मध्यप्रदेश में विधानसभा के चुनाव को भले ही दो साल बाकी हों,मगर सियासी संग्राम लगातार बढ़ता जा रहा है। आगामी समय में होने वाली नगरीय निकाय और पंचायत के चुनाव के जरिए विधान सभा चुनाव की जमीन और पुख्ता करने के लिए जोर आजमाइश होगी। आने वाला साल मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के लिए चुनौतियों का काल रहने वाला होगा क्योंकि एक तरफ जहां उन्हें अपनी छवि को जन हितैषी बनाए रखने की चुनौती है, तो दूसरी ओर पार्टी के भीतर से उठने वाली आवाजों से मुकाबला है।
राज्य की सियासत में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को पांव-पांव वाले भैया से लेकर बेटियों के मामा और महिलाओं के भाई के तौर पर पहचाना जाता रहा है। वक्त गुजरने के साथ अपनी छवि बनाए रखना और नई छवि को गढ़ना सियासी तौर पर किसी भी राजनेता के लिए आसान नहीं होता, ऐसा ही कुछ शिवराज सिंह चौहान के साथ भी है।
शिवराज सिंह चौहान लगभग डेढ़ दशक से राज्य के मुख्यमंत्री हैं। इस दौरान उन्होंने कई ऐसी योजनाओं को जमीन पर उतारा है जिसनें उन्हें नई पहचान दी है। उदाहरण के तौर पर लाडली लक्ष्मी योजना, कन्यादान विवाह योजना ऐसी योजनाएं रही है जिसके बल पर वे आधी आबादी के चहेते नेता बन गए तो वही संबल योजना ने उन्हें गरीबों के करीब पहुंचने का मौका दिया। वर्तमान में उनके लिए बड़ी चुनौती अन्य पिछड़ा वर्ग के आरक्षण का मामला बनी हुई है। राज्य की पूर्वर्ती कमलनाथ सरकार ने ओबीसी आरक्षण को बढ़ाकर 27 फीसदी किया था मगर मामला न्यायालय तक पहुंचने के कारण इस आरक्षण का ओबीसी वर्ग को पूरा लाभ नहीं मिल पा रहा है।
एक तरफ जहां कई नौकरियों में ओबीसी वर्ग को बढ़े हुए आरक्षण का लाभ नहीं मिल रहा है तो वहीं दूसरी ओर पंचायत चुनाव ने नई बहस को जन्म दे दिया है। सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश पर राज्य निर्वाचन आयोग ने ओबीसी वर्ग के लिए आरक्षित पंचायत क्षेत्रों में चुनाव ही स्थगित कर दिए हैं। कांग्रेस लगातार इसके लिए शिवराज सरकार को जिम्मेदार ठहरा रही है। कांग्रेस के चौतरफा हमले मुख्यमंत्री पर ही है, तो वहीं सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में ओबीसी आरक्षण पर पुनर्विचार याचिका दायर की है। साथ ही मुख्यमंत्री की ओर से ओबीसी आरक्षण के बगैर चुनाव न होने की बात कही जा रही है।
जानकारों का मानना है कि राज्य सरकार और मुख्यमंत्री चौहान ऐसे दो राहे पर खड़े है जहां से उन्हें और पार्टी को फायदा हो सकता है तो नुकसान की भी आशंका को नकारा नहीं जा सकता। पंचायत चुनाव में ओबीसी आरक्षण लागू रहा तो भाजपा फायदे में जाएगी और नही तो नुकसान होना तय है।
इतना ही नहीं मुख्यमंत्री चौहान लगातार किसानों की आय को दोगुना करने का वादा करते रहे है। इसके ठीक उलट किसानों के आंदोलन, खाद का संकट, कांग्रेस काल की किसानों की कर्ज माफी योजना का अटकना और उपज खरीदी में गड़बड़ी की शिकायतों का दौर जारी है।
भाजपा के प्रवक्ता दुर्गेश केशवानी का कहना है, भाजपा की चाहे राज्य में सरकार हेा या केंद्र में, दोनों ही सरकारों ने जनता के हित में काम किया हैं। राज्य में आधी आबादी से लेकर हर वर्ग के कल्याण की योजनाएं चल रही है। शिवराज की लोकप्रियता बरकरार है, कांग्रेस ने 15 माह के शासन कल में मध्यप्रदेश केा पीछे धकेलने का काम किया है। कमल नाथ की विधानसभा चुनाव से पहले जो प्राथमिकताएं थी वह चुनाव के बाद बदल गई और आईफा अवार्ड जैसे आयेाजनों ने जगह ले ली। जनता जान चुकी है कांग्रेस के चेहरे को। शिवराज और भाजपा की प्राथमिकता जनता का कल्याण रही है, यही कारण है कि उप-चुनाव में कांग्रेस केा जनता ने आईना दिखाने का काम किया है।
भाजपा को जहां आने वाले समय में शिवराज के लिए कोई बड़ी चुनौती नजर नहीं आती तो वहीं कांग्रेस शिवराज पर सवाल खड़े करती है। कांग्रेस प्रवक्ता अब्बास हफीज का कहना है, चौहान की छवि तो वर्ष 2018 के विधानसभा के चुनाव में खत्म हो चुकी थी। अपने को महिलाओं के भाई और बेटियों के मामा कहने वाले शिवराज के राज में महिलाओं, बालिकाओं पर अपराध बढ़े, किसानों की आमदनी दोगुनी के दावे किए वहीं किसानों ने आत्महत्याएं की । इन मामलों में प्रदेश देश में सबसे उपर चला गया था, यही कारण था कि वर्ष 2018 के चुनाव में जनता ने उन्हें सत्ता से बाहर कर दिया।
कांग्रेस प्रवक्ता अब्बास हफीज आगे कहते है कि शिवराज की वर्ष 2018 में छवि खत्म हुई तो खरीद-फरोख्त कर सरकार में लौटे और फिर उन्हीं योजनाओं केा आगे बढ़ाया जो कमल नाथ सरकार ने शुरू की थी। इसके साथ ही उनके खिलाफ भाजपा के भीतर से ही आवाजें उठ रही है, कहा तेा यहां तक जा रहा है कि पार्टी चौहान के चेहरे के साथ चुनाव में नहीं जाना चाहती। कुल मिलाकर चौहान की छवि बची ही नहीं हैं।
राज्य में आने वाले समय में मुख्यमंत्री चौहान केा अपनी पूर्व में बनाई गई छवि से ही मुकाबला करना पड़ सकता है, क्योंकि इस कार्यकाल में उनके सामने पिछले कार्यकालों से कहीं ज्यादा चुनौतियां है। भाजपा में दल-बदलकर आए नेताओं के साथ अपनों से भ्ीा लड़ना है तो जनता के बीच छवि बनाए रखना है।
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Source : IANS