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कोर्ट की अवमानना की शक्ति विधायी अधिनियम के जरिये नहीं छीनी जा सकती : सुप्रीम कोर्ट

कोर्ट की अवमानना की शक्ति विधायी अधिनियम के जरिये नहीं छीनी जा सकती : सुप्रीम कोर्ट

Updated on: 29 Sep 2021, 03:25 PM

नई दिल्ली:

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि अदालत की अवमानना की शक्ति एक विधायी अधिनियम द्वारा भी नहीं छीनी जा सकती है।

न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति एम.एम. सुंदरेश ने एक एनजीओ के अध्यक्ष को शीर्ष अदालत में बदनाम करने और धमकाने के लिए 25 लाख रुपये जमा नहीं करने के लिए अवमानना का दोषी ठहराया।

पीठ ने कहा कि एनजीओ सूरज इंडिया ट्रस्ट के अध्यक्ष राजीव दहिया अदालत, प्रशासनिक कर्मचारियों और राज्य सरकार सहित सभी पर बिल्कुल कीचड़ उछाल रहे हैं।

इसने कहा कि दहिया स्पष्ट रूप से अदालत की अवमानना के दोषी हैं और यह अदालत को बदनाम करने की उनकी कार्रवाई को मंजूरी नहीं दे सकता है।

शीर्ष अदालत ने कहा, अवमानना के लिए दंडित करने की शक्ति इस अदालत के पास निहित एक संवैधानिक शक्ति है जिसे एक विधायी अधिनियम द्वारा भी नहीं लिया जा सकता है।

शीर्ष अदालत ने दहिया को नोटिस जारी कर सजा पर सुनवाई के लिए सात अक्टूबर को उपस्थित होने का निर्देश दिया है। दहिया से धन की वसूली के संबंध में न्यायालय ने कहा कि यह भू-राजस्व के बकाया के रूप में हो सकता है।

दहिया ने पीठ को लगाई गई लागत का भुगतान करने में असमर्थता के बारे में बताया था और इसके लिए संसाधनों की कमी का हवाला दिया था। दहिया ने पीठ के समक्ष कहा था कि वह दया याचिका के साथ राष्ट्रपति के पास जाएंगे।

शीर्ष अदालत का आदेश दहिया के 2017 के फैसले को वापस लेने के आवेदन पर आया है, जिसमें बिना किसी सफलता के 64 जनहित याचिका दायर करने के लिए उन पर 25 लाख रुपये की लागत लगाई गई थी।

डिस्क्लेमरः यह आईएएनएस न्यूज फीड से सीधे पब्लिश हुई खबर है. इसके साथ न्यूज नेशन टीम ने किसी तरह की कोई एडिटिंग नहीं की है. ऐसे में संबंधित खबर को लेकर कोई भी जिम्मेदारी न्यूज एजेंसी की ही होगी.