सुप्रीम कोर्ट इस बात पर विचार करने के लिए सहमत हो गया है कि क्या राज्य मानवाधिकारआयोग के पास आपराधिक चिकित्सा लापरवाही के मामले की जांच करने की शक्ति है, जबकि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी)ने इसके विपरीत राय रखी है।
जस्टिस हृषिकेश रॉय और संजय करोल की पीठ तेलंगाना की आईवीएफ डॉक्टर रोया रोजती द्वारा दायर एक मामले की सुनवाई कर रही थी।
पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता पर चिकित्सा लापरवाही का आरोप लगाया गया है और उसका तर्क है कि क्या राज्य मानवाधिकार आयोग के पास आपराधिक चिकित्सकीय लापरवाही के मामले की जांच करने की शक्ति है, जबकि एनएचआरसी द्वारा याचिकाकर्ता के पक्ष में एक विपरीत विचार लिया गया था।
शीर्ष अदालत ने 29 मार्च, 2016 को पारित एक आदेश में एनएचआरसी द्वारा लिए गए दृष्टिकोण को नोट किया।
एनएचआरसी ने कहा था : आयोग द्वारा जारी निर्देश : यह मामला एक निजी नर्सिग होम द्वारा चिकित्सकीय लापरवाही के आरोपों से संबंधित है। चूंकि लोक सेवक इस मामले में शामिल हैं, इसलिए मामले को खारिज कर दिया गया है। पत्र जारी करने के बाद फाइल एसबी-2 को भेजी जाए। कार्रवाई की गई : लाइन में बर्खास्त (दिनांक 3/29/2016)। 5.17.2016 को स्थिति : बर्खास्त।
शीर्ष अदालत ने मामले को चार सप्ताह के बाद आगे की सुनवाई के लिए पोस्ट किया और इस बीच दलीलें पूरी करने का निर्देश दिया।
चिकित्सा व्यवसायी पर तपेदिक से पीड़ित एक मरीज को प्रजनन संबंधी दवाएं देने पर आपराधिक चिकित्सकीय लापरवाही का आरोप लगाया गया है और अंतत: ये दवाएं उसके लिए घातक साबित हुईं। मामला एनएचआरसी को भेजा गया था जिसने यह कहते हुए हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया कि इसमें कोई लोक सेवक शामिल नहीं है। हालांकि राज्य मानवाधिकार आयोग ने रोजाती को नोटिस जारी कर उनसे दस्तावेज मांगे हैं।
रोजाती की ओर से पेश अधिवक्ता नमित सक्सेना ने तर्क दिया कि मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम की धारा 21 के तहत एक वैधानिक रोक है कि एक बार एनएचआरसी या किसी अन्य राज्य मानवाधिकार आयोग ने किसी शिकायत पर फैसला सुनाया, तो वही जांच कोई और राज्य मानवाधिकार आयोग नहीं कर सकता।
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Source : IANS