धारा 377 पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई, जज ने कहा- LGBT समुदाय को डर के साथ जीना पड़ता है
सुप्रीम कोर्ट भारतीय दंड संहिता की धारा 377 की संवैधानिक वैधता पर तीसरे दिन भी सुनवाई जारी रही।
नई दिल्ली:
सुप्रीम कोर्ट भारतीय दंड संहिता की धारा 377 की संवैधानिक वैधता पर तीसरे दिन भी सुनवाई जारी रही। अदालत भारतीय दंड संहिता की धारा 377 की संवैधानिक वैधता पर सुनवाई कर रही है जो कि समलैंगिक संबंध को अपराध की श्रेणी में रखती है।
इस मामले की सुनवाई प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति रोहिंटन फली नरीमन, ए. एम. खानविलकर, डी.वाई.चंद्रचूड़ और इंदु मल्होत्रा की पांच न्यायाधीशों की संवैधानिक पीठ कर रही है।
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से शामिल वकील अशोक देसाई ने कहा कि भारतीय संस्कृति में समलैंगिकता नया नहीं है। कई देशों ने इसे स्वीकार कर लिया है।
पांच जजों की बेंच में शामिल जस्टिस इंदु मल्होत्रा ने कहा कि परिवार और सामाजिक दबावों के कारण, (एलजीबीटी समुदाय) को विपरीत लिंग से शादी करने के लिए मजबूर होना पड़ता है। इसके कारण उन्हें मानसिक आघात पहुंचता है।
Section 377 matter: Justice Indu Malhotra, also observed 'because of family and societal pressures, they(LGBT community) are forced to marry the opposite sex and it leads to bi-sexuality and mental trauma.'
— ANI (@ANI) July 12, 2018
जज चंद्रचूड़ ने कहा कि समाज की सोच की वजह से LGBT समुदाय को डर के साथ जीना पड़ता है।
और पढ़ें: समलैंगिकता मामले पर केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट पर छोड़ा फैसला
केंद्र ने SC पर छोड़ा फैसला
Section 377 matter: Justice Chandrachud said 'there is deep rooted trauma involved in the society, which forces the LGBT community to be in fear'
— ANI (@ANI) July 12, 2018
केंद्र ने बुधवार को समलैंगिक सेक्स को अपराध की श्रेणी में रखने वाला कानून संवैधानिक रूप से उचित है या नहीं, का फैसला सुप्रीम कोर्ट पर छोड़ दिया।
बुधवार को सुनवाई के दूसरे दिन केंद्र ने अपना पक्ष रखा जिसमें इस धारा का न तो समर्थन किया गया और न ही इसका विरोध किया गया।
केंद्र ने साफ स्टैंड नहीं लेते हुए मामले को अदालत के विवेक पर छोड़ दिया। केंद्र ने हालांकि पीठ से आग्रह किया कि उन्हें इस कानून को चुनौती देने के निर्णय को उसी सीमा में ही रखना चाहिए जिसमें ऐसा स्कोप न हो जो एलजीबीटी समुदाय को संपत्ति के अधिकार, नागरिक अधिकार, विवाह, गोद लेना समेत अन्य नागरिक अधिकारों से जुड़े मुद्दों की मांग के लिए प्रेरित करे।
और पढ़ें: मुस्लिम बहुल समेत 72 देशों में अपराध है समलैंगिकता
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