सर्वोच्च न्यायालय ने मंगलवार को कहा कि वह अयोध्या विवाद के सौहार्दपूर्ण समाधान के लिए मध्यस्थता का आदेश जारी कर सकता है. अदालत ने औपचारिक आदेश जारी करने को भी अगली सुनवाई की तारीख पांच मार्च तक के लिए टाल दिया. प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति एसए बोबडे, न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर वाली पांच न्यायाधीशों की संवैधानिक पीठ ने विवादित स्थल को तीन हिस्सों में बांटने के इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 2010 के फैसले को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं की सुनवाई के मुद्दे पर मध्यस्थता का सुझाव दिया. उच्च न्यायालय ने एक हिस्सा निर्मोही अखाड़ा को, एक हिस्सा रामलला को और एक हिस्सा मूल मुस्लिम वादी को देने का आदेश दिया था.
न्यायमूर्ति बोबडे ने कहा, 'हम दो समुदायों के बीच संबंधों को बेहतर बनाने की संभावनाओं पर विचार कर रहे हैं.' उन्होंने कहा, 'अदालत के रूप में हम केवल संपत्ति के मुद्दे का फैसला कर सकते हैं.'
हिंदू पक्षों की ओर से पेश हुए वकीलों ने हालांकि सुझाव को स्वीकार नहीं किया है. लेकिन मुस्लिम पक्षों की ओर से पेश हुए वकीलों ने इसे स्वीकार कर लिया और और कहा कि मध्यस्थता और 2010 के इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर नियमित सुनवाई साथ-साथ जारी रहने चाहिए.
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मुस्लिम पक्ष का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ वकील राजीव धवन ने पीठ को बताया, 'हमारी ओर से, हम काफी लंबे अरसे से इसके (मध्यस्थता और सुनवाई) एक साथ जारी रहने को लेकर सहमत हैं.'
हिंदूवादी की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील सीएस वैद्यनाथन ने कहा, 'इस तरह के मामलों में ज्यादातर का हल नहीं निकलता है. इसे एक बार से ज्यादा बार आजमाया जा चुका है. हम मध्यस्थता का एक और चरण नहीं चाहते हैं.'
अन्य हिंदू पक्ष की ओर से पेश हुए वकील रंजीत कुमार ने कहा, 'इसका प्रयास अतीत में भी किया गया था, जिसका कोई फायदा नहीं हुआ था. मध्यस्थता संभव नहीं है.'
Source : IANS