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सुनंदा पुष्कर केस: शशि थरूर ने आत्महत्या के लिए उकसाया या नहीं? आज होगा तय

दिल्ली की अदालत सुनंदा पुष्कर मामले में उनके पति शशि थरूर पर आत्महत्या के लिए उकसाने के लिए तय कर सकती है. हालांकि एसआईटी जांच में शशि थरूर को बरी किया जा चुका है.

Updated on: 02 Jul 2021, 07:24 AM

highlights

  • 17 जनवरी 2014 को दिल्ली के होटल में मृत मिली थीं सुनंदा
  • एसआईटी जांच में शशि थरूर को क्लीन चिट मिल चुकी है
  • दिल्ली पुलिस ने थरूर के खिलाफ 498 ए और 306 का मामला किया था दर्ज

नई दिल्ली:

कांग्रेस सांसद शशि थरूर की पत्नी सुनंदा पुष्कर की मौत मामले में आरोप तय के मामले में शुक्रवार को दिल्ली की एक अदालत में सुनवाई है. इससे पहले 16 मई को विशेष न्यायाधीश गीतांजली गोयल ने कोरोना वायरस महामारी के मद्देनजर आदेश देने को लेकर 16 जून तक सुनवाई टाल दी थी. कोर्ट ने दिल्ली पुलिस और थरूर की तरफ से पेश हुए वकीलों की दलीलें सुनने के बाद 12 अप्रैल को फैसला सुरक्षित रखा था. जिसके बाद कई बार ये मामला टल चुका है. दिल्ली पुलिस ने थरूर के खिलाफ धारा-498 ए और 306 के तहत मामला दर्ज किया था, लेकिन उन्हें गिरफ्तार नहीं किया था. पांच जुलाई 2018 को थरूर को जमानत मिल गई थी.

अहम होगा आदेश

इस मामले में कोर्ट से आने वाला आदेश बेहद अहम होगा. क्योंकि कोर्ट के इस आदेश से साफ होगा कि सात साल पुराने इस मामले में कांग्रेस नेता शशि थरूर पर उनकी पत्नी सुनंदा पुष्कर को आत्महत्या के लिए उकसाने का मामला कोर्ट में चलेगा या नहीं. कोर्ट के इस फैसले से यह भी साफ होगा सुनंदा पुष्कर की मौत के मामले में शशि थरूर को राहत मिलेगी या फिर उनकी मुश्किलें और बढ़ेंगी.

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गौरतलब है कि 7 साल पुराने मामले में शशि थरूर को आज तक एक भी बार गिरफ्तार नहीं किया गया है. पुष्कर 17 जनवरी 2014 की रात यहां एक होटल में मृत मिली थीं. उक्त दंपत्ति होटल में रह रहा था. क्योंकि उस समय थरूर के आधिकारिक बंगले की साज-सज्जा का काम चल रहा था. दिल्ली पुलिस ने थरूर के खिलाफ धारा-498 ए और 306 के तहत मामला दर्ज किया था, लेकिन उन्हें गिरफ्तार नहीं किया था. पांच जुलाई 2018 को थरूर को जमानत मिल गई थी.

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कोर्ट में इस मामले पर 12 अप्रैल को बहस पूरी हो गई थी. पाहवा ने थरूर को आरोपमुक्त करने का आग्रह करते हुए कहा था कि उनके मुवक्किल के खिलाफ धारा 498ए (पति या उसके किसी रिश्तेदार द्वारा महिला के साथ क्रूरता) या 306 (आत्महत्या के लिए उकसाना) के तहत लगाए गए आरोपों का कोई सबूत नहीं है.