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SC: जनसंख्या नियंत्रण के लिए दिशा-निर्देश याचिका पर सुनवाई से इनकार

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को देश में जनसंख्या विस्फोट को नियंत्रित करने के लिए दिशा निर्देशों की मांग वाली याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया और कहा कि वह इस मुद्दे को नहीं छूएगा, क्योंकि यह सरकार का काम है. जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस अभय एस ओका की बेंच ने याचिकाकर्ता अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय से सवाल किया कि क्या अब कोर्ट इस पर फैसला करेगा? पीठ ने उनसे कहा कि कुछ समझदारी होनी चाहिए.

Updated on: 18 Nov 2022, 07:34 PM

नई दिल्ली:

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को देश में जनसंख्या विस्फोट को नियंत्रित करने के लिए दिशा निर्देशों की मांग वाली याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया और कहा कि वह इस मुद्दे को नहीं छूएगा, क्योंकि यह सरकार का काम है. जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस अभय एस ओका की बेंच ने याचिकाकर्ता अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय से सवाल किया कि क्या अब कोर्ट इस पर फैसला करेगा? पीठ ने उनसे कहा कि कुछ समझदारी होनी चाहिए.

उपाध्याय ने तर्क दिया कि भारत के पास दुनिया की केवल 2 प्रतिशत भूमि है, इसकी जनसंख्या का 20 प्रतिशत है. पीठ ने टिप्पणी की कि याचिका अदालत के दायरे से बाहर है और सरकार को इस पर विचार करना चाहिए. उपाध्याय दो बच्चों के नियम को अनिवार्य करने की मांग कर रहे थे, पीठ ने कहा कि विधायिका को यह करने दें, यह अदालत का काम नहीं है. पीठ ने कहा- विधि आयोग इस बारे में क्या कर सकता है? यह एक सामाजिक मुद्दा है और सरकार को इसे ध्यान में रखना चाहिए.

पीठ ने उपाध्याय और अन्य द्वारा दायर याचिकाओं में की गई प्रार्थनाओं पर कहा: आपने रविवार को राष्ट्रीय जनसंख्या दिवस घोषित करने के लिए तमाम प्रार्थनाएं की हैं. कानून आयोग इन सब में कैसे पड़ सकता है. क्या यह विधि आयोग का काम है?

उपाध्याय ने कहा कि मामला गंभीर महत्व का है और जनसंख्या वृद्धि से संबंधित आंकड़ों की ओर इशारा किया. लेकिन, पीठ ने कहा- हम इस मुद्दे को नहीं छूएंगे. यह सरकार का काम है. केंद्र के वकील ने कहा कि जनसंख्या में वृद्धि को नियंत्रित करने के लिए सरकार अपनी क्षमताओं के अनुसार सब कुछ कर रही है. शीर्ष अदालत ने कहा कि वह याचिका पर विचार करने की इच्छुक नहीं है और उपाध्याय ने इसे वापस ले लिया.

उपाध्याय द्वारा दायर याचिका में संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 19 और 21 के तहत गारंटीकृत मूल अधिकारों को सुरक्षित करने के लिए जनसंख्या विस्फोट को नियंत्रित करने के लिए केंद्र से निर्देश मांगा. याचिका में 3 सितंबर, 2019 के हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती दी थी जिसमें कहा गया था कि कानून बनाना संसद और राज्य विधानसभाओं का काम है न कि अदालत का. याचिका में कहा गया है कि हाई कोर्ट इसे समझने में विफल रहा कि जनसंख्या नियंत्रण के बिना स्वच्छ हवा का अधिकार, पीने के पानी का अधिकार, स्वास्थ्य का अधिकार, शांतिपूर्ण नींद का अधिकार, आश्रय का अधिकार, आजीविका का अधिकार और संविधान के अनुच्छेद 21 और 21ए के तहत शिक्षा के अधिकार की गारंटी नहीं दी जा सकती.

याचिका में की गई प्रार्थनाओं में से एक ने कहा- विकल्प के रूप में, भारत के विधि आयोग को निर्देशित करें कि वह विकसित देशों के जनसंख्या नियंत्रण कानूनों और जनसंख्या नियंत्रण नीतियों की जांच करे और मौलिक अधिकारों को सुरक्षित करने के लिए जनसंख्या नियंत्रण उपायों का सुझाव दें..