सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को पटना हाई कोर्ट के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें बिजनेस मैन सुब्रत रॉय सहारा को अदालत में आने का आदेश दिया गया था और निवेशकों को पैसा लौटाने की योजना भी मांगी थी।
जस्टिस ए.एम. खानविलकर और जे.बी. पारदीवाला ने कहा कि हाई कोर्ट को मामलों को तय करने में सावधानी बरतनी चाहिए और असंबंधित मामलों पर फैसला नहीं करना चाहिए। यहां, हाई कोर्ट ने अग्रिम जमानत को लंबित रखा और थर्ड पार्टी (अदालत के सामने पेश होने के लिए) को नोटिस जारी कर दिया.. इसकी इजाजत नहीं है। हाई कोर्ट ने अपने अधिकार क्षेत्र को पार किया है..
शीर्ष अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि हाई कोर्ट को अग्रिम जमानत याचिका के मामले में रिकवरी की कार्यवाही नहीं करनी चाहिए थी।
पीठ ने कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि जांच संबंधित आवेदन तक सीमित होनी चाहिए, जो अदालत के सामने आई है और शिकायत / प्राथमिकी के दायरे से परे थर्ड पार्टी से संबंधित मामलों की जांच करने का कोई प्रयास नहीं किया जाना चाहिए।
इस मामले की सुनवाई के दौरान जस्टिस खानविलकर ने कहा, एक जज के तौर पर अपने 22 साल के अनुभव से मैं कह सकता हूं कि यह आदेश अधिकार क्षेत्र से बाहर चला गया है। यह कोई जनहित याचिका नहीं थी जिस पर हाईकोर्ट सुनवाई कर रहा था। अग्रिम जमानत के लिए धारा 438 की कार्यवाही (दंड प्रक्रिया संहिता के तहत) थी।
न्यायमूर्ति पारदीवाला ने आश्चर्य जताया कि हाई कोर्ट ने सुब्रत रॉय की उपस्थिति का आदेश कैसे पारित किया, जबकि वह अदालत द्वारा सुने गए अग्रिम जमानत मामले में आरोपी नहीं थे।
पीठ ने आगे टिप्पणी की कि यदि कोई सत्र न्यायालय ऐसा आदेश पारित करता तो हाई कोर्ट उसको निरस्त कर देता। पीठ ने कहा कि उच्च न्यायालय को रॉय की उपस्थिति पर जोर नहीं देना चाहिए था।
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Source : IANS