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SC/ST कानून मामला: दलित संगठनों की याचिका पर तुरंत सुनवाई से सुप्रीम कोर्ट का इनकार

एससीएसटी कानून पर पुनर्विचार याचिका पर तुरंत सुनवाई से सुप्रीम कोर्ट ने इनकार किया है। याचिका में कोर्ट से आग्रह किया गया है कि वो इस मामले में अपने निर्देश पर रोक लगाए।

Updated on: 03 Apr 2018, 08:40 AM

नई दिल्ली:

एससीएसटी कानून पर पुनर्विचार याचिका पर तुरंत सुनवाई से सुप्रीम कोर्ट ने इनकार किया है। याचिका में कोर्ट से आग्रह किया गया है कि वो इस मामले में अपने निर्देश पर रोक लगाए।

दलित आंदोलन के दौरान देश भर में हो रही हिंसा के बाद दलित संगठनों के एक फेडरेशन ने याचिका दायर कर इस पर तुरंत सुनवाई की मांग की थी।  

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में दिये गए अपने एक निर्देश में कहा था कि एससीएसटी सुरक्षा कानून के प्रावधानों में बदलाव कर तुरंत गिरफ्तारी किये जाने पर रोक लगाई जाए।

ऑल इंडिया फेडरेशन ऑफ एससीएसटी ऑर्गेनाइज़ेशन ने कहा कि देश भर में हो रही हिंसा में कई लोगों का जान गई है और इसकी सुनवाई तुरंत कराई जाए। फेडरेशन करीब 150 ग्रुप की संस्था है।

चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि इस मामले की तुरंत सुनवाई से इनकार कर दिया। जस्टिस एएम खानविलकर और डीवाई चंद्रचूड़ इस बेंच के सदस्य हैं।

फेडरेशन की तरफ से वकील मनोज गोरकेला ने कहा कि कोर्ट के 20 मार्च को दिया गया आदेश 'अन्यायपूर्ण और अनुचित है और इस पर रोक लगानी चाहिये।'

इसके साथ ही उन्होंने कहा कि इस मामले की सुनवाई के लिये 5 सदस्यों वाली एक बड़ी बेंच गठित की जाए।

20 मार्च को दिये गए अपने एक आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि एससीएसटी कानून के प्रावधानों का 'कई बार' गलत इस्तेमाल किया जाता है और निर्दोष नागरिकों को दोषी करार दिया जाता है और सरकारी कर्मचारियों को अपनी ड्यूटी पूरी करने से भी रोकता है। जबकि इस कानून को बनाते समय ऐसा कभी नहीं सोचा गया था।

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कोर्ट ने कहा था, 'कानून के दुरुपयोग को देखते हुए पब्लिक सर्वेंट की गिरफ्तारी तबतक नहीं हो सकती है जबतक कि नियुक्ति करने वाली अथॉरिटी इस मामले में मंज़ूरी नहीं देती है और अन्य लोगों के मामले में एसएसपी में केस के सत्यापन के बाद मंज़ूरी नहीं देता है।'

साथ ही कोर्ट ने कहा था कि आगे की गिरफ्तारी की अनुमति के लिये कारणों की समीक्षा मैजिस्ट्रेट की निगरानी में होगी।

कोर्ट ने गलत तरीके से निर्दोषों को फंसाने से रोकने के लिये कोर्ट ने निर्देश दिया था कि प्रारंभिक जांच डीएसपी रैंक के अधिकारी से कराई जानी चाहिये ताकि ये पता लगाया जा सके कि कानून के तहत वो दोषी है या नहीं।

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