AyodhyaVerdict: 1858 से चल रहे अयोध्या विवाद पर फैसला शनिवार को, देखें टाइम लाइन
AyodhyaVerdict: उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) राजनीतिक दृष्टि से संवेदनशील राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद (Ayodhya Dispute) मामले में शनिवार को फैसला सुनायेगा.
नई दिल्ली:
AyodhyaVerdict: उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) राजनीतिक दृष्टि से संवेदनशील राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद (Ayodhya Dispute) मामले में शनिवार को फैसला सुनायेगा. प्रधान न्यायासधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चन्द्रचूड़ , न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर की पांच सदस्यीय संविधान पीठ शनिवार की सुबह साढ़े दस बजे यह फैसला सुनायेगी. संविधान पीठ ने 16 अक्ट्रबर को इस मामले की सुनवाई पूरी की थी. पीठ ने छह अगस्त से लगातार 40 दिन इस मामले में सुनवाई की.
यह 1858 से देश के सामाजिक-धार्मिक मामलों का अहम बिंदु रहा और इसपर 1885 से मुकदमा चल रहा है. यह इस विवाद के लंबे इतिहास में एक नया अध्याय दर्ज करेगा. अदालत के फैसला सुनाने से पहले इस तरह की अटकलें तेज हैं कि क्या पांच जजो वाली संवैधानिक पीठ सर्वसम्मत फैसला देगी? इस तरह के विवादित मुद्दे पर, जिसने हिंदुओं और मुस्लिमों को विभाजित किया है, क्या एकमत से फैसले को स्वीकार किया जाएगा क्योंकि यह यह किसी भी तरह की अस्पष्टता को दूर करेगा जो 4-1 या 3-2 (5 जजों के बीच) के फैसले के कारण हो सकती है.
1528 से 1992 तक अयोध्या विवाद
- 1528: अयोध्या में एक ऐसे स्थल पर मस्जिद का निर्माण किया गया जिसे हिंदू भगवान राम का जन्म स्थान मानते हैं. समझा जाता है कि मुग़ल सम्राट बाबर ने ये मस्जिद बनवाई थी जिस कारण इसे बाबरी मस्जिद के नाम से जाना जाता था.
- 1853: हिंदुओं का आरोप कि भगवान राम के मंदिर को तोड़कर मस्जिद का निर्माण हुआ. इस मुद्दे पर हिंदुओं और मुसलमानों के बीच पहली हिंसा हुई.
- 1859: ब्रिटिश सरकार ने तारों की एक बाड़ खड़ी करके विवादित भूमि के आंतरिक और बाहरी परिसर में मुस्लिमों और हिंदुओं को अलग-अलग प्रार्थनाओं की इजाजत दे दी.
- 16 जनवरी, 1950: गोपाल सिंह विशारद ने फैजाबाद अदालत में एक अपील दायर कर रामलला की पूजा-अर्चना की विशेष इजाजत मांगी. उन्होंने वहां से मूर्ति हटाने पर न्यायिक रोक की भी मांग की.
- 5 दिसम्बर, 1950: महंत परमहंस रामचंद्र दास ने हिंदू प्रार्थनाएं जारी रखने और बाबरी मस्जिद में राममूर्ति को रखने के लिए मुकदमा दायर किया. मस्जिद को ‘ढांचा’ नाम दिया गया.
- 17 दिसम्बर, 1959: निर्मोही अखाड़ा ने विवादित स्थल हस्तांतरित करने के लिए मुकदमा दायर किया.
- 18 दिसम्बर, 1961: उत्तर प्रदेश सुन्नी वक्फ बोर्ड ने बाबरी मस्जिद के मालिकाना हक के लिए मुकदमा दायर किया.
- 1984: विश्व हिंदू परिषद (विहिप) ने बाबरी मस्जिद के ताले खोलने और राम जन्मस्थान को स्वतंत्र कराने व एक विशाल मंदिर के निर्माण के लिए अभियान शुरू किया.
- 1 फरवरी, 1986: फैजाबाद जिला न्यायाधीश ने विवादित स्थल पर हिदुओं को पूजा की इजाजत दी. ताले दोबारा खोले गए. नाराज मुस्लिमों ने विरोध में बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी का गठन किया.
- जून 1989: भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने विहिप को औपचारिक समर्थन देना शुरू करके मंदिर आंदोलन को नया जीवन दे दिया.
- 1 जुलाई, 1989: भगवान रामलला विराजमान नाम से पांचवा मुकदमा दाखिल किया गया.
- 9 नवम्बर, 1989: तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की सरकार ने बाबरी मस्जिद के नजदीक शिलान्यास की इजाजत दी.
- 25 सितम्बर, 1990: भाजपा अध्यक्ष लाल कृष्ण आडवाणी ने गुजरात के सोमनाथ से उत्तर प्रदेश के अयोध्या तक रथ यात्रा निकाली, जिसके बाद साम्प्रदायिक दंगे हुए.
- नवम्बर 1990: आडवाणी को बिहार के समस्तीपुर में गिरफ्तार कर लिया गया. भाजपा ने तत्कालीन प्रधानमंत्री वी.पी. सिंह की सरकार से समर्थन वापस ले लिया. सिंह ने वाम दलों और भाजपा के समर्थन से सरकार बनाई थी. बाद में उन्होंने इस्तीफा दे दिया.
- अक्टूबर 1991: उत्तर प्रदेश में कल्याण सिंह सरकार ने बाबरी मस्जिद के आस-पास की 2.77 एकड़ भूमि को अपने अधिकार में ले लिया.
- 6 दिसम्बर, 1992: हजारों की संख्या में कार सेवकों ने अयोध्या पहुंचकर बाबरी मस्जिद ढाह दिया, जिसके बाद सांप्रदायिक दंगे हुए.
6 दिस्मबर 1992 से पहले अयोध्या में क्या हुआ था
- 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में जो हुआ उसकी शुरुआत 1990 में आडवाणी की रथयात्रा से हो गई थी. तब ये नारा दिया गया था कि ‘कसम राम की खाते हैं मंदिर वहीं बनाएंगे’
- 30 नवंबर से अयोध्या पहुंचने वाले कारसेवकों की संख्या बढ़ने लगी. वो नारे लगा रहे थे , भाषण दे रहे थे , कारसेवकपुरम में आरएसएस, बजरंग दल के नेताओं की लगातार जारी मुलाकात से संकेत मिलने लगे थे कि इस बार मामला आर-पार की लड़ाई का है.
- 4 दिसंबर 1992 को उनका नारा था - मिट्टी नहीं सरकाएंगे, ढांचा तोड़कर जाएंगे. उसी दिन राम चबूतरा के पास एक बड़े से टीले पर काफी सारे कारसेवक चढ़ गए. सारे के सारे रस्सियों, कुदाल और फावड़े से लैस होकर उसे ढहाने की कोशिश कर रहे थे. यह पहला संकेत था कि किस तरह बाबरी मस्जिद को गिराने का अभ्यास किया जा रहा है
- 5 दिसंबर की शाम तक यह बात तय हो चुकी थी कि इस बार कारसेवकों के इरादे खतरनाक हैं. 5 दिसंबर 1992 को पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के बयान ने हवा का रुख बदल दिया. उन्होंने कहा था, ‘’उस जगह को समतल तो करना पड़ेगा.’’
- अटल बिहारी वाजपेयी के बयान के अगले ही दिन यानि की 06 दिसंबर 1992 को अयोध्या में लाखों कारसेवकों की भीड़ जुट चुकी थी. इस भीड़ के साथ-साथ बीजेपी, विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल के तमाम नेता ढांचे के पास बने मंच पर मौजूद थे.
- 6 दिसंबर को कारसेवकों ने रामजन्म भूमि पर कार सेवा का ऐलान किया था. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने विवादित राम जन्मभूमि पर किसी तरह के निर्माण कार्य पर पाबंदी लगा रखी थी और एक ऑबजर्वर भी नियुक्त कर रखा था. तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने भी सुप्रीम कोर्ट को कहा था कि उसके आदेशों का उल्लंघन नहीं होगा.
- 6 दिसंबर 1992 को कुछ कारसेवक ढांचे के आसपास बनी रेलिंग को फांदकर अंदर घुसने की कोशिश करने लगे. किसी के हाथ में फावड़े तो कोई हथौड़े लेकर बाबरी मस्जिद की तरफ बढ़ा चला जा रहा था. मस्जिद को गिराने के लिए बड़ी-बड़ी रस्सियों का इंतजाम भी पहले से कर लिया गया था. इतनी तैयारी के साथ आई कारसेवकों की भीड़ में से कुछ लोग जल्द ही गुंबद तक पहुंच गए और फिर देखते ही देखते गुंबद को गिरा दिया गया.
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