SC ने सीधे गडकरी को सुनने की जताई इच्छा, गाड़ियों में इलेक्ट्रिक तकनीक नीति का मामला

चीफ जस्टिस एस ए बोबड़े ने कहा कि क्या केंद्रीय मंत्री सुप्रीम कोर्ट आकर इस नीति के बारे में जानकारी दे सकते है. हम उन्हें कोई समन नहीं दे रहे, लेकिन उन्होंने इस बारे में कई बयान दिए है.

चीफ जस्टिस एस ए बोबड़े ने कहा कि क्या केंद्रीय मंत्री सुप्रीम कोर्ट आकर इस नीति के बारे में जानकारी दे सकते है. हम उन्हें कोई समन नहीं दे रहे, लेकिन उन्होंने इस बारे में कई बयान दिए है.

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Aditi Sharma
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Nitin Gadkari

परिवहन मंत्री नितिन गडकरी( Photo Credit : फाइल फोटो)

सार्वजनिक परिवहन के वाहनों में प्रदूषण रहित इलेक्ट्रिक तकनीक अपनाए जाने के मसले को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने सीधे परिवहन मंत्री नितिन गडकरी को सुनने की इच्छा जताई है.
इस बारे में दायर अर्जी पर सुनवाई करते हुए चीफ जस्टिस एस ए बोबड़े ने कहा कि क्या केंद्रीय मंत्री सुप्रीम कोर्ट आकर इस नीति के बारे में जानकारी दे सकते है. हम उन्हें कोई समन नहीं दे रहे, लेकिन उन्होंने इस बारे में कई बयान दिए है. हम उन्हें सुनना चाहेंगे.

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इस पर कोर्ट में मौजूद एडिशनल सॉलिसीटर जनरल नंदकर्णी ने कहा कि केंद्रीय मंत्री को कोर्ट आकर इस पॉलिसी के बारे में बताने में कोई दिक्कत नहीं है, लेकिन उनके यहां आने का गलत राजनीतिक इस्तेमाल याचिकाकर्ता द्वारा किया जा सकता है.

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इस पर जस्टिस बोबड़े ने कहा कि परिवहन मंत्री को सुनने का ये सुझाव कोर्ट ने खुद से दिया है. याचिकाकर्ता (प्रशांत भूषण) की मांग पर कोर्ट उन्हें नहीं बुला रहा. हो सकता है कि अधिकारियों के पास इस मसले से जुड़ी पूरी जानकारी न हो, इसलिए हमने उनको बुलाया है, लेकिन ये साफ रहे कि कोर्ट उन्हें कोई समन जारी नहीं कर रहा. बाद में कोर्ट ने ये भी जोड़ा कि अगर मंत्री ना भी आये, तो वो किसी दूसरे अधिकारी के जरिये अपनी बात रख सकते हैं.  हालांकि,आदेश में कोर्ट ने सिर्फ 4 हफ्ते में मंत्रालय को जवाब दाखिल करने की बात लिखवाई है.

याचिका में मांग

सुप्रीम कोर्ट में एनजीओ सेंटर फ़ॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन की ओर से दायर याचिका में आरोप लगाया गया है कि सरकार ने सार्वजनिक परिवहन और सरकारी वाहनों को इलेक्ट्रिक वाहनों में तब्दील करने की अपनी खुद की नीति का पालन करने के लिए ठोस प्रयास नहीं किए है. कोर्ट सरकार को नीति पर अमल करने का निर्देश दें.
याचिका में कहा गया है कि सरकार की उदासीनता की वजह से नागरिकों को संविधान की ओर से दिए गए स्वास्थ और शुद्ध पर्यावरण के अधिकारों का उल्लंघन हो रहा है.

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