सर्वोच्च न्यायालय के कॉलेजियम ने एक अभूतपूर्व फैसले में भविष्य में विभिन्न उच्च न्यायालयों और शीर्ष अदालत के न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए अपनी सिफारिशों को सार्वजनिक करने का निर्णय लिया है।
कॉलेजियम ने तय किया है प्रमोशन, ट्रांसफर और स्थायीकरण जैसी सभी जानकारी अब से सुप्रीम कोर्ट के अधिकारिक वेबसाइट पर डाली जाएगी। ये फैसला 3 अक्टूबर को लिया गया है।
फ़ैसले में कहा गया है कि इसके बाद से कॉलेजियम सिस्टम के तहत जो भी फैसले लिए जाएं उनके कारण को सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर डाली जाए।
कॉलेजियम ने निर्णय लिया है कि वह उच्च न्यायालय और शीर्ष अदालत के न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए नामों को सिफारिश करने के कारणों को भी सार्वजनिक करेगा।
कॉलेजियम ने यह भी निर्णय लिया है कि वह उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए उम्मीदवार के नामों की सिफारिश नहीं करने के कारणों को भी सार्वजनिक करेगा।
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जब केंद्र सरकार को हाई कोर्ट बेंच में चल रहे किसी केस की शुरुआती प्रगति को लेकर सिफारिश भेजी जाती है या हाई कोर्ट में किसी जज की स्थायीकरण, हाई कोर्ट के जज की पदोन्नति, हाई कोर्ट के चीफ़ जस्टिस या जज का तबादला और हाई कोर्ट में चल रहे मामले को सुप्रीम कोर्ट में लाने से संबंधित जानकारी वेबसाइट्स पर डालना होगा। क्योंकि हर मुद्दे पर कॉलेजियम सिस्टम अलग अलग तरीके से सोचती है।
इस प्रस्ताव में कहा गया है, 'इस प्रस्ताव के लाने का मकसद ये सुनिश्चित करना है कि सिस्टम में पारदर्शिता और कॉलेजियम सिस्टम की गोपनियता बरकरार रह सके।'
वेबसाइट पर जो पहली जानकारी दी गई है उसमें तीन न्यायिक अधिकारी और एक ITAT (इनकम टैक्स अपेलैट ट्रिब्यूनल) के न्यायिक सदस्य की मद्रास हाई कोर्ट के जज की तोर पर नियुक्ति की जानकारी डाली गई है।
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इन सभी अधिकारियों के नाम इस प्रकार हैं- एस रामाथिलंगम (पुडुचेरी के मुख्य जज), आर थरानी (प्रिंसपल डिस्ट्रीक्ट जज, मदुरई), पी राजामणिकम (मद्रास हाईकोर्ट में प्रिंसिपल बेंच में रजिस्टरार) और वासुदेवन वी नादाथर (ITAT कोलकाता में न्यायिक सदस्य)
यह फैसला ऐसे वक्त आया है, जब कर्नाटक उच्च न्यायालय के न्यायाधीश जयंत पटेल के इस्तीफे को लेकर तीव्र बहस चल रही है। जयंत पटेल ने अपना तबादला इलाहाबाद उच्च न्यायालय किए जाने से नाराज होकर इस्तीफा दे दिया था। न्यायमूर्ति पटेल कर्नाटक उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश बनने वाले थे, लेकिन उनका वहां से स्थानांतरण कर दिया गया।
कॉलेजियम प्रणाली के आलोचक कहते हैं कि न्यायाधीशों के चयन की इस पद्धति में पारदर्शिता नहीं होती है और कभी-कभी यह कुछ सदस्यों की सनक और कल्पना के अनुसार काम करती है।
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Source : News Nation Bureau