किरायेदार मकान का मालिक नहीं है, सिर्फ एक किरायेदार है: सुप्रीम कोर्ट
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक मामले की सुनवाई कर रही जस्टिस रोहिंग्टन एफ नरीमन की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने किरायेदार दिनेश को किसी भी तरह की राहत देने से इनकार कर दिया है.
highlights
- किरायेदार को यह नहीं भूलना चाहिए कि वह मकान का मालिक नहीं है बल्कि सिर्फ एक किरायेदार है: सुप्रीम कोर्ट
- जस्टिस रोहिंग्टन एफ नरीमन की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने किरायेदार को किसी भी तरह की राहत से इनकार किया
नई दिल्ली:
सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने किरायेदारों को लेकर एक बड़ी महत्वपूर्ण टिप्पणी की है. सुप्रीम कोर्ट ने मकान खाली करने से आनाकानी करने वाले एक किरायेदार (Tenant) को राहत देने से इनकार कर दिया है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा कि जिसके घर शीशे के होते हैं, वे दूसरे लोगों पर पत्थर नहीं मारा करते. कोर्ट के ताजा फैसले से इस बात साफ हो गई है कि मकान मालिक ही मकान का असली मालिक होता है. कोर्ट (Court) के मुताबिक किरायेदार चाहे कितना भी समय किसी मकान में रह रहा हो उस किरायेदार को यह नहीं भूलना चाहिए कि वह मकान का मालिक (Landlord) नहीं है बल्कि सिर्फ एक किरायेदार है.
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जस्टिस रोहिंग्टन एफ नरीमन की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने कोई भी राहत देने से किया इनकार
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक मामले की सुनवाई कर रही जस्टिस रोहिंग्टन एफ नरीमन की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने किरायेदार दिनेश को किसी भी तरह की राहत देने से इनकार कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि किरायेदार को परिसर खाली करना होगा. साथ ही कोर्ट ने किरायेदार को पुराने बचे हुए किराये को भी जल्द से जल्द चुकाने के आदेश दिए हैं. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक किरायेदार के वकील दुष्यंत पाराशर ने पीठ से बकाया किराये की रकम जमा करने के लिए समय देने की मांग की लेकिन कोर्ट ने किरायेदार को बकाया रकम को चुकाने के लिए और समय देने से इनकार कर दिया. कोर्ट ने कहा कि किरायेदार ने मकान मालिक को जिस तरह से परेशान किया है कोर्ट उसके बाद कोई भी राहत नहीं दे सकता. कोर्ट ने कहा कि किरायेदार को बकाया किराया भी चुकाना होगा और परिसर को भी खाली करना होगा.
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बता दें कि करीब तीन साल से किरायेदार ने मकान मालिक को किराया नहीं चुकाया था. साथ ही वह दुकान को भी खाली नहीं कर रहा था. इसके बाद मकान मालिक ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. निचली अदालत ने किरायेदार को दो महीने में दुकान को खाली करने के अलावा बकाया किराये की रकम को भी चुकाने के लिए आदेश दिया था. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक निचली अदालत ने वाद दाखिल होने से लेकर परिसर खाली करने तक 35 हजार प्रति महीने किराये का भुगतान करने का आदेश दिया था. मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने पिछले साल जनवरी में किरायेदार को 4 महीने का वक्त करीब नौ लाख रुपये जमा करने के लिए दिया था. किरायेदार ने हाईकोर्ट के आदेश को नहीं माना और वह सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया. सुप्रीम कोर्ट ने किरायेदार की याचिका खारजि करते हुए दुकान तुरंत खाली करने के आदेश जारी कर दिए.
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