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तीन तलाक पर सुप्रीम कोर्ट का जवाब- 'क्या महिलाओं को तीन तलाक को ना कहने का अधिकार दिया जा सकता है'

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) से पूछा कि क्या महिलाओं को निकाह के लिए अपनी सहमति देने से पहले यह अधिकार दिया जा सकता है कि तीन तलाक से शादी तोड़ने को वह नकार दे।

Updated on: 17 May 2017, 03:15 PM

नई दिल्ली:

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) से पूछा कि क्या महिलाओं को निकाह के लिए अपनी सहमति देने से पहले यह अधिकार दिया जा सकता है कि तीन तलाक से शादी तोड़ने को वह नकार दे।

प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति जगदीश सिंह केहर की अध्यक्षता वाली सर्वोच्च न्यायालय की संविधान पीठ ने अनुशंसा की कि निकाहनामे में यह शर्त जोड़ी जा सकती है कि शौहर तीन तलाक देकर शादी नहीं तोड़ सकता।

पीठ ने एआईएमपीएलबी से पूछा कि क्या यह संभव है और क्या काजी उनकी अनुशंसा पर अमल करेंगे?

प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि आप इस विकल्प को निकाहनामा में शामिल कर सकते हैं और महिलाओं को निकाह के लिए सहमति देने से पहले तीन तलाक को नामंजूर करने का अधिकार दे सकते हैं।

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इस पर वरिष्ठ अधिवक्ता यूसुफ हातिम मुछल ने कहा कि काजी एआईएमपीएलबी की सलाह मानने के लिए बाध्य नहीं हैं।

हालांकि, मुछल ने हाल ही में लखनऊ में हुए एआईएमपीएलबी के सम्मेलन में पारित एक प्रस्ताव का जिक्र किया, जिसमें बोर्ड ने समुदाय से तत्काल तीन तलाक से अपनी शादी खत्म करने वाले पुरुषों का बहिष्कार करने को कहा।

यह सम्मेलन 14 अप्रैल, 2017 को हुआ था। अधिवक्ता ने कहा कि वे अदालत की अनुशंसा पर विचार करेंगे।

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