दलित, मुस्लिमों, पिछड़ों को एक मंच पर लाने की कवायद में जुटा भागीदारी संकल्प मोर्चा
दलित, मुस्लिमों, पिछड़ों को एक मंच पर लाने की कवायद में जुटा भागीदारी संकल्प मोर्चा
लखनऊ:
उत्तर प्रदेश में होंने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर छोटे सियासी दल अपनी जमीन तलाशने की मुहिम में जुट गये हैं। इसी के तहत भागीदारी संकल्प मोर्चा को लेकर आगे बढ़ रहे ओमप्रकाश राजभर ने फिलहाल एआईएमआईएम के मुखिया असदुद्दीन ओवैसी के साथ आजाद समाज पार्टी के चीफ चंद्रशेखर से मुलाकात की और आगामी रणनीति पर मंथन किया। राजनीतिक हलकों में इसे दलित, पिछड़े व मुस्लिम वोटरों को एक मंच पर लाने की कवायद बताया जा रहा है।दरअसल गठजोड़ की चर्चा तब बल मिल गया , जब ओवैसी ने अपने ट्वीटर हैंडल से ओमप्रकाश राजभर और चन्द्रशेखर रावण की फोटो शेयर कर दी, इसके बाद यूपी की सियासत में कई प्रकार की अटकलें लगायी जाने लगी। यह भी कयास लगाए जा रहे हैं कि ओम प्रकाश राजभर के नेतृत्व में बने भागीदारी संकल्प मोर्चा में चन्द्रशेखर की आजाद समाज पार्टी भी शामिल हो सकती है। ओवैसी की पार्टी पहले से इसका हिस्सा है।
तरह तरह की अटकलें लगायी जा रहा कहा जा रहा है कि अगर ये तीनों दल एक साथ आते हैं तो विधानसभा चुनाव में कई पार्टियों को अपनी रणनीति बदलनी पड़ सकती है। यादव, मुस्लिम व पिछड़े वोट बैंक के सहारे यूपी की सत्ता का ख्वाब देख रहे अखिलेश के गठबंधन को भी यह प्रभावित कर सकता है। चन्द्रशेखर की पार्टी पहले ही बसपा के बेस वोटरों पर अपनी निगाहें गड़ाए बैठा है।
एआईएमआईएम के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने कहा, तमाम लोग मुस्लिम मुद्दे पर खमोश क्यों है। 6 दिसंबर के बारे में कोई नहीं बोलता है। मुजफ्फरनगर के दंगे में 50 हजार लोग बेघर हुए उनको न्याय नहीं मिला है। उस समय किसकी सरकार थी। योगी सरकार ने आते ही 70 लोगों के केस हटा दिए है। यूपी के मुस्लिम को राजनीतिक रूप मजबूत करना जरूरी है। अखिलेश सत्ता में आने से पहले मुस्लिम यादव (एम-वाई) की बात करते हैं। जब सत्ता में आते हैं तो वाई-वाई करते है।
सुभासपा के अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर ने कहा, हमारे पास तीन विकल्प हैं सपा, बसपा व कांग्रेस। सात सितंबर के बाद हम अभियान चलाएंगे, इसके बाद तय करेंगे कि हम किसके साथ चुनाव में जाएंगे। भाजपा के साथ बिल्कुल नहीं जाएंगे।
आजाद समाज पार्टी के संस्थापक चन्द्रशेखर ने कहा, उनकी पार्टी 2022 में एक बड़ी पार्टी बनकर उभरेगी। यह तो समय बताएगा कि किसका वोट कटेगा, किसका बंटेगा।
राजनीतिक विश्लेषक सिद्धार्थ कलहंस कहते हैं, तीनों लोगो को अलग-अलग होने पर अपनी ताकत का अंदाजा हो गया। उनको लगने लगा कि साथ रहने पर बारगैनिंग पावर मिलेगी और पार्टियों में तवज्जों भी मिलेगा। ओवैसी, रावण भाजपा में नहीं जा सकते है। अखिलेश के यहां अब गुंजाइश नहीं बची है। कांग्रेस के साथ उनका विकल्प बचा है। कांग्रेस भी ओवैसी को नहीं लेना चाहेंगे। अब यह लोग ओवैसी को कैसे अडजस्ट करेंगे। इस पर विचार हो रही है, क्योंकि कई मौके पर राजभर कांग्रेस की तारीफ कर चुके है।
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