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फारुक अब्‍दुल्‍ला की हिरासत को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को जारी किया नोटिस

सीतराम येचुरी की अर्जी पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने उनकी पार्टी के नेता तरीगामी को जम्मू कश्मीर लौटने की इजाजत तो दे दी पर वहां उन्हें जम्मू-कश्मीर में बिना किसी रोक के घूमने या फिर सुरक्षा मुहैया कराने पर कोई आदेश देने से मना कर दिया.

Updated on: 16 Sep 2019, 11:55 AM

नई दिल्‍ली:

सुप्रीम कोर्ट में आज सोमवार को 8 याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई हुई. MDMK चीफ वाइको की याचिका (हैबियस कार्पस) पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर फारुक अब्‍दुल्‍ला की हिरासत को लेकर केंद्र सरकार से जवाब तलब किया है. वाइको के वकील ने कहा कि फारूक अब्दुल्ला को गैर कानूनी तरीके से हिरासत में रखा गया है. अब्दुल्ला उनके निमंत्रण पर 15 सितम्बर को चेन्नई में पूर्व CM अन्नादुरई के जयंती समारोह में शामिल होने वाले थे, लेकिन अब हिरासत में रहने से उनसे संपर्क नहीं हो पा रहा. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है. सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने केंद्र सरकार को लेकर किसी आदेश जारी करने से मना कर दिया. अदालत ने कहा, सरकार राष्ट्रीय सुरक्षा के आधार पर संचार व्यवस्था सुचारू करने को लेकर फैसला ले.

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हालांकि सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने याचिका दायर करने के औचित्य पर सवाल खड़े करते हुए कहा, अब्दुल्ला के परिवारीजन हाई कोर्ट के आदेश के बाद उनसे मिल पाए हैं पर वाइको तो उनके परिजन नहीं हैं. सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने यह भी कहा, उन्हें फारुक अब्दुल्ला के हिरासत में रहने को लेकर कोई जानकारी नहीं है. वो जानकारी हासिल कर बताएंगे. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने 30 सितम्बर तक सरकार से जवाब देने को कहा है.

इसके अलावा सीतराम येचुरी की अर्जी पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने उनकी पार्टी के नेता तरीगामी को जम्मू कश्मीर लौटने की इजाजत तो दे दी पर वहां उन्हें जम्मू-कश्मीर में बिना किसी रोक के घूमने या फिर सुरक्षा मुहैया कराने पर कोई आदेश देने से मना कर दिया. अनुराधा भसीन की अर्जी पर सुनवाई करते हुए जस्‍टिस बोबड़े ने कहा, क्या ये बेहतर न हो कि याचिककर्ता जम्मू कश्मीर HC का रुख करे क्योकि समस्या स्थानीय है. भसीन ने अर्जी में मीडिया के काम में आ रही दिक्कतों का हवाला दिया है. साथ ही वहां जारी प्रतिबंध पर भी सवाल उठाए हैं.

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भसीन की ओर से वृंदा ग्रोवर ने कहा, वहां पब्लिक ट्रांसपोर्ट और इंटरनेट काम नहीं कर रहा है. जम्मू-कश्मीर HC को अप्रोच करना मुश्किल है. आखिर कोर्ट के किस आदेश के तहत कम्युनिकेशन पर इस तरह की पाबंदी लगाई है. इस पर जस्टिस बोबडे ने AG से पूछा कि exact situation क्या है.

अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने याचिकाकर्ता पर सवाल खड़े करते हुए कहा, वहां से दूसरे अखबार छप रहे हैं. टीवी और रेडियो चैनेल वहां से प्रसारित हो रहे हैं. मीडियाकर्मियों को इंटरनेट सुविधा उपलब्ध कराई गई है. यहां तक कि उन्हें रिपोर्टिंग के लिए वाहन भी उपलब्ध कराए गए हैं.

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अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा, 1991 के बाद से जम्मू कश्मीर आतंकवाद झेलता रहा है. लोग मरते रहे हैं. सीमापार से आतंकवाद के चलते जम्‍मू-कश्‍मीर आतंकवाद झेलता रहा है. 2016 में एक आतंकवादी की मौत ( बुरहान वानी) के बाद पूरे राज्य में कानून व्यवस्था की स्थिति बिगड़ गई थी. तब इस तरह के शट डाउन को रखने के लिए राज्य सरकार मजबूर हुई थी.

सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट में कहा, 5 अगस्‍त के बाद से जम्‍मू-कश्‍मीर में एक भी गोली नहीं चली है. एक भी शख्‍स को जान नहीं गंवानी पड़ी है. पिछले 1990 से लेकर 5 अगस्त तक 41866 लोग जान गवां चुके हैं. 71038 हिंसा की घटनाएं हुई हैं. 15292 सुरक्षा बलों को जान गवानी पड़ी है. 22 536 आतंकवादी मारे गए हैं. सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से कहा कि वो राष्ट्रीय सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए राज्य में स्थिति सामान्य करने की कोशिश करे. हेल्थ केयर , स्कूल, तक लोगो की पहुंच हो, ऐसी कोशिश हो. कोर्ट ने इस पर सरकार से हलफनामा दायर करने को कहा