logo-image

कृषि बिल के विरोध में NDA से अलग हुआ SAD, सुखबीर सिंह बादल ने किया ऐलान

शिरोमणि अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल ने कोर कमेटी की बैठक के बाद मीडिया से बात चीत में कहा कि हम एनडीए का हिस्सा नहीं हो सकते हैं, जो इन अध्यादेशों को लाया है.

Updated on: 26 Sep 2020, 11:38 PM

नई दिल्‍ली:

पिछले दिनों संसद के दोनों सदनों से पास हुए कृषि विधेयकों को लेकर केंद्र की मोदी सरकार की मुश्किलें लगातार बढ़ती ही दिखाई दे रही है. आपको बता दें कि साल 1997 से शिरोमणि अकाली दल बीजेपी का सहयोगी बना था. कृषि विधेयकों का विरोध कर रहे पंजाब में एनडीए के सहयोगी शिरोमणि अकाली दल ने राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) से अलग होने का एलान कर दिया है. शिरोमणि अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल ने कोर कमेटी की बैठक के बाद मीडिया से बात चीत में कहा कि हम एनडीए का हिस्सा नहीं हो सकते हैं, जो इन अध्यादेशों को लाया है. यह फैसला शिरोमणि अकाली दल की सर्वसम्मति से लिया गया है. अब शिरोमणि अकाली दल एनडीए का हिस्सा नहीं है. 

शिरोमणि अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल ने मीडिया से बातचीत में बताया कि पार्टी की कोर कमेटी ने चार घंटे की बैठक के बाद यह निर्णय लिया है. शिरोमणि अकाली दल की ओर से कहा गया है कि 'पार्टी ने एमएसपी पर किसानों की फसलों के सुनिश्चित विपणन की रक्षा के लिए वैधानिक विधायी गारंटी देने से मना करने के कारण भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाले एनडीए गठबंधन से अलग होने का फैसला किया है. पंजाबी और सिख मुद्दों के प्रति सरकार की असंवेदनशीलता भी इसकी एक वजह है और जम्मू और कश्मीर में पंजाबी भाषा को आधिकारिक भाषा के रूप में शामिल करने जैसे सिख मुद्दे पर ध्यान नहीं दिया गया.

सुखबीर बादल ने मीडियाकर्मियों से बातचीत करते हुए बताया कि, शिरोमणि अकाली दल शांति के अपने मूल सिद्धांतों, सांप्रदायिक सद्भाव और सामान्य रूप से पंजाब, पंजाबी और विशेष रूप से किसानों और किसानों के हितों की रक्षा करेगा. उन्होंने ये भी बताया कि यह निर्णय पंजाब के लोगों, विशेषकर पार्टी कार्यकर्ताओं और किसानों के परामर्श के बाद सबकी सहमति से लिया गया है. बीजेपी और शिरोमणि अकाली दल के बीच लगभग 23 सालों का अटूट बंधन अब नहीं रहा.

बादल ने मीडिया को बताया कि, भारतीय जनता पार्टी सरकार द्वारा लाए गए कृषि विपणन के बिल पहले से ही परेशान किसानों के लिए घातक और विनाशकारी हैं.' उन्होंने कहा कि 'शिअद भाजपा का सबसे पुराना सहयोगी था, लेकिन सरकार ने किसानों की भावनाओं का सम्मान करने की बात नहीं सुनी।' प्रेम सिंह चंदूमाजरा ने कहा कि अकाली दल को पहले केंद्रीय मंत्रिमंडल और अब राजग छोड़ने के लिए मजबूर किया गया था क्योंकि भाजपा नेतृत्व वाला गठबंधन किसानों, विपक्ष और अकाली दल के विरोध के बावजूद कृषि बिलों को लाने पर अड़ा हुआ था.