महाराष्ट्र के किसानों ने 12 महीनों में दूसरी बार विरोध मार्च शुरू किया
20 फरवरी को कम्युनिस्ट विचारक और लेखक गोविंद पानसरे की चौथी पुण्यतिथि है और 27 फरवरी को क्रांतिकारी स्वतंत्रता सेनानी चंद्रशेखर आजाद की शहादत की 88वीं वर्षगांठ है.
मुंबई:
महाराष्ट्र के करीब 50,000 किसानों ने 12 महीनों में दूसरी बार नासिक से मुंबई तक नौ दिवसीय 'किसान लॉन्ग मार्च -2' की शुरूआत की. उन्होंने राज्य और केंद्र में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की सरकारों पर किसान वर्ग के साथ 'विश्वासघात' करने का आरोप लगाया. मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (CPM) की किसान शाखा ऑल इंडिया किसान सभा (एआईकेएस) द्वारा आयोजित मार्च ने राज्य भर के किसानों को आकर्षित किया है जिसमें कई महिलाएं भी शामिल हैं और यह 27 फरवरी को मुंबई में 200 किलोमीटर यात्रा के बाद समाप्त होगा.
20 फरवरी को कम्युनिस्ट विचारक और लेखक गोविंद पानसरे की चौथी पुण्यतिथि है और 27 फरवरी को क्रांतिकारी स्वतंत्रता सेनानी चंद्रशेखर आजाद की शहादत की 88वीं वर्षगांठ है.
एआईकेएस के अध्यक्ष अशोक धवले ने कहा कि इस बार मार्च में शामिल किसानों की संख्या करीब 50,000 है, जो पिछली बार की तुलना में ज्यादा है. उन्होंने दावा किया कि राज्य सरकार ने मार्च में बाधा डालने की कोशिश की और पुलिस के जरिए शांतिपूर्ण जुलूस का दमन करने की कोशिश की.
एआईकेएस ने अहमदनगर कलेक्टर को एक ज्ञापन सौंपा है। धवले ने कहा कि एआईकेएस के महासचिव अजीत नवले सहित प्रमुख नेताओं को गिरफ्तार करने का प्रयास किया जा रहा है.
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मार्च का निर्णय अहमदनगर में 13 फरवरी के किसान सम्मेलन में लिया गया था. आयोजकों ने संकल्प लिया कि उनके लोकतांत्रिक और शांतिपूर्ण मार्च को कुचलने का कोई भी प्रयास किसानों का मनोबल गिराने में विफल रहेगा.
एआईकेएस के प्रवक्ता पी.एस. प्रसाद ने बताया, 'पुलिस ने बिना कोई कारण बताए जुलूस में शामिल होने के लिए आने वाले किसानों के समूहों को कई घंटों तक हिरासत में रखा.'
किसानों की मांगों में राज्य में गंभीर सूखे की स्थिति को देखते हुए तत्काल राहत, सिंचाई के मुद्दे, भूमि अधिकार, पूर्ण ऋण माफी, कुल उत्पादन लागत के डेढ़ गुना पर न्यूनतम समर्थन मूल्य, किसान के समर्थन में एक फसल बीमा योजना, बुजुर्ग किसानों के लिए बढ़ी हुई पेंशन के साथ-साथ खाद्य और स्वास्थ्य सुरक्षा शामिल है.
12 मार्च, 2018 को करीब 35,000 किसानों द्वारा एक विरोध मार्च निकालने के बाद महाराष्ट्र सरकार ने उनकी अधिकांश मांगों को 'स्वीकार' कर लिया था, जिसके बाद सभी दलों का समर्थन हासिल करने वाले किसानों ने आंदोलन खत्म कर दिया दिया.
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