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राजद्रोह कानून की वैधता पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से मांगा जवाब

याचिका दायर करने वाले मणिपुर के वांगखेमचा और छत्तीसगढ़ के शुक्ला का कहना है कि यह प्रावधान अभिव्यक्ति और बोलने की आजादी का उल्लंघन करता है.

Updated on: 01 May 2021, 01:28 PM

highlights

  • राजद्रोह की धारा 124-ए पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से मांगा जवाब
  • तीन महीने से कम समय में दो बार ऐसी याचिका पहुंची SC
  • दलील दी गई है कि 1962 के बाद इस धारा का दुरुपयोग हुआ

नई दिल्ली:

भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 124ए की वैधता को लेकर दायर जनहित याचिका पर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने केंद्र सरकार से जवाब मांगा है. बीते तीन महीनों से भी कम समय में यह दूसरी बार है जब इस तरह की याचिका अदालत पहुंची है. धारा 124ए के तहत व्यक्ति पर राजद्रोह का अपराध तय किया जाता है. इस बार दो पत्रकारों किशोरचंद्र वांगखेमचा और कन्हैया लाल शुक्ला ने याचिका दायर की थी. आईपीसी की धारा 124ए पर सवाल उठना जारी है. शुक्रवार को जस्टिस यूयू ललित, इंदिरा बनर्जी और केएम जोसेफ की तीन सदस्यीय बेंच ने याचिका पर सुनवाई की, जिसके बाद अदालत की तरफ से केंद्र सरकार (Modi Government) को नोटिस भेजा गया है. 

धारा डाल रही लोकतांत्रिक आजादी पर प्रभाव
याचिका दायर करने वाले मणिपुर के वांगखेमचा और छत्तीसगढ़ के शुक्ला का कहना है कि यह प्रावधान अभिव्यक्ति और बोलने की आजादी का उल्लंघन करता है. दोनों पत्रकारों के अनुसार, राज्य सरकार के साथ-साथ केंद्र के खिलाफ सवाल उठाने पर उनके खिलाफ धारा 124ए के तहत मामला दर्ज है. मामले में शामिल पत्रकारों के खिलाफ सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर कार्टून शेयर करने और टिप्पणी करने को लेकर मामला दर्ज किया गया है. याचिका में कहा गया है कि साल 1962 के बाद लगातार 124ए का दुरुपयोग हुआ है. साथ ही यह भी तर्क दिया गया है कि इस धारा की वजह से लोकतांत्रिक आजादी पर अस्वीकार्य प्रभाव पड़ता है.

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केदारनाथ सिंह बनाम स्टेट केस का हवाला
याचिका में कहा गया है कि अन्य उपनिवेशवादी लोकतंत्रों में भी राजद्रोह को अपराध के तौर पर रद्द किया गया है. याचिका में बताया गया है कि इसे अलोकतांत्रिक, गैरजरूरी बताकर इसकी निंदा की गई है. इस दौरान याचिका में सुप्रीम कोर्ट के 1962 केदार नाथ सिंह बनाम स्टेट ऑफ बिहार का भी हवाला दिया गया है. खास बात है कि इससे पहले सुप्रीम कोर्ट इसी तरह की एक याचिका खारिज की थी. उस समय तीन वकीलों ने प्रावधान को चुनौती देते हुए सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था.