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दहेज उत्पीड़न के मामलों में नहीं होगी तुरंत गिरफ्तारी, सुप्रीम कोर्ट ने जारी किए निर्देश

दहेज उत्पीड़न के मामलों में झूठी शिकायतों को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को अहम दिशा निर्देश दिए हैं। इन दिशा निर्देशों से आईपीसी 498A के मामलों में झूठी शिकायतों पर कसंजा कसा जा सकेगा।

Updated on: 27 Jul 2017, 11:40 PM

नई दिल्ली:

दहेज उत्पीड़न के मामलों में झूठी शिकायतों को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को अहम दिशा निर्देश दिए हैं। इन दिशा निर्देशों से आईपीसी 498A के मामलों में झूठी शिकायतों पर कसंजा कसा जा सकेगा।

सुप्रीम कोर्ट में दो जस्टिस एके गोयल और यूयू ललित ने कहा कि कानून में दहेज उत्पीड़न को खत्म करने के लिए धारा 498A को जोड़ा गया था। इस दौरान यह सोच थी कि इस कानून के बनने के बाद महिलाओं पर हो रहे अत्याचारों पर रोक लगेगी। लेकिन वर्तमान में ऐसे कई मुकदमे दाखिल हो रहे हैं जिनमें मामूली विवाद को भी दहेज उत्पीड़न बताया जाता है।

बेंच ने कहा कि ऐसे में इन मामलों का हल अगर समाज के दखल से ही निकल सके तो बेहतर होगा। इसलिए हर जिले में 498A से जुड़ी शिकायतों को देखने के लिए हर जिले में एक फैमिली वेलफेयर कमेटी का गठन किया जाएगा।

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2014 में भी सुप्रीम कोर्ट ने दहेज से संबंधित मामलों में तुरंत गिरफ्तारी नहीं करने के निर्देश दिए थे। कोर्ट ने कहा था कि गिरफ्तारी केवल उसी स्थिति में होना चाहिए जब इसकी बहुत ज्यादा जरुरत हो। इस दौरान गिरफ्तारी की वजह मजिस्ट्रेट को बताई जाए। इस दौरान कोर्ट ने एक शिकायत पर पूरे परिवार को जेल भेज देने की बात को भी गलत बताया था।

सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों, जिला जजों और डिस्ट्रिक्ट लीगल सर्विसेज अथॉरिटी को जल्द ही इन निर्देशों पर अमल शुरू करने को कहा है।

यहां जानिए क्या हैं निर्देश

1. देश के हर जिले में फैमिली वेलफेयर कमेटी का गठन होगा जिसके सदस्यों को दहेज प्रथा से संबंधित कानूनों पर समझ ट्रेनिंग के द्वारा दी जाएगी।

2. 498A की शिकायत सबसे पहले कमेटी के पास जाए। कमेटी दोनों पक्षों से बात करके सच्चाई जानने की कोसिश करे इसके बाद 1 महीने की रिपोर्ट सौंपे। जरूरी हो तो जल्दी संक्षिप्त रिपोर्ट दे।

3. सामान्य स्थिति में किसी भी आरोपी की इस मामले में गिरफ्तारी न की जाए। बहुत गंभीर मामलों में ही रिपोर्ट आने के पहले गिरफ्तारी की जा सकती है। ऐसे में जांच अधिकारी और मजिस्ट्रेट विचार करके आगे की कार्रवाई करें।

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4. अगर मामले में पीड़िता की मौत हो गई हो या गंभीर रूप से घायल हो तो पुलिस गिरफ्तारी या अन्य उचित कार्रवाई के लिए स्वतंत्र होगी।

इनके अलावा पुलिस और स्थानीय कोर्ट की भूमिका पर भी सुप्रीम कोर्ट ने अहम निर्देश दिए-

1. हर प्रदेश 498A के मामले की जांच के लिए जांच अधिकारी निश्चित करेगा। कोर्ट ने कहा कि ऐसा एक महीने के भीतर ही किया जाए। ऐसे अधिकारियों को उचित ट्रेनिंग भी कराई जाए।

2. ऐसे मामलों में पुलिस प्राथमिक रूप से गिरफ्तारी न करते हुए पहले आरोपियों की भूमिका तय करे, ऐसा न हो कि एक शिकायत पर पूरा परिवार हिरासत में लिया जाए।

3. अगर मामला किसी अन्य शहर का है और आरोपी किसी अन्य जगह का तो उसे हर पेशी में मौजूद रहने से छूट दी जाए। मुकदमे में पेशी के दौरान परिवार के सभी सदस्यों की मौजूदगी न रखी जाए।

4. डिस्ट्रिक्ट जज को जरुरत लगे तो एक ही वैवाहिक विवाद से जुड़े सभी मामलों को एक सात जोड़ सकते हैं। ऐसे में पूरे मामले को हल करने में आसानी होगी।

5. जो लोग भारत से बाहर रह रहे हैं, उन लोगों का पासपोर्ट जब्त करने या उनके खिलाफ रेड कॉर्नर नोटिस जारी करने जैसी कार्रवाई बहुत ही जरुरत पड़ने पर ही की जाए।

6. वैवाहिक विवाद में अगर दोनों पक्षों में आपसी समझौता होता है तो जिला जज मामले को खत्म करने पर विचार कर सकते हैं।