'निजता' मौलिक अधिकार है या नहीं, आज आएगा 'सुप्रीम' फैसला
सुप्रीम कोर्ट की 9 जजों की संवैधानिक बेंच गुरुवार को ये तय करेगी कि निजता का अधिकार मौलिक अधिकार है या नहीं।
highlights
- सुप्रीम कोर्ट की 9 जजों की संवैधानिक बेंच गुरुवार को करेगी फैसला
- सुप्रीम कोर्ट में आधार कार्ड की वैधता को चुनौती देने वाली कई याचिकाएं लंबित
- इस मसले पर गठित होने वाली 9 जजों की ये सबसे बड़ी बेंच है
नई दिल्ली:
सुप्रीम कोर्ट की 9 जजों की संवैधानिक बेंच आज ये तय करेगी कि निजता का अधिकार मौलिक अधिकार है या नहीं।
संवैधानिक पीठ में चीफ जस्टिस जे एस खेहर के अलावा, जस्टिस चेलमेश्वर, जस्टिस एस ए बोबडे, जस्टिस आर के अग्रवाल, जस्टिस रोहिंटन नरीमन, जस्टिस अभय मनोहर सप्रे, जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस एस अब्दुल नज़ीर शामिल हैं।
सुनवाई की जरूरत क्यों पड़ी
दरअसल सुप्रीम कोर्ट में आधार कार्ड योजना की वैधता को चुनौती देने वाली कई याचिकाएं लंबित हैं। याचिकाकर्ताओं की मुख्य दलील है कि आधार कार्ड के लिए बायोमेट्रिक रिकॉर्ड की जानकारी लेना निजता का हनन है।
वहींं, सरकार की अब तक ये दलील रही है कि निजता का अधिकार मौलिक अधिकार नहीं है। इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने तय किया कि आधार कार्ड की वैधता पर सुनवाई से पहले ये तय किया जाए कि निजता का अधिकार मौलिक अधिकार है या नहीं।
एक बार इस बारे में फैसला ले लिया जायेगा तो, उसके बाद पांच जजों की बेंच आधार कार्ड की वैधता को लेकर सुनवाई करेगी।
याचिककर्ताओं की दलील
याचिकाकर्ताओं की तरफ से वरिष्ठ वकील सोली सोराबजी, गोपाल सुब्रमण्यम, श्याम दीवान, कपिल सिब्बल, अरविंद दातार, समेत कई सीनियर वकीलों ने जिरह की है।
इनकी दलील है कि निजता का अधिकार अनुच्छेद 21 के तहत संविधान से मिले सम्मान से जीवन के अधिकार का ही एक हिस्सा है, निजता को स्वतंत्रता और जीने के अधिकार से अलग करके नहीं देखा जा सकता है।
वरिष्ठ वकीलों की दलील थी कि किसी की आँख और फिंगर प्रिंट उसकी निजी संपत्ति हैं और इसकी जानकारी देने के लिए सरकार बाध्य नहीं कर सकती।
और पढ़ें: लालू की 'बीजेपी हटाओ, देश बचाओ' में सोनिया नहीं होंगी शामिल
गैर बीजेपी शासित राज्यों ने भी किया समर्थन
चार गैर बीजेपी शासित राज्यों पंजाब, पश्चिम बंगाल, कर्नाटक और पुडुचेरी की सरकार भी निजता के अधिकार को लेकर केंद्र सरकार के रुख के विरोध में सामने आ गए।
राज्य सरकारों की ओर से वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने दलील देते हुए कहा कि इस जटिल मुद्दे को वर्ष 1954 और 1962 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के आधार पर संवैधानिक कसौटी पर नही कसा जाना चाहिए।
तकनीक के इस युग में कई प्राइवेसी के पुराने मायने बदल चुके हैं और लोगों के निजी डेटा का दुरुपयोग किया जा रहा है। ऐसे में इस मुद्दे पर नए सिरे से सुनवाई की जानी चाहिए
सरकार की दलील
वहीं सरकार की ओर से अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने दलील दी कि निजता का अधिकार असीमित अधिकार नही है। निजता पर तर्कसंगत नियंत्रण हो सकता है।
ऐसे में निजता को हर मामले में अलग- अलग देखने की जरूरत है। निजता के अधिकार को भी मूल अधिकार का दर्जा दिया जा सकता था, पर इसे संविधान निर्माताओं ने जान बूझकर छोड़ दिया।
इसलिए आर्टिकल 21 के तहत जीने या स्वतन्त्रता का अधिकार भी सम्पूर्ण अधिकार नहीं है। अगर ये सम्पूर्ण अधिकार होता तो फांसी की सज़ा का प्रावधान नहीं होता।
ये अपने आप में मूल सिद्धांत है कि बिना कानून स्थापित किए तरीकों को अमल में लाए। किसी व्यक्ति से ज़मीन, सम्पति और ज़िन्दगी नहीं ली जा सकती है (पर कानून सम्मत तरीकों से ऐसा किया जा सकता हैं, यानि ये अधिकार सम्पूर्ण अधिकार नही हैं)।
और पढ़ें: सरकार ने OBC में क्रीमी लेयर की सीमा बढ़ाई, अब 8 लाख तक मिलेगा आरक्षण
एजी ने आधार योजना को सामाजिक न्याय से जोड़ा
आधार कार्ड योजना को सामाजिक न्याय से जोड़ते हुए अटॉर्नी जनरल ने कहा कि वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट भी ये तस्दीक करती है कि हर विकासशील देश में आधार कार्ड जैसी योजना होनी चाहिए।
कोई शख्स ये दावा नहीं कर सकता कि उसके बायोमेट्रिक रिकॉर्ड लेने से मूल अधिकार का हनन हो रहा है। इस देश में करोड़ो लोग शहरों में फुटपाथ और झुग्गी में रहने को मजबूर हैं।
आधार जैसी योजना उन्हें भोजन, आवास जैसे बुनियादी अधिकारों को दिलाने के लिए लाई गई है, ताकि उनका जीवन स्तर सुधर सके। महज कुछ लोगों के निजता के अधिकार की दुहाई देने से (आधार का विरोध करने वाले) एक बड़ी आबादी को उनकी बुनियादी जरूरतों से वंचित नही किया जा सकता।
वहीं एडिशनल सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम को बताया कि लोगों के निजी डेटा के संरक्षण को लेकर उपाय सुझाने के लिए 10 सदस्यीय कमिटी गठित की गई है। जिसके अध्यक्ष सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज बी एन श्रीकृष्णा हैं।
फैसले का असर क्या होगा
हालांकि ये पहली बार नहीं है, जब सुप्रीम कोर्ट निजता के अधिकार को लेकर विचार कर रहा हो। 50 और 60 के दशक में आए सुप्रीम कोर्ट के 2 पुराने फैसलों, एम पी शर्मा मामले में सुप्रीम कोर्ट के 8 जजों और खड़क सिंह मामले में 6 जजों की बेंच ये कह चुकी है कि राइट टू प्राइवेसी मौलिक अधिकार नहीं है।
हालांकि सुप्रीम कोर्ट की ही छोटी बेंचों ने कई मामलों में प्राइवेसी को मौलिक अधिकार बताया, लेकिन इस मसले पर गठित होने वाली 9 जजों की ये सबसे बड़ी बेंच है।
अगर सुप्रीम कोर्ट की ये बेंच गुरुवार को तय कर देती है कि निजता का अधिकार मूल अधिकार है, तो ऐसी स्थिति में इसका सबसे पहला असर सरकार की आधार कार्ड योजना पर होगा, जिसमें बायोमेट्रिक रिकॉर्ड लिए जाने को निजता के अधिकार का हनन बताया गया है।
इसके अलावा समलैंगिकता को अपराध के दायरे में रखने वाला सुप्रीम कोर्ट का फैसला भी गुरुवार के फैसले के आलोक में फिर से देखा जा सकता है।
और पढ़ें: जल्द ही होगा मोदी कैबिनेट का विस्तार, सुरेश प्रभु को मिल सकती है दूसरी ज़िम्मेदारी
Don't Miss
वीडियो
IPL 2024
मनोरंजन
-
Kalki 2898 AD की रिलीज डेट आई सामने, 600 करोड़ के बजट में बनीं फिल्म इस दिन होगी रिलीज
-
Katrina Kaif-Vicky Kaushal Vacation: लंदन में वेकेशन मना रहे हैं विक्की-कैटरीना, क्वालिटी टाइम स्पेंड करते आए नजर
-
Randeep Hooda Honeymoon: शादी के 6 महीने बाद हनीमून मना रहे हैं रणदीप-लिन, शेयर कर रहे हैं रोमांटिक तस्वीरें
धर्म-कर्म
-
Pramanand Ji Maharaj: प्रेमानंद जी महाराज के इन विचारों से जीवन में आएगा बदलाव, मिलेगी कामयाबी
-
Shri Premanand ji Maharaj: मृत्यु से ठीक पहले इंसान के साथ क्या होता है? जानें प्रेमानंद जी महाराज से
-
Maa Laxmi Shubh Sanket: अगर आपको मिलते हैं ये 6 संकेत तो समझें मां लक्ष्मी का होने वाला है आगमन
-
May 2024 Vrat Tyohar List: मई में कब है अक्षय तृतीया और एकादशी? यहां देखें सभी व्रत-त्योहारों की पूरी लिस्ट