कश्मीर को लेकर भारत की परेशानी के लिए चीन ने ब्रिटेन को ठहराया जिम्मेदार
चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने शुक्रवार को आधिकारिक मीडिया टिप्पणी को ट्वीट कर ब्रिटिश उपनिवेशवादियों को अपनी ‘बांटों और राज करो’ नीति के जरिये कश्मीर की राजनीति में ‘नफरत का जहर’ घोलने का जिम्मेदार ठहराया.
नई दिल्ली:
चीन ने एक असामान्य कूटनीतिक कदम उठाते हुए शुक्रवार को कश्मीर को लेकर भारत की परेशानियों के लिए ब्रिटेन को जिम्मेदार ठहराया है और उनकी आलोचना की है. चीन ने इस मामले में कई सारे ट्वीट्स किए, जिसमें चीनी सरकार के प्रवक्ता झाओ लिजियन ने भारत और कश्मीर के संबंध में ब्रिटेन और अतीत में हुए ब्रिटिश साम्राज्यवाद की व्यवस्था पर हमला बोला. उन्होंने चीन की सबसे बड़ी और सबसे प्रभावशाली सरकारी मीडिया सिन्हुआ समाचार एजेंसी में प्रकाशित एक लेख का हवाला देते हुए ट्वीट किया, "अगर ब्रिटिश इंडिया ब्रिटिश साम्राज्य की ताज में लगा रत्न था, तो कश्मीर इस पर आया वह दरार था, और वक्त आने पर आखिरकार यह रत्न टूटकर जमीन पर गिर गया."
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सिन्हुआ एक आधिकारिक राज्य द्वारा संचालित प्रेस एजेंसी है, जिसका नेतृत्व चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (सीसीपी) की केंद्रीय समिति के सदस्यों द्वारा किया जाता है. एजेंसी द्वारा प्रकाशित ओपिनियन पीस को बीजिंग का आधिकारिक बयान माना जाता है, भले ही सीसीपी इसे कभी न स्वीकार करता हो.
झाओ विदेश मंत्रालय के सूचना विभाग के उप निदेशक और प्रवक्ता हैं. एक मुखर और उग्र राजनयिक झाओ चीन में प्रतिबंधित अमेरिकी माइक्रो-ब्लॉगिंग साइट ट्विटर पर काफी सक्रिय हैं.
शुक्रवार को इस लेख को साझा करते हुए उन्होंने आगे ट्वीट किया, "ब्रिटिश साम्राज्य का पतन हुआ, लेकिन दोनों देशों की राजनीति में दशकों के लिए नफरत के जहर को घोल दिया गया. यह जमीन कभी उतनी ही मशहूर थी, जितना कि यहां पाया जाने वाला कश्मीरी नीलम है, लेकिन इसे कई घाव दिए गए हैं. साम्राज्यवादियों के लालच के चलते इसमें दरारें आई हैं, जिन्हें डरे व घबराए हुए लोगों की आंसूओं से सींचा गया है."
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बता दें कि झाओ प्रवक्ता बनने से पहले पाकिस्तान में चीन के उप राजदूत की जिम्मेदारी निभा रहे थे. उन्होंने लेख के हिस्से को ट्वीट में उद्धृत किया, ‘एक समय कश्मीरी नीलम के लिए प्रसिद्ध रही इस भूमि पर औपनिवेशिक लालच की वजह से असंख्य निशान हैं.... गौरतलब है कि चीन के विदेश मंत्रालय ने चीन के कश्मीर पर आधिकारिक रुख के बारे में कहा था कि ‘यह भारत और पाकिस्तान के बीच इतिहास द्वारा छोड़ा गया मुद्दा है.’
चीनी अधिकारियों ने पहले कहा था, ‘इस मुद्दे का संयुक्त राष्ट्र के चार्टर, सुरक्षा परिषद के संबंधित प्रस्ताव और द्विपक्षीय समझौतों के आधार पर शांतिपूर्ण और उचित तरीके से समाधान किया जाना चाहिए.’
शिन्हुआ ने लेख में रेखांकित किया, ‘‘इस त्रासदी के बीज ब्रिटिश सम्राज्य ने शरारती रणनीति के तहत भारत में स्वतंत्रता आंदोलन के उदय को रोकने और अपना शासन मजबूत करने के लिए बोये, जिसने लाखों जिंदगिया छीन ली. ब्रिटेन ने न केवल भारत में बल्कि अफ्रीका, पश्चिम एशिया और एशिया के विस्तृत भूभाग में ‘बांटो और राज करो’ की यह नीति लागू की.’’
चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता झाओ ने लेख का हिस्सा ट्वीट किया, ‘जब तक कश्मीर में खूनखराबा जारी रहेगा, ब्रिटेन अपने खूनी औपनिवेशिक इतिहास से कभी अलग नहीं हो सकेगा.’ गौरतलब है कि हांगकांग के मुद्दे पर चीन और ब्रिटेन के रिश्ते खराब हो रहे हैं. हांगकांग पहले ब्रिटिश उपनिवेश था. वहीं, झाओ खुद को पाकिस्तान का प्रशंसक करार देते हैं और अपने आधिकारिक प्रेस वार्ता में पाकिस्तान के साथ रिश्तों के सवाल पर उन्होंने कहा, ‘‘चीन-पाकिस्तान दोस्ती जिंदाबाद.’
झाओ ने यह भी कहा कि जब तक कश्मीर में हिंसा जारी रहेगी, तब तक ब्रिटेन अपने खूनी औपनिवेशिक अतीत से खुद को कभी भी साफ नहीं कर पाएगा. चीनी प्रवक्ता द्वारा इस दृष्टिकोण का आधार भारत के रिटायर जस्टिस मार्केण्डेय काटजू की पुस्तक '' द नेशन'' है.
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