सर्वोच्च न्यायालय ने कोविड-19 से राहत की स्थिति को ध्यान में रखते हुए गुरुवार को कहा कि वह अपने 27 अप्रैल के उस आदेश को वापस ले लेगा, जिसमें मामले दायर करने की समय सीमा 1 अक्टूबर से बढ़ने की बात कही गई थी।
मुख्य न्यायाधीश एन.वी. रमना की अध्यक्षता वाली और जस्टिस एल. नागेश्वर राव और सूर्यकांत की पीठ ने कहा कि सीमा अवधि का स्वत: विस्तार 1 अक्टूबर को वापस ले लिया जाएगा और उसके बाद अदालतों में मामले दर्ज किए जाने की 90 दिनों की सामान्य सीमा अवधि बहाल की जाएगी।
शीर्ष अदालत ने 27 अप्रैल को दूसरी कोविड लहर को ध्यान में रखते हुए, चुनाव याचिकाओं सहित याचिका दायर करने के लिए वैधानिक अवधि में ढील दी थी। गुरुवार को पीठ ने आदेश सुरक्षित रखते हुए कहा, हम आदेश पारित करेंगे।
अटॉर्नी जनरल के.के. वेणुगोपाल ने पीठ के समक्ष प्रस्तुत किया कि कोविड की स्थिति में सुधार हुआ है और वर्तमान में, देश में कोई नियंत्रण क्षेत्र नहीं है, और सीमा अवधि को शिथिल करने वाले आदेश को वापस लिया जा सकता है। उन्होंने कहा, अगर केरल में या किसी अन्य स्थान पर कोई नियंत्रण क्षेत्र हैं, तो वे अदालत का दरवाजा खटखटा सकते हैं।
उनकी दलील से सहमत होते हुए प्रधान न्यायाधीश ने कहा, मुझे लगता है कि हम आदेश को उठा सकते हैं।
मामले में एक वकील ने तर्क दिया कि सीमा अवधि को साल के अंत तक बढ़ाया जाए, क्योंकि तीसरी कोविड लहर की आशंका थी। इस सबमिशन को निराशावादी बताते हुए बेंच ने चुटकी ली, कृपया तीसरी लहर को आमंत्रित न करें।
चुनाव आयोग का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह ने सुझाव दिया कि चुनाव याचिका दायर करने के लिए 90 दिनों के बजाय 45 दिनों की सीमा अवधि दी जा सकती है। उन्होंने कहा कि वैधानिक अवधि 1 अक्टूबर के बजाय अभी से शुरू होनी चाहिए।
एजी ने कहा कि चुनाव निकाय के लिए सीमा अवधि पर एक अपवाद बनाया जा सकता है।
चुनाव आयोग ने हालांकि दावा किया कि छह राज्यों असम, केरल, दिल्ली, पुडुचेरी, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल के चुनावों में इस्तेमाल की गई ईवीएम और वीवीपीएटी मशीनें फिलहाल अटकी हुई हैं और भविष्य के चुनावों के लिए इस्तेमाल नहीं की जा सकतीं।
आयोग ने तर्क दिया है कि सीमा अवधि बढ़ाने संबंधी शीर्ष अदालत के निर्देश ने ऐसी स्थिति पैदा कर दी है, जिससे वह आगामी चुनावों में ईवीएम और वीवीपैट मशीनों का फिर से उपयोग नहीं कर सकता।
आयोग ने यह भी कहा कि ये मशीनें अप्रयुक्त पड़ी हैं, क्योंकि उन्हें सबूत के रूप में संरक्षित किया जाना है। इससे संबंधित याचिकाएं यदि तय सीमा अवधि के बाद आती हैं, तो मुश्किल हो जाएगी।
पीठ ने कहा कि यह भी हो सकता है कि अगर याचिकाकर्ता को अभी 90 दिनों का लाभ मिलता है, तो इसका परिणाम भविष्य में मुकदमेबाजी के रूप में आ सकता है।
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Source : IANS