मध्य प्रदेश संकट पर जस्टिस चंद्रचूड़ और अभिषेक मनु सिंघवी के बीच सवाल-जवाब यहां पढ़ें
मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) के सियासी संकट को लेकर आज गुरुवार को तीसरे दिन भी सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में सुनवाई चल रही है. स्पीकर की ओर से अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने जिरह की.
नई दिल्ली:
मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) के सियासी संकट को लेकर आज गुरुवार को तीसरे दिन भी सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में सुनवाई चल रही है. स्पीकर की ओर से अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने जिरह की. सुनवाई के दौरान जस्टिस चंद्रचूड़ और अभिषेक मनु सिंघवी के बीच काफी सवाल-जवाब हुए. अभिषेक मनु सिंघवी (Abhishek Manu Singhvi) यह दलील दे रहे हैं कि राज्यपाल को यह हक नहीं है कि वह सरकार को बहुमत साबित करने को कहें. सुनवाई प्रारंभ होने के बाद जजों ने 16 बागी कांग्रेसी विधायकों के इस्तीफे पर निर्णय एक दिन में लेने पर जोर दिया. साथ ही यह भी कहा कि विधायकों की जोड़-जोड़ से बचने के लिए जल्द से जल्द बहुमत परीक्षण होना चाहिए. जानते हैं जस्टिस चंद्रचूड़ और अभिषेक मनु सिंघवी के सवाल-जवाब:
जस्टिस चंद्रचूड़ - स्पीकर द्वारा इस्तीफे या अयोग्यता पर फैसला लिए जाने का फ्लोर टेस्ट से क्या संबंध है. उसे क्यों रोका जाए?
सिंघवी : इससे यह तय होगा कि नई सरकार में अपनी पार्टी से विश्वासघात करने वाले विधायकों को क्या मिल सकेगा.
जस्टिस चंद्रचूड़: अगर आपने इस्तीफा नामंज़ूर किया, फिर MLA व्हिप से बंध जाएंगे. अगर उन्होंने व्हिप का उल्लंघन किया तो भी स्पीकर उन्हें अयोग्य करार दे सकते हैं.
जस्टिस चन्दचूड़ : हम हॉर्स ट्रेडिंग को बढ़ावा नहीं देना चाहते. इसलिए जल्दी फ्लोर टेस्ट ज़रूरी होता है
अभिषेक सिंघवी : जब विधानसभा का सत्र चल रहा हो उस दौरान कोर्ट ने कभी भी फ्लोर टेस्ट का आदेश नहीं दिया है. यह मामला भी ऐसा ही है. इससे पहले महाराष्ट्र और कर्नाटक में जब भी फ्लोर टेस्ट का आदेश हुआ, तब वो नई विधानसभा थी.
सिंघवी कर्नाटक मामले में दिए सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला दे रहे हैं. जब सुप्रीम कोर्ट ने स्पीकर के अधिकारों को अहमियत दी थी और वो कब विधायकों के इस्तीफे स्वीकार करेंगे, इसकी कोई समयसीमा तय नहीं की थी. जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा आपकी बात सही है, लेकिन इसके साथ ही कोर्ट ने फ्लोर टेस्ट को देर से करवाने की इजाजत भी नहीं दी थी. हमने तो ये साफ किया था कि विधायक सदन की कार्रवाई में जाए या ना जाये, ये फैसला ख़ुद करें.
अभिषेक सिंघवी : लेकिन कर्नाटक का केस अलग था. वहां अविश्वास प्रस्ताव लेकर आया था. अगर यहां भी ऐसा होता है तो स्पीकर नियम के मुताबिक उस पर फैसला लेंगे.
जस्टिस चन्दचूड़ : आप यह कहना चाह रहे कि फ्लोर टेस्ट एक रनिंग असेम्बली में तभी हो सकता है, जब अविश्वास प्रस्ताव लाया गया हो.
अभिषेक सिंघवी : हां, दूसरी सूरत तब है जब अगर चलते हुए हाउस में कोई मनी बिल) गिर जाए , तब राज्यपाल बहुमत साबित करने को कह सकते हैं.
जस्टिस चन्दचूड़ : आप तो ऐसे कह रहे है जैसे रनिंग असेंबली में स्पीकर का कोई रोल ही नहीं होता.
सिंघवी- अगर सदन का सत्र न चल रहा हो तो राज्यपाल सत्र बुलाने के लिए कह सकते हैं. उसके आगे की कार्रवाई स्पीकर तय करते हैं.
जस्टिस चंद्रचूड़: अगर सत्र नहीं चल रहा और सरकार बहुमत खो देती है तो ऐसी सूरत में तो गवर्नर स्पीकर को विश्वास मत के लिए बोल सकते हैं. सत्रावसान की स्थिति में अगर सरकार बहुमत खो देती है, तो क्या गवर्नर असेम्बली को नहीं बुला सकते. एक अल्पमत सरकार को Contiune रहने की इजाजत दी जा सकती है?
सिंघवी : अगर सदन का सत्र न चल रहा हो तो राज्यपाल सत्र बुलाने के लिए कह सकते हैं. उसके आगे की कार्रवाई स्पीकर तय करते हैं.
सिंघवी : गवर्नर सिर्फ हाउस को समन कर सकता है, लेकिन बाद में सदन के अंदर कैसे काम चले, यह पूरी जिम्मेदारी स्पीकर की है.
जस्टिस चन्दचूड़ : सिर्फ इतनी ही जिम्मेदारी है गवर्नर की.
सिंघवी : जी हां
सिंघवी ने 14 मार्च को लिखी गई राज्यपाल की चिट्ठी की भाषा पर सवाल उठाते हुए कहा, गवर्नर लिखते हैं कि 22 विधायकों ने त्यागपत्र भेजा. मैंने भी मीडिया में देखा. चिट्ठी मिली है. सरकार बहुमत खो चुकी है. यानी गवर्नर पहले ही तय कर लिया था कि कमलनाथ सरकार बहुमत खो चुकी है.
जस्टिस हेमंत गुप्ता : यानी अगर सरकार बहुमत भी खो चुकी तब भी राज्यपाल फ्लोर टेस्ट के लिए नहीं बोल सकते.
सिंघवी : जी हां, वो सिर्फ सत्र बुला सकते हैं. बाकी काम स्पीकर का है.
जस्टिस चंद्रचूड़: जिस दिन राज्यपाल ने खत लिखा, उस दिन सत्र शुरू नहीं हुआ था. राज्यपाल ने सत्र बुलाने को कहा और कहा कि उस दिन बहुमत परीक्षण भी हो.
सिंघवी: राज्यपाल के कहने का एक तरह से मतलब था कि स्पीकर इस्तीफे और अयोग्यता पर कोई फैसला न लें, सिर्फ सबसे पहले फ्लोर टेस्ट करवाएं.
सिंघवी : मी लार्ड, अपने आप में यह टेस्ट केस है कि क्या कोई गवर्नर किसी सरकार को अस्थिर कर सकते हैं. आज आपने इसकी इजाजत दे दी तो आगे ऐसे मामलों को बाढ़ आ जाएगी.
सिंघवी : यह अपने आप में कोई अकेला मामला नहीं है. राजस्थान, छत्तीसगढ़, ओडिशा, केरल और भी कुछ राज्य हैं, जहां कोरोना के चलते विधानसभा स्थगित की गई है. अब क्या कोर्ट तय करेगी कि मध्यप्रदेश में ऐसा हो या नहीं? यह स्पीकर को तय करने दीजिए.
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