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सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार से तीन तलाक मामले में होगी सुनवाई, जाने क्या है मामला

कॉमन सिविल कोड का मामला सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच के सामने नहीं है।

Updated on: 11 May 2017, 07:36 AM

highlights

  • सुप्रीम कोर्ट ने पिछली सुनवाई में तमाम पक्षकारों से भी राय मांगी थी।
  • इनमें पांच याचिकायें मुस्लिम महिलाओं ने दायर की हैं।
  • कॉमन सिविल कोड का मामला सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच के सामने नहीं है।

 

नई दिल्ली:

सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार से ट्रिपल तलाक, निकाह हलाला और बहुविवाह के खिलाफ दाखिल याचिका पर सुनवाई शुरु होगी। प्रधान न्यायाधीश जगदीश सिंह खेहर की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संवैधानिक पीठ सात याचिकाओं पर सुनवाई शुरू करेगी।

इनमें पांच याचिकायें मुस्लिम महिलाओं ने दायर की हैं जिनमें मुस्लिम समुदाय में प्रचलित तीन तलाक की प्रथा को चुनौती देते हुये इसे असंवैधानिक बताया गया है।

सुप्रीम कोर्ट ने पिछली सुनवाई में तमाम पक्षकारों से भी राय मांगी थी और कहा था कि सुप्रीम कोर्ट 11 मई को सबसे पहले उन सवालों को तय करेगा जिन मुद्दों पर इस मामले की सुनवाई होनी है।

संवैधानिक पीठ में सिख, ईसाई, पारसी, हिन्दू और मुस्लिम सहित सभी समुदाय के सदस्य हैं। इस पीठ के अन्य सदस्यों में न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ, न्यायमूर्ति आर एफ नरिमन, न्यायमूर्ति उदय उमेश ललित और न्यायमूर्ति अब्दुल नजीर शामिल हैं।

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सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया है कि वह ट्रिपल तलाक, निकाह हलाला और बहुविवाह जैसे मुद्दे पर सुनवाई करेगा, यानी कॉमन सिविल कोड का मामला सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच के सामने नहीं है।

बुधवार को तीन तलाक से मुक्ति पाने के लिए बनारस की मुस्लिम महिलाओं ने हनुमान चालीसा का सामूहिक पाठ किया। इसका आयोजन पतालपुरी मठ में किया गया। मुस्लिम महिला फाउंडेशन की अगुवाई में पतालपुरी मठ में करीब 50 मुस्लिम महिलाओं ने दक्षिणमुखी हनुमान मंदिर में आरती उतारकर 100 बार हनुमान चालीसा का पाठ किया।


वहीं केंद्र सरकार की ओर से दायर किये गये हलफनामे में कहा गया है कि ट्रिपल तलाक के प्रावधान को संविधान के तहत दिए गए समानता के अधिकार और भेदभाव के खिलाफ अधिकार के संदर्भ में देखा जाना चाहिए।

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केंद्र ने कहा कि लैंगिक समानता और महिलाओं के मान सम्मान के साथ समझौता नहीं हो सकता। भारत जैसे सेक्युलर देश में महिला को जो संविधान में अधिकार दिया गया है उससे वंचित नहीं किया जा सकता।

तमाम मुस्लिम देशों सहित पाकिस्तान के कानून का भी केंद्र ने हवाला दिया जिसमें तलाक के कानून को लेकर रिफॉर्म हुआ है और तलाक से लेकर बहुविवाह को रेग्युलेट करने के लिए कानून बनाया गया है।

केंद्र सरकार के सवाल

1. धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार के तहत तीन तलाक, हलाला और बहु-विवाह की इजाजत संविधान के तहत दी जा सकती है या नहीं ?
2. समानता का अधिकार, गरिमा के साथ जीने का अधिकार और धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार में प्राथमिकता किसको दी जाए?
3. पर्सनल लॉ को संविधान के अनुछेद 13 के तहत कानून माना जाएगा या नहीं?
4. क्या तीन तलाक, निकाह हलाला और बहु-विवाह उन अंतरराष्ट्रीय कानूनों के तहत सही है, जिस पर भारत ने भी दस्तखत किये हैं?

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क्या है अर्जी ?
- मार्च 2016 में उतराखंड की शायरा बानो नामक महिला ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करके तीन तलाक, हलाला निकाह और बहु-विवाह की व्यवस्था को असंवैधानिक घोषित किए जाने की मांग की थी।

- बानो ने मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) एप्लीकेशन कानून 1937 की धारा 2 की संवैधानिकता को चुनौती दी है। कोर्ट में दाखिल याचिका में शायरा ने कहा है कि मुस्लिम महिलाओं के हाथ बंधे होते हैं और उन पर तलाक की तलवार लटकती रहती है। वहीं पति के पास निर्विवाद रूप से अधिकार होते हैं। यह भेदभाव और असमानता एकतरफा तीन बार तलाक के तौर पर सामने आती है।

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- जयपुर की आफरीन रहमान ने भी सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की है। मैरिज पोर्टल से शादी करने वाली रहमान को उसके पति ने स्पीड पोस्ट से तलाक का पत्र भेजा था। उन्होंने भी 'तीन तलाक' को खत्म करने की मांग की है।

- ट्रिपल तलाक को अंवैधानिक और मुस्लिम महिलाओं के गौरवपूर्ण जीवन जीने के अधिकार का उल्लंघन बताते हुए पश्चिम बंगाल के हावडा की इशरत जहां ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की है।

- इशरत ने अपनी याचिका में कहा है कि उसके पति ने दुबई से ही फोन पर तलाक दे दिया और चारों बच्चों को जबरन छीन लिया।

- सुप्रीम कोर्ट में दाखिल पअपनी याचिका में इशरत ने कहा है कि उसका निकाह 2001 में हुआ था और सात से 22 साल के बच्चे भी हैं। इशरत ने कहा है कि उसके पति ने दूसरी शादी कर ली है।

- याचिका में कहा गया है कि ट्रिपल तलाक गैरकानूनी है और मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों का हनन है जबकि मुस्लिम बुद्धिजीवी भी इसे गलत करार दे रहे है।

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