मोदी सरकार के बाद शिवसेना ने फडणवीस सरकार को बोला कुंभकर्ण, जानें क्यों
शिवसेना ने अपने मुखपत्र सामना में सरकार पर तंज कसते हुए कहा है कि अयोध्या की यात्रा राम मंदिर के सवाल पर 4 साल से सो रहे कुंभकर्ण को जगाने के लिए थी.
नई दिल्ली:
शिवसेना ने अपने मुखपत्र सामना में सरकार पर तंज कसते हुए कहा है कि अयोध्या की वारी राम मंदिर के सवाल पर 4 साल से सो रहे कुंभकर्ण को जगाने के लिए थी. पंढरपुर की यात्रा सुस्त पड़े महाराष्ट्र को जगाने के लिए है. सरकार को जगाने की बजाय उसे हटाना ही उचित होगा. शिवसेना ने कहा कि हम आज पंढरपुर के लिए निकले हैं. अयोध्या के बाद यह पंढरपुर की यात्रा है. पत्रकारों ने तब हमसे सवाल पूछा था, ‘अयोध्या पर ‘सवारी’ करने निकले हो इससे क्या साध्य होगा?’ इस बार भी वही सवाल पूछे जा रहे हैं. ‘पंढरपुर सवारी का प्रयोजन क्या?’ यह सवाल-जवाब निरर्थक है. यह ‘सवारी’ नहीं, बल्कि यात्रा है. सवारी जीतने के लिए की जाती है. यात्रा एक श्रद्धा से, आशीर्वाद के लिए होती है. इसके लिए जनता को एक आवेग के साथ उठना होगा. इसीलिए पंढरी की पवित्र भूमि पर ‘पुंडलिक वरदे हरि विट्ठल’ ये लाखों लोगों के मुंह से निकलनेवाली गगन भेदी गूंज सुनने के लिए आकाश में 33 करोड़ देवताओं के जहाजों की भीड़ होगी और वे हमारे कार्य को आशीर्वाद देंगे.
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महाराष्ट्र की जनता अनेक देवी-देवताओं की पूजा करती है और प्रतिवर्ष कई त्योहार मनाती है. लेकिन महाराष्ट्र का अंत:करण यदि सचमुच किसी में रमता होगा तो वह सिर्फ अट्ठाइस युगों से र्इंट पर विराजमान पांडुरंग के समचरणों पर! आज हम उन्हीं पांडुरंग के चरणों में लीन होकर महाराष्ट्र की जनता के निर्मल अच्छे दिन आएं इसलिए मन्नत मांगनेवाले हैं.
महाराष्ट्र में सूखे की भयंकर परछाईं है और देश के सत्ताधारी सत्ता की मदमस्त राजनीति में मशगूल हैं. कल के लोकसभा और विधानसभा चुनाव को येन-केन-प्रकारेण जीतने के लिए जिस अक्ल का इस्तेमाल किया जा रहा है उसे राज्य की प्रगति के लिए, सूखा निवारण के लिए लगाया होता तो राज्य में भूख बलि और किसानों की आत्महत्याओं की संख्या कम हो गई होती. पंढरपुर की सभा में हम महाराष्ट्र की स्थिति पर बोलेंगे ही, मगर प्रत्यक्ष पंढरपुर, सोलापुर और आसपास के क्षेत्र सूखे से झुलस रहे हैं. जानवरों की चारा छावनियों तथा पानी के टैंकरों का उचित नियोजन न होने से यह झुलस दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है. कहते हैं कि किसी भी बात का अंत होता है.
लेकिन इस क्षेत्र की झुलसती जनता के दुखों का कोई अंत नहीं है. फिर वो सवाल सूखे का हो अन्यथा पुनर्वसन का. ऐसा यदि नहीं होता तो बगल के टेंभुर्णी बांध ग्रस्त लोगों को 25-30 सालों बाद भी अपनी समस्याओं के निदान के लिए सड़क पर नहीं उतरना पड़ता.
महाराष्ट्र में भी कुंभकर्ण वंश में वृद्धि हुई है और वे परियोजना ग्रस्त लोगों के सवाल समझने को तैयार नहीं. इसीलिए टेंभुर्णी के बांधग्रस्त आगामी 26 जनवरी को जलसमाधि लेने पर अडिग हैं. नई सत्ता आने के बाद भी टेंभुर्णी बांधग्रस्त जैसे अनेकों के सवाल अधर में लटके ही हैं. मुख्यमंत्री प्रति वर्ष की तरह आषाढ़ी को आते हैं और महापूजा करके चले जाते हैं. मगर पंढरपुर मंगलवेढ़ा और टेंभुर्णीकरों की सूखा परियोजनाओं के सवाल उसी तरह बरकरार हैं. कुंभकर्ण को इस नींद से जगाने के लिए हम मावली का आशीर्वाद ले रहे हैं. पांडुरंग चंद्रभागा तट पर सिर्फ एक ईंट पर अट्ठाईस युगों से खड़े होकर महाराष्ट्र तथा देश में घटित होनेवाली अच्छी-बुरी घटनाओं को कमर पर हाथ रखकर देख रहे हैं. इस दौरान महाराष्ट्र की उन्नति और अवनति की अनेक अवस्थाएं उन्होंने देखी.
मुगल सत्ता के सिल-बट्टे तले कुचले गए हताश हुए महाराष्ट्र को उन्होंने देखा होगा. ‘दरवाजा खोलो, दरवाजा खोलो’ नाथ द्वारा लगाई गई इस पुकार को उन्होंने भी सुना ही होगा.
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मावली ने शिवसेनाप्रमुख द्वारा की गई हिंदुत्व की गर्जना और उनके द्वारा हिंदुत्व में लाई गई जनजागृति को देखा. अयोध्या में ‘बाबरी’ का कलंक शिवसैनिकों ने ध्वस्त किया, उसे देखा और देश, धर्म, देव के लिए शिवसेना द्वारा किया गया रणसंग्राम भी देखा. उसी शिवसेना का मुगलों द्वारा नहीं बल्कि हिंदुत्व के व्यापारी बने स्वजनों द्वारा किया गया विश्वासघात भी देखा. हम उस विश्वासघात की परवाह नहीं करते. सत्कर्मों की पीठ में खंजर का घोंपा जाना उस कार्य की सफलता है, मगर जनता को क्या मिला.
सोहराबुद्दीन हत्या मामले के अभियुक्त सबूत नहीं होने से निर्दोष बरी हो गए. उसकी खुशी है मगर ‘हम अयोध्या में ही जन्मे हैं’ इसका सबूत देने के बावजूद प्रभु राम आज भी एक वनवासी, अपराधी के रूप में अयोध्या में बंदी की तरह हैं, इसे हम निश्चित क्या कहें? इस देश को उन अर्थों में विचित्र ही कहना पड़ेगा. यहां बोफोर्स और राफेल को भाव मिलता है. वो भी इतना कि अंबानी को एक ही विमान के सौदे में 30 हजार करोड़ का नकद लाभ होता है.
लेकिन किसानों के माल को दाम नहीं मिलता. प्याज, टमाटर के भाव रसातल में चले गए. पांच-दस पैसे का भी दाम नहीं है. मिट्टी के मोल प्याज बेचा जा रहा है. राफेल सौदे के लिए प्रधानमंत्री मोदी खुद ध्यान देते हैं. मगर प्याज उत्पादन अधिक हुआ इसलिए प्याज को दुनिया के बाजारों में भेजने की किसानों की मांग को कोई नहीं सुनता. शक्कर कारखानों को बर्बाद कर वहां भी बेरोजगारी बढ़ाने का राजनीतिक प्रयोग जारी है. किसानों का कर्ज शिवसेना के दबाव से रद्द हुआ. फिर भी नए सवाल खड़े हैं. सरकार ने प्रधानमंत्री के डिजिटल इंडिया का झांझ बजाया. मगर किसान सूखा ही रहा.
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