logo-image

सियासी दांव-पेंच में फंसा सारस, नियम भी जायज

सियासी दांव-पेंच में फंसा सारस, नियम भी जायज

Updated on: 26 Mar 2023, 11:15 AM

लखनऊ:

उत्तर प्रदेश का राज्यपक्षी सारस इन दिनों सियासी दुनिया में चर्चित है। इसे लेकर सत्तारूढ़ दल और विपक्ष आमने-सामने है। दरअसल कुछ दिन पहले अमेठी जिले के मंडखा निवासी आरिफ सोशल मीडिया पर तब चर्चा में आ गए, जब एक सारस पक्षी के साथ उनकी तस्वीरें और वीडियो वायरल होने लगे। प्रदेश और राष्ट्रीय स्तर की मीडिया तक उनका इंटरव्यू लिया।

इतना ही नहीं कुछ दिन पूर्व अमेठी आए सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने भी मंडखा जाकर मो. आरिफ से मुलाकात की थी। जिसके बाद सारस और आरिफ की दोस्ती सुर्खियों में आ गई। इसके बाद वन विभाग के अफसर सारस को वापस ले गए। इसके बाद से इस मामले ने तूल पकड़ा हुआ है।

वन विभाग के अनुसार, जून 2022 में हुई गणना के अनुसार अभी राज्य में 19,180 सारस हैं। इटवा और औरैया में इनकी संख्या सबसे ज्यादा 4,437 है। जबकि 2021 दिसंबर में इनकी संख्या 17,665 थी। तकरीबन यह 1,500 के आस-पास बढ़े हैं। सारस की गणना के लिए समय निश्चित होता है और एक ही समय में पूरे प्रदेश में गणना की जाती है। कोरोना काल में वर्ष 2020 में गणना नहीं हो सकी थी। कोरोना संक्रमण कम होने के बाद वर्ष 2021 में सारस की गणना फिर शुरू हुई।

वन विभाग के वन्य जीव प्रतिपालक और लुप्तप्राय परियोजना के अबु अरशद का कहना है कि यह उड़ने वाले पक्षियों में सबसे ऊंचा होता है। इसकी ऊंचाई 5 से 6 फीट का होता है। यह नर मादा एक जैसा दिखता है। ग्रुइडाए प्रजाति यह अकेला ऐसा पक्षी है जो कि हिमालय के दक्षिण भाग में प्रजनन करते हैं। यूपी के ज्यादातर इलाकों में पाया जाता है। लेकिन इटावा, मैनपुरी, शाहजहांपुर, एटा, अलीगढ़ में अधिक मात्रा में पाया जाता है। सारस का वास नदी के किनारे, दलदलीय जमीन, झील, तालाब खुले आसमान में रहता है। इसका भोजन जलीय पौधे के जड़ें, तना और अनाज के दाने खाता है।

इसके अलावा यह छिपकली, मेढ़क, मछली और सांप आदि खाता है। जुलाई से दिसंबर के बीच प्रजनन करता है। यह अपना घोंसला झील तालब के पास घास फूस से बनाता है। इसके अलावा यह अपने घोंसले के लिए काफी संवेदनशील होते हैं। अपने घर के पास किसी को आने नहीं देते। इनके बच्चे इनके साथ एक साल तक रहते हैं। यह जोड़े में पाए जाते हैं। शाम को ग्रुप में एकत्रित होते हैं। यह आबादी के नजदीक चले जाते है।

अमेठी वाली घटना को देखें तो उस पर मानव छाप पड़ गई। जिससे उसके अंदर का डर खत्म हो गया। सारस आबादी में रहा उसके पोषक तत्व नहीं मिले। वह ज्यादा स्वस्थ्य नहीं है। डाक्टरों ने उन्हें जू में रखने की सलाह दी है। इसे पालने में एक गलत संदेश जाएगा। कुछ दिन बाद लोग तरह तरह के जानवर पालने की मांग करने लगेंगे। हालंकि ऐसे पक्षियों को पकड़ना, छूना और उन्हें परेशान करना, उनके अंडे को छूना एक अपराध की श्रेणी में आता है।

लखनऊ चिड़िया घर के डॉक्टर ब्रजेंद्र कहते हैं कि सारस पक्षी बहुत संवेदलशील माना जाता है। यह आलू और चावल खाने वाला पक्षी नहीं है। इसको सुचारू रूप से एक डाइट मिलना बहुत जरूरी होता है। जिससे यह हस्ट पुष्ट रह सके। यह घास, दाने खाता है। फिलहाल एक साल से मनुष्य के साथ रह रहे सारस में अच्छी ग्रोथ नहीं है। इसकी प्रवृत्ति पालतू टाइप की हो गई है। यह करीब एक बार में 500 से 700 ग्राम के बीच में भोज्य पदार्थ लेता है। यह सारस वयस्क है। यह बाजरा, छिटके दाने लेता है।

चिड़ियाघर के दूसरे डाक्टर अशोक कश्यप कहते हैं कि कोई भी जानवर और पशु पक्षी की अगर आप सेवा करते हैं तो आप से लगाव करने लगता है। लेकिन आप ऐसा ज्यादा दिनों तक नहीं कर सकते हैं। क्योंकि इनका वाइल्ड नेचर में बदलाव आ जाता है। हो सकता है आगे चलकर किसी के ऊपर आक्रमण कर दे तो यह आपके लिए घातक हो जाएगा। वाइल्ड जानवर को इसलिए रखना मना होता है कि आप उसे उसकी डाइट नहीं दे पाएंगे। उसका स्वास्थ्य खराब हो सकता है। उसको जीवन से हाथ भी धोना पड़ सकता है। वाइल्ड पशु पक्षियों को पालना ठीक नहीं है। उनके नेचर में बदलाव के कारण वो फिर सरवाइव नहीं कर सकते हैं।

वाइल्ड लाइफ बोर्ड उत्तराखंड के सदस्य रह चुके कौशेलंद्र सिंह वाइल्ड लाइफ में सारस एक संरक्षित पक्षी है। अगर किसी को घायल अवस्था में मिलता है तो उसे वन विभाग को सूचित करना चहिए। उसकी नेचर से छेड़छाड़ नहीं की जानी चाहिए। उसकी डाइट नहीं मिल पाई होगी। अगर वह मनुष्य के संपर्क में ज्यादा रहा तो वह प्रजनन नहीं करेगा। ऐसे पशु पक्षी को पालना ठीक नहीं है। वरना मनुष्य कहने लगेंगे कि हमे चीता पालना है। इसके नेचर से खिलवाड़ ठीक नहीं है।

पशु पक्षी के जानकर विवेक सिंह कहते हैं सारस उड़ने वाले पक्षियों में सबसे बड़ा पक्षी है। नर और मादा सारस जोड़े में रहकर अपना कुनबा बनाते हैं। इनके बीच में अटूट प्रेम होता है, अगर जोड़े में किसी एक सारस की किसी कारण से मौत हो जाती है, तो दूसरा सारस भी दम तोड़ देता है। सारस तालाब, पोखर और झीलों के किनारे की दलदली जमीन के साथ कृषि योग्य भूमि को अपना बसेरा बनाते हैं और खेतों के कीड़े-मकोड़े से अपना भोजन करते है। इन्हें किसानों का मित्र भी माना जाता है। सारस वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1972 की अनूसूची में दर्ज हैं।

वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक रतनमणि लाल कहते हैं कि इस तरह के वन्यजीव के लिए नियम बहुत स्पष्ट हैं। ऐसे जानवरों और पक्षी की देखरेख वन विभाग के अंतर्गत है। किसी व्यक्ति के लिए पशु पक्षी से लगाव ठीक बात है लेकिन इसकी देखरेख किसी विशेषज्ञ द्वारा ही होना चाहिए। जो नियम है उसका पालन हो। किसी पार्टी और नेता के लिए छोटी बात को राजनीतिक रंग देना ठीक नहीं है। राज्य में और भी मामले हैं। इसे राजनीतिक मुद्दा बनाना ठीक नहीं है। वन विभाग अपने नियम के अनुसार कार्य करे।

डिस्क्लेमरः यह आईएएनएस न्यूज फीड से सीधे पब्लिश हुई खबर है. इसके साथ न्यूज नेशन टीम ने किसी तरह की कोई एडिटिंग नहीं की है. ऐसे में संबंधित खबर को लेकर कोई भी जिम्मेदारी न्यूज एजेंसी की ही होगी.