिल्ली:

चुनाव आते ही राजनीति पार्टियां आम लोगों से बड़े वादे कर वोट बटोरने का काम करती हैं. ये वादे मुफ्त सुविधाओं को बांटने के लिए होते हैं. अब सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) इस पर सख्त हो गया है. देश की सबसे बड़ी अदालत ने आज इसे लेकर केंद्र सरकार (Centre) और चुनाव आयोग (Election Commission of India) को नोटिस जारी किया है और चार हफ्ते में जवाब मांगा.  चुनाव से पहले वोटरों को लुभाने के लिए मुफ्त उपहार बांटने और गैरवाजिब वादे करने वाली पार्टियों की मान्यता रद्द करने की अश्विनी उपाधयाय की मांग पर SC में सुनवाई हुई. कोर्ट ने माना कि ये संजीदा मसला है. चुनाव को प्रभावित करता है लेकिन अदालत के दखल का दायरा बहुत सीमित है. हमने चुनाव आयोग गाइडलाइंस बनाने को कहा लेकिन इलेक्शन कमीशन ने महज एक मीटिंग की. उसका नतीजा क्या रहा, ये पता नहीं.

बीते हफ्ते सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दाखिल की गई थी, जिसमें ऐसे राजनीतिक दलों के रजिस्ट्रेशन रद्द करने और उनके चुनाव चिंह जब्त करने की मांग  की गई है, जो मतदाताओं को मुफ्त में सुविधाएं देने के लुभावने वादे करते हैं. इस याचिका में कहा गया है कि राजनीतिक लाभ लेने के लिए पब्लिक फंड से चुनाव से पहले वोटरों को लुभाने के लिए मुफ्त उपहार देने का वादा करने या मुफ्त उपहार बांटना स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के खिलाफ होता है. यह मतदातों को प्रभावित करता है. इससे चुनाव प्रक्रिया प्रदूषित होती है. 

याचिकाकर्ता के अनुसार इससे चुनाव मैदान में एक समान अवसर के सिद्धांत प्रभावित होते हैं. सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस जारी कर जनता के पैसे से मुफ्त में चीजें या सुविधाएं देने का चुनावी वादा करने वाली राजनीतिक पार्टियों के खिलाफ कार्रवाई करने और  गाइडलाइंस जारी करने को कहा है.

बंद हो सकती है पार्टी

सुप्रीम कोर्ट की नोटिस के अनुसार केंद्र सरकार और चुनाव आयोग को यह तय करना होगा कि जो राजनीतिक पार्टियां चुनाव के दौरान जनता के पैसे से यानी पब्लिक फंड से मुफ्त घोषणाएं कर रही हैं, उनके खिलाफ कार्रवाई को लेकर गाइडलाइंस तय हों. मुफ्त घोषणाएं करने वाली पार्टियों का रजिस्ट्रेश रद्द किया जा सकता है. उनका चुनावी चिन्ह भी जब्त किया जा सकता है. 

गौरतलब है कि पांच राज्यों के मौजूदा चुनावों में आम आदमी पार्टी सहित कई राजनीतिक दलों ने आम वोटरों को बिजली और कई तरह की सुविधाएं फ्री में देने का वादा किया है. किसान की कर्जमाफी हर बार चुनाव में बड़ा मुद्दा बन जाती है.