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प्रोन्नति में आरक्षण मौलिक अधिकार नहीं, सुप्रीम कोर्ट के फैसले से कई दल असहमत

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने एक बड़ा फैसला देते हुए कहा है कि ऐसा कोई मौलिक अधिकार (Fundamental Right) नहीं है जिसमें किसी व्यक्ति के लिए प्रोन्नति में आरक्षण का दावा करने का अधिकार सन्निहित हो.

Updated on: 10 Feb 2020, 08:30 AM

highlights

  • राज्य सरकार इस संदर्भ में आरक्षण देने को बाध्य नहीं है.
  • किसी व्यक्ति के लिए प्रोन्नति में आरक्षण का दावा सही नहीं.
  • सुप्रीम कोर्ट की इस टिप्पणी पर राजनीतिक दलों ने असहमति जताई.

नई दिल्ली:

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने एक बड़ा फैसला देते हुए कहा है कि ऐसा कोई मौलिक अधिकार (Fundamental Right) नहीं है जिसमें किसी व्यक्ति के लिए प्रोन्नति में आरक्षण का दावा करने का अधिकार सन्निहित हो और कोई अदालत राज्य सरकार को अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति को पदोन्नति में आरक्षण देने का आदेश दे सकती है. न्यायमूर्ति नागेश्वर राव और हेमंत गुप्ता की पीठ ने कहा, 'कानून की नजर में इस अदालत को कोई संदेह नहीं है कि राज्य सरकार इस संदर्भ में आरक्षण देने को बाध्य नहीं है. कोई मौलिक अधिकार नहीं है, जिसमें किसी व्यक्ति के लिए प्रोन्नति में आरक्षण का दावा करना सन्निहित हो. अदालत द्वारा ऐसा कोई आदेश नहीं दिया जा सकता, जिसमें राज्य सरकार को प्रोन्नति में आरक्षण देने का निर्देश दिया जाए.'

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डाटा संग्रह जरूरत
सरकारी नौकरियों में आरक्षण को लेकर संबद्ध डाटा संग्रह की अनिवार्यता का जिक्र करते हुए शीर्ष अदालत ने जोर देते हुए कहा कि यह कवायद आरक्षण शुरू करने के लिए जरूरी है. राज्य सरकार ने आरक्षण नहीं देने का फैसला लेने पर डाटा संग्रह की यह कवायद तब जरूरी नहीं है. शीर्ष अदालत ने कहा कि राज्य सरकार का यह अधिकार है कि वह नौकरियों में आरक्षण देने या प्रोन्नति में आरक्षण देने का फैसला करे या नहीं. यही नहीं, राज्य सरकार ऐसा करने के लिए किसी तरह से बाध्य नहीं है.

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कई राजनीतिक दलों में असहमति
सुप्रीम कोर्ट की इस टिप्पणी पर राजनीतिक दलों ने असहमति जताई है. भाजपा के सहयोगी दल लोजपा ने केंद्र सरकार से अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के अलावा अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति को दशकों से मिलते आ रहे आरक्षण के लाभों को इसी तरह से जारी रखने को सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाने की रविवार को अपील की है. लोजपा अध्यक्ष चिराग पासवान ने उच्चतम न्यायालय के उस निर्णय से अपनी पार्टी की असहमति को प्रकट करने के लिए ट्वीट किया, जिसमें कहा गया है कि राज्य सरकारें इन समुदायों को सरकारी नौकरियों या पदोन्नति में आरक्षण देने के लिए बाध्य नहीं हैं.