अवमानना मामला: सुप्रीम कोर्ट के मानसिक हालात की जांच के आदेश पर भड़के कर्णन, प. बंगाल के डीजीपी को दी निलंबन की चेतावनी
सुप्रीम कोर्ट ने कोलकाता हाईकोर्ट के जस्टिस सीएस कर्णन के मानसिक स्वास्थ्य के जांच के लिए मेडिकल बोर्ड के गठन का आदेश दिया है। यह मेडिकल बोर्ड 5 मई को जांच कर आठ मई तक अपनी रिपोर्ट कोर्ट को सौंपेगा।
नई दिल्ली:
सुप्रीम कोर्ट के द्वारा कोलकाता हाईकोर्ट के जस्टिस सीएस कर्णन के मानसिक स्वास्थ्य की जांच करने के आदेश के बाद जस्टिस कर्णन ने एक बार फिर मोर्चा खोल दिया है। सोमवार दोपहर सुप्रीम कोर्ट के आए आदेश के बाद सीएस कर्णन ने प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाई और कहा कि पश्चिम बंगाल के डीजीपी अगर मानसिक स्वास्थ्य की जांच के लिए ज़बरदस्ती करते हैं तो उनके खिलाफ निलंबन का आदेश पारित किया जा सकता है।
यह बात उन्होंने उच्च न्यायालय के आदेश के बाद कही है जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने अदालत की अवमानना का सामना कर रहे कोलकाता हाईकोर्ट के जज जस्टिस कर्णन के मानसिक स्वास्थ्य की जांच का आदेश दिया था। जस्टिस खेहर की अध्यक्षता वाली सात जजों की संविधान बेंच ने कोलकाता के सरकारी अस्पताल को इसके लिए मेडिकल बोर्ड के गठन का आदेश दिया हैं।
Might issue suo moto suspension order against West Bengal DGP if he comes to check my mental health forcefully: Justice Karnan (File Pic) pic.twitter.com/clnMWpgw13
— ANI (@ANI_news) May 1, 2017
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने पश्चिमी बंगाल के डीजीपी को बोर्ड की सहायता के लिए पुलिस अधिकारियों की टीम बनाने को कहा था। सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा 'जस्टिस कर्णन की ओर से जारी किये प्रेस बयान और पास किये गए आदेश से लगता हैं कि वो अपना पक्ष रखने में समर्थ नहीं हैं, लिहाजा कोर्ट उनके मानसिक स्वास्थ्य की जांच का आदेश देता हैं।'
अदालत ने मेडिकल बोर्ड को 4 मई को जांच कर आठ मई तक अपनी रिपोर्ट देने को कहा हैं। इसके आलावा सुप्रीम कोर्ट ने अदालत की अवमानना कार्रवाई शुरू होने के बाद जस्टिस कर्णन के दिये गये सभी आदेश को अवैध करार दिया हैं।
कोर्ट ने कहा कि देश की कोई अदालत, अथॉरिटी, कमीशन या ट्रिब्यूनल जस्टिस कर्णन के दिए आदेश का संज्ञान नही ले सकता।
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अदालत में क्या दलीले रखी गयी
हालांकि सुनवाई के दौरान वरिष्ठ वकील वेणुगोपाल ने बेंच से अनुरोध किया कि अदालत उनके खिलाफ अवमानना की कार्रवाई से परहेज करें। वेणुगोपाल ने कहा कि कर्णन के पत्र की भाषा से एक आम आदमी भी अंदाजा लगा सकता हैं कि वो अपना मानसिक संतुलन खो चुके हैं।
अगर अदालत को लगता हैं कि उनको गम्भीरता से लिये जाने की जरूरत नहीं हैं और वो खुद अपना पक्ष रखने की स्थिति में नहीं हैं तो उन्हें रिटायर होने दिया जाए। वो जून में रिटायर हो रहे हैं। इसी बीच उनको काउंसिलिंग देना बेहतर होगा।
अटॉर्नी जनरल ने सख़्त फैसला दिए जाने की मांग की
सुनवाई में अटॉनी जनरल मुकुल रोहतगी ने वकील वेणुगोपाल की दलील का विरोध किया। अटॉर्नी जनरल ने कहा 'जस्टिस कर्णन के खत, पास किये गए आदेश, प्रेस कॉन्फ्रेंस में जारी किए गए बयान लगातार अदालत की साख को ठेस पहुँचा रहे हैं, अदालत इसको नजरअंदाज नही कर सकती। ऐसा करने पर जनता के बीच भी गलत संदेश जाएगा कि एक जज को बचा लिया गया।'
चीफ जस्टिस की टिप्पणी
बेंच की अध्यक्षता कर रहे चीफ जस्टिस जे एस खेहर ने भी वेणुगोपाल की दलील से असहमति जताते हुए कहा 'आप (जस्टिस कर्नन) कुछ भी कहे और बच निकलें, ऐसा नही हो सकता। ऐसे तो कोई भी इस तरकीब का इस्तेमाल कर सकता हैं (कि पहले अदालत के ख़िलाफ़ कुछ भी कहे और बाद में मानसिक संतुलन खराब होने का हवाला दे)। अगर वो ( जस्टिस कर्णन) खराब मानसिक स्वास्थ्य का बहाना बना रहे हैं तो उन्हें इसके गम्भीर परिणाम भुगतने होंगे। हमें इससे इस तरह से निपटगे ताकि ये दुबारा ना हो।'
क्या हैं मामला?
देश के न्यायिक इतिहास में यह पहली बार हैं जब सुप्रीम कोर्ट हाईकोर्ट के किसी जज के खिलाफ अदालत की अवमानना की कार्रवाई पर सुनवाई कर रहा हैं। इससे पहले जस्टिस कर्णन ने प्रधानमंत्री को लिखे एक खत में बीस सीटिंग और रिटायर्ड जजों पर करप्शन का आरोप लगाते हुए कार्रवाई किये जाने की मांग की थी।
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सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस कर्णन के इस तरह के खत और अलग-अलग जगह पर दिए गए उनके बयानों का स्वतः संज्ञान लेते हुए अवमानना की कार्रवाई शुरू की थी। जमानती वारंट जारी होने के बाद जस्टिस कर्णन 31 मार्च को सुप्रीम कोर्ट के सामने पेश भी हुए थे।
तब कोर्ट ने उन्हें एक मौका देते हुए चार हफ्ते के अंदर जवाब मांगा था। मगर इसके बाद माफी मांगने के बजाए, जस्टिस कर्णन ने 13 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस जे.एस.खेहर और 7 जजों को 28 अप्रैल को अपनी अदालत में पेश होने का आदेश जारी कर दिया था।
यही नहीं, उन्होंने 28 अप्रैल को दिल्ली स्थित एयर कंट्रोल अथॉरिटी को निर्देश दिया था कि केस खत्म होने तक चीफ जस्टिस और सुप्रीम कोर्ट के सात दूसरे जजों को देश के बाहर यात्रा करने की इजाजत न दी जाए।
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