समान नागरिक संहिता के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने गोवा को shining example माना, कही ये बड़ी बातें
सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने कहा, संविधान निर्माताओं की अपेक्षा और सुप्रीम कोर्ट के कई बार कहने पर भी देश के सभी नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code) लागू करने के लिए अभी तक कोई प्रयास नहीं किया गया है.
नई दिल्ली:
गोवा के एक प्रोपर्टी विवाद के मामले में 31 पेज का फैसला देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने पासिंग कमेंट की तरह UCC (Uniform Civil Code यानी समान नागरिक संहिता) का ज़िक्र किया है. सुप्रीम कोर्ट ने गोवा को shining example बताते हुए कहा, जिन मुस्लिम लोगों की शादी गोवा में रजिस्टर्ड हुई है, वो बहुविवाह नहीं कर सकते. यहां तक कि इस्लाम को मानने वाले बोलकर तलाक नहीं दे सकते. सुप्रीम कोर्ट ने के जस्टिस दीपक गुप्ता और अनिरुद्ध बोस की बेंच ने गोवा के एक प्रॉपर्टी विवाद के मामले में ये टिप्पणियां कीं. जानें सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा-
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- संविधान निर्माताओं की अपेक्षा और सुप्रीम कोर्ट के कई बार कहने के बावजूद देश के सभी नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता लागू करने के लिए अभी तक कोई प्रयास नहीं किया गया है.
- जहां संविधान निर्माताओं ने अनुच्छेद 44 के भाग 4 में नीति निर्देश सिद्धांतों पर चर्चा करते हुए उम्मीद जताई थी कि देश के सभी हिस्सों में समान नागरिक संहिता लागू करने के प्रयास किए जाएंगे, लेकिन अब तक इसे लेकर कोई प्रयास नहीं हुआ.
- हालंकि हिन्दू पर्सनल लॉ को 1956 में कानून की शक्ल दी गई लेकिन उसके बाद समान नागरिक संहिता लागू करने के लिए कोई कदम नहीं उठाए गए.
- सुप्रीम कोर्ट मोहम्मद अहमद खान बनान शाहबानो और सरला मुदगल बनाम केंद्र सरकार के मामले में दिए अपने फैसले में इसे लागू करने की सिफारिश कर चुका है (1982 में शाहबानो केस मुस्लिम महिलाओं के मेंटेनेंस राइट को लेकर था, वही सरला मुदगल फैसले में सभी नागरिकों के लिए एकसमान क़ानून की बात कही थी) लेकिन इसके बावजूद इस बारे में कुछ नहीं हुआ.
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सुप्रीम कोर्ट में क्या था मामला
सुप्रीम कोर्ट ने जिस मामले में यह टिप्पणी की, वह गोवा के एक परिवार के संपत्ति विवाद से जुड़ा था. गोआ में 2016 तक पुर्तगाली सिविल लॉ लागू था, जिसके मुताबिक गोवा या गोवा से बाहर सम्पत्ति रखने वाले गोवा के मूल निवासियों का संपत्ति बंटवारा इसी कानून से होता था. हालंकि 2016 में पुर्तगाली सिविल कोड के कई प्रावधानों को गोवा उत्तराधिकार कानून से बदल दिया गया था. इसी के कुछ प्रावधानों को चुनौती दी गई थी.
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