संविधान के प्रस्तावना से दो शब्दों को बदलने के बिल पर हंगामा

भारतीय जनता पार्टी के सांसद केजे अल्फोंस ने राज्यसभा में प्राइवेट मेंबर बिल लाकर प्रस्तावना से 'समाजवादी' शब्द हटाने का प्रस्ताव पेश किया. जिसके बाद हंगामा हो गया.

author-image
Satyam Dubey
New Update
rajyasabha

rajyasabha ( Photo Credit : File Photo)

समाजवादी और पंथनिरपेक्ष शब्दों को 42वें संविधान संशोधन के माध्यम से जोड़ा गया था. जिसको हटाने की मांग लगातार उठ रही है. भारतीय जनता पार्टी के राज्यसभा सांसद सुब्रमण्यन स्वामी ने सोमवार को कहा कि उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका डाली है जिसमें संसद की शक्ति पर सवाल उठाते हुए प्रस्तावना में किए गए बदलाव को निरस्त करने की मांग की गई है. जबकि एक अन्य भारतीय जनता पार्टी के सांसद केजे अल्फोंस ने राज्यसभा में प्राइवेट मेंबर बिल लाकर प्रस्तावना से 'समाजवादी' शब्द हटाने का प्रस्ताव पेश किया. आपको बता दें कि नियम के मुताबिक राष्ट्रपति की पूर्व सहमति के अभाव में बिल पर चर्चा की अनुमति नहीं दी गई और उपसभापति हरिवंश ने इसे रिजर्व रखने की व्यवस्था दी. 

Advertisment

यह भी पढ़ें: विधानसभा चुनावों में राम के नाम से ही बनेगा बीजेपी का काम? जानें पूरा गणित

राज्यसभा सांसद सुब्रमण्यन स्वामी ने सर्वोच्च न्यायालय में अपनी याचिका का जिक्र एक ट्वीट में किया है. उसमें उन्होंने जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश पंकज मित्तल के बयान से जुड़ी एक खबर को भी रीट्वीट किया है. आपको बता दें कि न्यायमूर्ति मित्तल ने एक कार्यक्रम में 'धर्म और भारतीय संविधान' विषय पर बोलते हुए कहा है कि भारत युगों-युगों से आध्यात्मिक राष्ट्र रहा है, लेकिन संविधान में 'पंथनिरपेक्ष' शब्द जोड़कर इसकी विराट आध्यात्मिक छवि को संकुचित कर दिया गया. उन्होंने कहा कि हमारे देश का संवैधानिक नाम आध्यात्मिक गणतंत्र भारत होना चाहिए था.

यह भी पढ़ें: IND vs SA : विराट कोहली पर अब होगा फैसला, कप्‍तानी को लेकर ये है अपडेट 

समाजवादी और पंथनिरपेक्ष शब्दों को संविधान की प्रस्तावना से हटाने के पक्ष में सबसे बड़ी दलील इस बात की दी जाती है कि संविधानसभा ने इसकी जरूरत महसूस नहीं की थी. उनका कहना है कि प्रस्तावना में अंग्रेजी के सोशलिस्ट  और सेक्युलर शब्द जोड़ तो दिए गए, लेकिन इनकी व्याख्या नहीं की गई. ऐसे में सेक्युलर की व्याख्या 'धर्मनिरपेक्ष' के रूप में की जाती है और इस शब्द का राजनीतिक दुरुपयोग किया जाता रहा है. उनकी दलील है कि 1976 में संविधान संशोधन के जरिए प्रस्तावना में धर्मनिरपेक्ष शब्द जुड़ने के बाद से मुस्लिम तुष्टीकरण की बयार बहने लगी जो धीरे-धीरे देश के लिए एक बड़ा राजनीतिक संकट का रूप लेने लगी.

Constitution of India preamble of india 42nd amendment rajyasabha bill socialist and secular
      
Advertisment