SC ने हिंदू उत्तराधिकार कानून के भेदभाव करते प्रावधानों पर केंद्र को चेताया
इस याचिका ने संपत्ति हस्तांतरण मामले में स्त्री एवं पुरुष के लिए अलग-अलग नियम-कायदे होने को जेंडर के प्रति ‘अन्याय’ मानते हुए मुद्दे को फिर से बहस के केंद्र में ला दिया है.
highlights
- हिंदू उत्तराधिकार क़ानून के सेक्शन 15 और 16 को चुनौती दी गई
- याचिकाकर्ता का कहना है कि इसके लैंगिक भेदभाव को बढ़ावा
- सुप्रीम कोर्ट ने जवाब दाखिल की मोहलत दे केंद्र को चेताया
नई दिल्ली:
हिंदू उत्तराधिकार कानून के महिलाओं से भेदभाव करने वाले प्रावधानों को चुनौती देने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को जवाब दाखिल करने के लिए 4 हफ्ते का वक़्त और दिया है. सर्वोच्च न्यायालय ने चेतावनी भरे लहजे में कहा है कि सरकार के पास अपना रुख साफ करने का यह आखिरी मौका है. इस मियाद में भी जवाब दाखिल नहीं करने की सूरत में अदालत अपना आदेश पास कर देगी. शीर्ष अदालत में दायर याचिका में याचिकाकर्ता ने हिंदू उत्तराधिकार क़ानून के सेक्शन 15 और 16 को चुनौती दी है.
याचिका के जरिये जिन प्रावधानों को चुनौती दी गई है, उनमें वह क़ानूनी प्रावधान भी शामिल हैं, जिसके मुताबिक अगर किसी शादीशुदा निःसंतान पुरुष की मौत हो जाती है, तो उसकी संपत्ति पर उसके माता-पिता का हक होता है. हालांकि महिला के मामले में ऐसा नहीं है. इसी तरह किसी निःसंतान विधवा की मौत के मामले में उसकी संपत्ति उसके माता-पिता के बजाय उसके पति के माता-पिता या रिश्तेदारों को मिलती है.
इसके पहले सुप्रीम कोर्ट ने हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 15 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिका को तीन जजों की बेंच के पास भेज दिया था. इस याचिका ने संपत्ति हस्तांतरण मामले में स्त्री एवं पुरुष के लिए अलग-अलग नियम-कायदे होने को जेंडर के प्रति ‘अन्याय’ मानते हुए मुद्दे को फिर से बहस के केंद्र में ला दिया है.
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