सुप्रीम कोर्ट ने आईपीसी 497 कानून पर जब पति होता है सहमत तो कहां चली जाती है महिला की पवित्रता

पीठ के अन्य न्यायाधीश न्यायामूर्ति रोहिंटन नरीमन, न्यायमूर्ति ए.एम. खानविलकर, न्यायमूर्ति डी.वाई. चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति इंदु मल्होत्रा हैं।

पीठ के अन्य न्यायाधीश न्यायामूर्ति रोहिंटन नरीमन, न्यायमूर्ति ए.एम. खानविलकर, न्यायमूर्ति डी.वाई. चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति इंदु मल्होत्रा हैं।

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vineet kumar1
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सुप्रीम कोर्ट ने आईपीसी 497 कानून पर जब पति होता है सहमत तो कहां चली जाती है महिला की पवित्रता

सुप्रीम कोर्ट ने आईपीसी 497 कानून पर पूछा सरकार का पक्ष

सर्वोच्च न्यायालय ने बुधवार को व्यभिचार कानून के बचाव पर सरकार का पक्ष पूछा। इस कानून के तहत किसी विवाहित महिला से यौन संबंध रखने वाले विवाहित पुरुष को सजा देने का प्रावधान है। सरकार ने 'शादी की पवित्रता' को बनाए रखने के लिए भारतीय दंड संहिता(आईपीसी) की धारा 497 का बचाव किया है, जिसपर न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा की अध्यक्षता में पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने सरकार से पूछा है कि वह कैसे 'पवित्रता' बचाए रखेगी, जब महिला का पति अगर महिला के पक्ष में खड़ा हो जाए तो विवाहेतर संबंध गैर दंडनीय बन जाता है।

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पीठ के अन्य न्यायाधीश न्यायामूर्ति रोहिंटन नरीमन, न्यायमूर्ति ए.एम. खानविलकर, न्यायमूर्ति डी.वाई. चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति इंदु मल्होत्रा हैं।

न्यायमूर्ति नरीमन ने पूछा, 'तब विवाह की पवित्रता कहां चली जाती है, जब पति की सहमति होती है।'

प्रधान न्यायाधीश ने कहा, 'हम कानून बनाने को लेकर विधायिका की क्षमता पर सवाल नहीं उठा रहे हैं, लेकिन आईपीसी की धारा 497 में 'सामूहिक अच्छाई' कहां है।'

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प्रधान न्यायाधीश मिश्रा ने कहा, 'पति केवल अपने जज्बात पर काबू रख सकता है और पत्नी को कुछ करने या कुछ नहीं करने का निर्देश नहीं दे सकता।'

अदालत आईपीसी की धारा 497 और आपराधिक प्रक्रिया संहिता 198(2) की संवैधानिक मान्यता को चुनौती देने वाली जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही है।

Source : IANS

Modi Government Supreme Court Adultery Law consensual relationship
      
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