शीला दीक्षित की ही सोच का नतीजा, दिल्‍ली में पांच सीटों पर दूसरे नंबर पर रही कांग्रेस

उन्होंने अरविंद केजरीवाल के प्रति आम गुस्से को महसूस कर लिया और कांग्रेस आलाकमान की बात को अनसुनी कर कांग्रेस को उपलब्धि के इस मुकाम तक पहुंचाया.

author-image
Nihar Saxena
New Update
शीला दीक्षित की ही सोच का नतीजा, दिल्‍ली में पांच सीटों पर दूसरे नंबर पर रही कांग्रेस

लोकसभा चुनाव में प्रचार करती शीला दीक्षित.

शीला दीक्षित के आकस्मिक निधन को अगर दिल्ली कांग्रेस के लिए बहुत बड़ा झटका करार दिया जा रहा है, तो कतई गलत नहीं है. शीला दीक्षित अपनी राजनीतिक जमीन यानी दिल्ली को जिस तरह से जानती-समझती थी, वह समझ दिल्ली के अन्य नेताओं में नहीं मिलती. उनकी समझ का ही कमाल था कि हालिया लोकसभा चुनाव में कांग्रेस भले ही एक सीट नहीं जीत सकी हो, लेकिन आम आदमी पार्टी के हाथों अपनी खोई जमीन फिर से हासिल करने में सफल रही. दो विधानसभा चुनाव और एक लोकसभा चुनाव में खेत रही कांग्रेस दिल्ली में इस लोस चुनाव में सात में से पांच सीटों पर दूसरे नंबर पर रही थी. कह सकते हैं कि शीला दीक्षित ने आप पार्टी के खिलाफ बह रही हवा को समय रहते भांप लिया था.

Advertisment

यह भी पढ़ेंः Sheila Dikshit Funereal LIVE Updates : आज निगमबोध घाट पर होगा शीला दीक्षित का अंतिम संस्‍कार

कांग्रेस आलाकमान को अकेले दम का महत्व बताया
अगर इस लोकसभा चुनाव से पहले के दिल्ली कांग्रेस के राजनीतिक असमंजस पर गौर करें तो पाएंगे की सिर्फ शीला दीक्षित ही थीं, जिन्होंने दिल्ली में सत्तारूढ़ अरविंद केजरीवाल सरकार के प्रति आम दिल्लीवासी का मूड समझ लिया था. यही वजह रही कि वह अकेले दम दिल्ली की सातों सीटों पर चुनाव लड़ने की जिद पर अड़ी रहीं. गौरतलब है कि पीसी चाको समेत अजय माकन दिल्ली में आम आदमी पार्टी के साथ गठबंधन कर लोकसभा चुनाव लड़ने के पक्षधर थे, जबकि शीला अकेले दम चुनाव वैतरणी पार करना चाहती थीं. पीसी चाको और अजय माकन ने अंतिम समय तक आप से गठबंधन की आस नहीं छोड़ी थी.

यह भी पढ़ेंः कांग्रेस आलाकमान का संकट और बढ़ा, शीला दीक्षित के बाद कौन संभालेगा दिल्ली की कमान

हासिल की खोई राजनीतिक जमीन
यह शीला दीक्षित की राजनीतिक दूरदृष्टि और गहरी समझ ही थी, जिस पर चलकर कांग्रेस कम से कम दिल्ली में अपनी खोई राजनीतिक जमीन हासिल कर सकी. अगर गौर करें तो दिल्ली के बाद ही कांग्रेस ने अन्य राज्यों में अकेले दम चुनाव लड़ने का फैसला किया था. अगर सिर्फ दिल्ली की ही बात करें तो 2013 और 2015 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस बुरी तरह से खेत रही. 2013 में तो तब भी कांग्रेस को 8 सीटें मिली थीं, लेकिन 2015 में अरविंद केजरीवाल की आप पार्टी ने कांग्रेस समेत बीजेपी का सूपड़ा साफ कर दिया. यही हाल 2014 के लोकसभा चुनाव में हुआ था.

यह भी पढ़ेंः पीसी चाको ने शीला दीक्षित से कहा था- आप बीमार हैं, आराम कीजिए, अब उनके निधन पर कही ये बड़ी बात

आप के खिलाफ आमजन में गुस्से को भांप लिया
यहां चयह याद रखना भी बेहतर होगा दिल्ली विधानसभा चुनाव में करारी हार के बाद लगातार तीन बार दिल्ली की सीएम रहीं शीला दीक्षित ने राजनीतिक परिदृश्य से अलग होने का निर्णय कर लिया था. हालांकि दिल्ली कांग्रेस में गुटबाजी और अंदरूनी कलह ने कांग्रेस आलाकमान को बाध्य किया कि वह शीला दीक्षित को एक बार फिर से कमान सौंपे. ऐसी स्थिति में लोकसभा चुनाव से ऐन पहले दिल्ली कांग्रेस की बागडोर एक बार फिर शीला दीक्षित को सौंपी गई. शीला दीक्षित ने सात में से पांच सीटों पर दूसरा स्थान हासिल कर कांग्रेस आलाकमान के विश्वास को सही करार दिया था. शीला जिस तरह दिल्ली को जानती-समझती थीं, वह अनुभव बहुत कम नेताओं के पास था. इसीलिए उन्होंने अरविंद केजरीवाल के प्रति आम गुस्से को महसूस कर लिया और कांग्रेस आलाकमान की बात को अनसुनी कर कांग्रेस को उपलब्धि के इस मुकाम तक पहुंचाया. यह समझ और दूरदृष्टि फिलहाल कांग्रेस के अन्य नेताओं में देखने में नहीं है.

HIGHLIGHTS

  • शीला दीक्षित अपनी राजनीतिक जमीन यानी दिल्ली को बहुत करीब से जानती-समझती थी.
  • केजरीवाल के प्रति गुस्से को भांप बगैर गठबंधन किए लोकसभा चुनाव में उतरी कांग्रेस.
  • यही वजह है कि दिल्ली में कांग्रेस ने खोई जमीन को दोबारा हासिल किया.

Source : Nihar Ranjan Saxena

Loksabha Elections 2019 Sheila dikshit Vision AAP BJP ground Delhi congress regain arvind kejriwal
      
Advertisment