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समलैंगिगता को अपराध मानने वाली IPC की धारा 377 को असंवैधानिक करार देने की याचिका पर आज सुप्रीम कोर्ट सुनवाई करेगी।
इस मामले की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा समेत पांच जजों की संविधान पीठ कर रही है जिसमें जस्टिस रोहिंग्टन आर नरीमन, जस्टिस ए एम खानविलकर, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड और जस्टिस इंदु मल्होत्रा शामिल हैं
#TopStory: Constitution bench of Supreme Court to begin hearing the pleas seeking scrapping of Section 377 of IPC which criminalizes homosexuality today. In Dec 2013, SC had upheld the criminalisation of homosexuality overturning a judgment of Delhi HC that decriminalised it. pic.twitter.com/9Cd8U9N8g4
— ANI (@ANI) July 10, 2018
बता दें कि केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि इस मामले में सरकार को हलफनामा दाखिल करना है इसलिए केस की सुनवाई चार हफ्ते के लिए टाल दी जाए। जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा सुनवाई टाली नहीं जाएगी।
मुख्य न्यायाधीश ने कहा था इस धारा 377 के फैसले पर पुनर्विचार करने की जरुरत है। उन्होंने कहा था,' 'हमारे पहले के आदेश पर पुनर्विचार किए जाने की जरूरत है।' अदालत ने यह आदेश 12 अलग-अलग याचिकाकर्ताओं की याचिकाओं पर दिया था, जिसमें कहा गया है कि आईपीसी की धारा 377 अनुच्छेद 21 (जीने का अधिकार) और अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) का उल्लंघन है।'
बता दें कि इससे पहले दिल्ली हाई कोर्ट ने संलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर करने का फैसला सुनाया था जिसे सुप्रीम कोर्ट ने पलट दिया था।
आपको बता दें कि धारा-377 का निर्माण 1862 में अंग्रेजों के द्वारा लागू किया था। इस कानून के तहत अप्राकृतिक यौन संबंध को गैरकानूनी ठहराया गया है। अगर कोई स्त्री-पुरुष आपसी सहमति से भी अप्राकृतिक यौन संबंध बनाते हैं तो इस धारा के तहत 10 साल की सजा व जुर्माने का प्रावधान है।
किसी जानवर के साथ यौन संबंध बनाने पर इस कानून के तहत उम्र कैद या 10 साल की सजा एवं जुर्माने का प्रावधान है। इस धारा के अंतर्गत गिरफ्तारी के लिए किसी प्रकार के वारंट की जरूरत नहीं होती है।
गौरतलब है कि धारा-377 एक गैर-जमानती अपराध है।
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Source : News Nation Bureau