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साक्ष्यों के अभाव में गुनहगारों को नहीं मिल पाई सजा: समझौता मामले में विशेष अदालत

इस मामले में चारों आरोपियों - स्वामी असीमानंद, लोकेश शर्मा, कमल चौहान और राजिंदर चौधरी को अदालत ने 20 मार्च को बरी कर दिया था.

Updated on: 28 Mar 2019, 06:22 PM

नई दिल्ली:

समझौता एक्सप्रेस बम धमाका मामले में स्वामी असीमानंद और तीन अन्य आरोपियों को बरी करने वाली एक विशेष अदालत ने यहां कहा कि विश्वसनीय और स्वीकार्य साक्ष्य के अभाव की वजह से, हिंसा के इस नृशंस कृत्य में किसी गुनहगार को सजा नहीं मिल पाई. इस मामले में चारों आरोपियों - स्वामी असीमानंद, लोकेश शर्मा, कमल चौहान और राजिंदर चौधरी को अदालत ने 20 मार्च को बरी कर दिया था. एनआईए अदालत के न्यायाधीश जगदीप सिंह ने अपने फैसले में कहा, “मुझे गहरे दर्द और पीड़ा के साथ फैसले का समापन करना पड़ रहा है क्योंकि विश्वसनीय और स्वीकार्य साक्ष्यों के अभाव की वजह से हिंसा के इस नृशंस कृत्य में किसी को गुनहगार नहीं ठहराया जा सका. अभियोजन के साक्ष्यों में निरंतरता का अभाव था और आतंकवाद का मामला अनसुलझा रह गया.”

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भारत और पाकिस्तान के बीच चलने वाली समझौता एक्सप्रेस में 18 फरवरी 2007 को हरियाणा के पानीपत के पास धमाका हुआ. उस वक्त रेलगाड़ी अटारी जा रही थी जो भारत की तरफ का आखिरी स्टेशन है. इस बम विस्फोट में 68 लोगों की मौत हो गई थी. न्यायाधीश ने कहा कि आतंकवाद का कोई महजब नहीं होता क्योंकि दुनिया में कोई भी मजहब हिंसा का संदेश नहीं देता.

उन्होंने 28 मार्च को सार्वजनिक किये गए विस्तृत फैसले में कहा है, “अदालत को लोकप्रिय या प्रभावी सार्वजनिक धारणा अथवा राजनीतिक भाषणों के तहत आगे नहीं बढ़ना चाहिए और अंतत: उसे मौजूदा साक्ष्यों को तवज्जो देते हुए प्रासंगिक वैधानिक प्रावधानों और इसके साथ तय कानूनों के आधार पर अंतिम निष्कर्ष पर पहुंचना चाहिए.”

उन्होंने कहा, “चूंकि अदालती फैसले कानून के मुताबिक स्वीकार्य साक्ष्यों पर आधारित होते हैं, इसलिए ऐसे में यह दर्द और बढ़ जाता है जब नृशंस अपराध के साजिशकर्ताओं की पहचान नहीं होती और वे सजा नहीं पाते.” न्यायाधीश ने कहा कि, “संदेह चाहे कितना भी गहरा हो, साक्ष्य की जगह नहीं ले सकता.”

कौन हैं असीमानंद

असीमानंद का जन्म पश्चिम बंगाल के हुगली जिले में हुआ था उनके पिता देश के स्वतंत्रता सेनानी रह चुके थे. असीमानंद अपने 6 भाई-बहनों में से एक थे. छात्र जीवन में ही असीमानंद राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ यानि की आरएसएस से जुड़ गए थे.

फिजिक्स में स्नातक करने के बाद असीमानंद साल 1977 में आरएसएस के फुल टाइम प्रचारक बन गए थे. असीमानंद को ये नाम उनके गुरु स्वामी परमानंद ने दिया था. असीमानंद 1988 तक अपने गुरु के साथ बर्धवान में ही रहते थे .

उसके बाद असीमानंद अंडमान निकोबार में चल रहे वनवासी कल्याण आश्रम की देख रेख के लिए वहां चले गए जहां उन्होंने एक हनुमान मंदिर की भी स्थापना की थी. साल 1993 में अंडमान निकोबार से लौटकर असीमानंद गुजरात पहुंच गए जहां वो स्थानीय आदिवासियों के कल्याण के लिए काम करने लगे और वहीं पर वो रामायण की सबरी की कहानियों से प्रेरित होकर सबरी मंदिर बनाया.

2007 में राजस्थान के अजमेर शरीफ में हुए ब्लास्ट केस में जब राजस्थान एटीएस ने देंवेंद्र गुप्ता नाम के शख्स को गिरफ्तार कर उससे पूछताछ की तो उसने एटीएस को बताया कि इसके लिए उसे असीमानंद और सुनील जोशी नाम के शख्स ने अजमेर शरीफ और हैदराबाद के मक्का मस्जिद में ब्लास्ट करने के लिए उसपर दबाव डाला था.

उसी वक्त राजस्थान एटीएस के रडार पर आए असीमानंद को 19 नवंबर 2010 को सीबीआई ने उसके हरिद्वार आश्रम से, अजमेर शरीफ, मक्का मस्जिद और समझौता एक्सप्रेस में ब्लास्ट में शामिल होने के आरोप में गिरफ्तार किया था. असीमानंद पर मालेगांव ब्लास्ट में भी शामिल होने के आरोप हैं.