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शिया वक्फ बोर्ड अध्यक्ष का बड़ा बयान, इस हिंदू देवता को बताया मुस्लिमों का पूर्वज

सुप्रीम कोर्ट से राममंदिर के पक्ष में फैसला आने के बाद अब मुस्लिम नेता भी राम मंदिर निर्माण के समर्थन में खुलकर सामने आ गए हैं.

Updated on: 14 Nov 2019, 11:48 AM

लखनऊ:

सुप्रीम कोर्ट से राममंदिर के पक्ष में फैसला आने के बाद अब मुस्लिम नेता भी राम मंदिर निर्माण के समर्थन में खुलकर सामने आ गए हैं. शिया सेंट्रल वक़्फ़ बोर्ड के चेयरमैन वसीम रिज़वी ने भगवान राम को इमामे हिन्द और मुसलमानों का पूर्वज बताया है. उन्होंने भव्य राम मंदिर निर्माण के लिए 51 हज़ार का चेक भी दिया. उन्होंने कहा कि वह आगे भी मन्दिर के निर्माण में आर्थिक योगदान देंगे.

शिया सेंट्रल वक़्फ़ बोर्ड के चेयरमैन वसीम रिजवी हमेशा से अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के पक्ष में रहे हैं. उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद वसीम रिजवी ने कहा था कि शिया वक्फ बोर्ड अपने मकसद में कामयाब हो गया. अयोध्या में जन्मभूमि पर ही राम मंदिर बने, यही हमारा मकसद था. सुप्रीम कोर्ट के फैसले से तय हो गया है कि जन्मभूमि पर ही भव्य राम मंदिर बनेगा. 

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अयोध्या में करेंगे रामलला का दर्शन
वसीम रिजवी का आज (गुरुवार) को अयोध्या जाने का कार्यक्रम है. अयोध्या में वसीम रिजवी साधु-संतों से मुलाकात से पहले रामलला का दर्शन करेंगे. इसके बाद वह महंत धर्मदास से मुलाकात करेंगे. इसके बाद वसीम रिजवी दिगंबर अखाड़ा में महंत सुरेश दास से मुलाकात करेंगे. वसीम रिजवी का रामजन्मभूमि न्यास अध्यक्ष महंत नृत्य गोपाल और नारायण मिश्र से भी मुलाकात का कार्यक्रम है. आज ही उनकी मुलाकात वेदांती और परमहंस दास से भी होने वाली है.

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सरकार ने बढ़ाई रिजवी की सुरक्षा
सुप्रीम कोर्ट का अयोध्या पर फैसला आने के बाद उत्तर प्रदेश सरकार ने कई लोगों की सुरक्षा में इजाफा किया है. इन लोगों में वसीम रिजवी भी शामिल हैं. सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद योगी आदित्यनाथ सरकार ने शिया वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष वसीम रिजवी और सुन्नी वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष जुफर फारूकी की सुरक्षा को बढ़ाकर वाई प्लस श्रेणी कर दिया है.

सुप्रीम कोर्ट ने माना था हिंदू अंग्रेजों के जमाने से पहले करते आ रहे थे पूजा
अपने फैसले में सर्वोच्च अदालत ने यह भी माना कि इस बात के सबूत मिले हैं कि हिंदू बाहर पूजा-अर्चना करते थे, तो मुस्लिम भी अंदर नमाज अदा करते थे. इस तरह सुप्रीम कोर्ट ने स्वीकार कर लिया कि 1857 से पहले ही पूजा होती थी. हालांकि सर्वोच्च अदालत ने यह भी माना कि 1949 को मूर्ति रखना और ढांचे को गिराया जाना कानूनन सही नहीं था. संभवतः इसीलिए सर्वोच्च अदालत ने मुसलमानों के लिए वैकल्पिक जमीन दिए जाने की व्यवस्था भी की है.