जानें ट्रिपल तलाक पर SC में अब तक किस पक्ष ने क्या रखीं दलील
पिछले कई महीनों से सुप्रीम कोर्ट में इसपर सुनवाई चल रही थी और ये मुद्दा देश में छाया रहा। आइए कुछ प्वाइंट्स में समझें क्या है यह तीन तलाक का मुद्दा और अब तक कोर्ट में क्या-क्या हुआ और किसने क्या-क्या कहा।
नई दिल्ली:
सुप्रीम कोर्ट देश के सबसे विवादित मुद्दों में से एक 'ट्रिपल तलाक' (तीन तलाक) पर अपना फैसला सुना सकता है। चीफ जस्टिस जे. एस खेहर की अध्यक्षता वाली 5 जजों की बेंच सुबह करीब 10.30 बजे इस पर फैसला दे सकती है।
पिछले कई महीनों से सुप्रीम कोर्ट में इसपर सुनवाई चल रही थी और ये मुद्दा देश में छाया रहा। आइए कुछ प्वाइंट्स में समझें क्या है यह तीन तलाक का मुद्दा और अब तक कोर्ट में क्या-क्या हुआ और किसने क्या-क्या कहा।
सुप्रीम कोर्ट का निर्देश
इस मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने यह साफ कर दिया है कि कोर्ट यह बहुपत्नी के मुद्दे पर विचार नहीं कर सकता है और यह केवल यह जांच करेगा कि क्या तीन तलाक मुस्लिम धर्म के अंदर "लागू करने योग्य" मौलिक अधिकार का हिस्सा है या नहीं।
याचिकाएं
सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की बेंच ने इस मामले में 7 याचिकाएं सुनी। जिसमें से 5 याचिकाएं अलग-अलग मुस्लिम महिलाओं ने समाज में तीन तलाक के मुद्दे को चुनौती दी थी।
अपनी याचिकाओं में पीड़ित महिलाओं ने दलील रखी कि-
1. तीन तलाक असंवैधानिक हैं।
2. जिन मुस्लिम महिलाओं ने याचिका दायर की, उन्होंने 'ट्रिपल तलाक' को देने वाले तरीकों पर आवाज़ उठाई जिसमें पति एक बार में 'तलाक' तीन बार सुनाता है, कभी-कभी यह शब्द फोन या टैक्सट मैसेज के ज़रिए भी कह दिए जाते हैं।
3. इन दलीलों के बैच ने मुसलमानों के बीच 'निकाह हलाला' और बहुपत्नी जैसे अन्य प्रथाओं की संवैधानिक वैधता को भी कोर्ट में चुनौती दी थी।
वकील रामजेठमलानी द्वारा केंद्र की तरफ से कोर्ट में दिए गए तर्क-
रामजेठमलानी और अन्य वकीलों ने कोर्ट में समानता के अधिकार सहित विभिन्न संवैधानिक आधार पर इस प्रैक्टिस की निंदा की और इसे 'घृणित' करार दिया। रामजेठमलानी ने कोर्ट में यह तर्क दिया था कि यह प्रैक्टिस लिंग के आधार पर भेदभाव है।
यह अभ्यास पवित्र कुरान के सिद्धांतों से निंदनीय है और कोई भी वकालत इस 'घृणित' प्रथा को नहीं बचा सकती जो संवैधानिक सिद्धांतों के विपरीत है।
केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट की पीठ से कहा था कि अगर सुप्रीम कोर्ट तीन तलाक को अंवैधानिका करार देती है तो सरकार मुस्लिम समुदाय के लिए विवाह और तलाक जैसे मसलों को नियंत्रित करने के लिए एक कानून लाएगी।
सरकार ने मुस्लिम समुदाय के- तलाक-ए-बिद्दत, तलाक हसन और तलाक अहान के बीच तलाक के सभी तीन रूपों को 'एकतरफा' और 'अतिरिक्त न्यायिक' कहा था।
एआईएमपीएलबी की तरफ से कपिल सिब्बल द्वारा किए गए तर्क
अखिल भारतीय मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) की ओर से पैरवी कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने इस बात के साथ 'ट्रिपल तालाक' का मुद्दा समझाने की कोशिश की थी कि भगवान राम का जन्म अयोध्या में हुआ था और यह एक विश्वास का मसला है, जिसका संवैधानिक आधार पर परीक्षण नहीं किया जा सकता।
उन्होंने तर्क दिया था कि तीन तलाक 637 ईसवी के बाद से है और इसे गैर-इस्लामिक नहीं कहा जा सकता क्योंकि मुसलमान पिछले 1,400 वर्षों से इसका अभ्यास कर रहे हैं।
इसके अलावा सिब्बल ने कहा था कि या तो संसद एक कानून लागू कर सकती है या इस मसले को समुदाय के लिए सौंप दिया जाना चाहिए जिसके बाद अदालत इस मुद्दे पर हस्तक्षेप न करें।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियां-
सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने 'मुस्लिम महिला की समानता की ज़रुरत' नाम की याचिका के रूप में स्वयं यह मुद्दा उठाया था। सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान पाया कि 'ट्रिपल तलाक' मुसलमानों के बीच विवाह विघटन का 'सबसे खराब' कारण था न कि 'वांछनीय' , जिसे उनके विचारों में इसे 'कानूनी' कहा जाता था।
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने एआईएमपीएलएलबी से पूछा था कि क्या एक महिला को 'निकाहनामा' (शादी के अनुबंध) के निष्पादन के समय तीन तलाक के लिए 'नहीं' कहने का विकल्प दिया जा सकता है।
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