महाराष्ट्र के पालघर जिले में रविवार को भीड़ ने दो संतों और उनके ड्रावरों की पीट-पीटकर हत्या कर दी थी. दोनों साधु जूना अखाड़े के थे. इस मामले में 101 लोगों को पुलिस ने हिरासत में लिया है. इसमें संत कल्पवृक्ष गिरी भदोही के थे, जिन्होंने 10 वर्ष की उम्र में घर बार छोड़ गए थे.
लगभग छह दशक पहले घर-बार छोड़कर सन्यासी बने संत कल्पवृक्ष गिरी की हत्या की खबर मिलने के बाद परिजनों में शोक व्याप्त है. लॉकडाउम के कारण कोई महाराष्ट्र नहीं जा पाया. लेकिन, पाघर में रहने वाले उनके भाई दिनेश चंद्र ने पोस्टमॉर्टम के बाद उनके शव को नाशिक के त्र्यंबकेश्वर नाथ में समाधि दिलाई.
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ज्ञानपुर तहसील क्षेत्र के वेदपुर गांव निवासी चिंतामणि तिवारी के छह बेटों में चौथे नंबर के पुत्र संत कल्पवृक्ष बचपन से ही वैरागी प्रवृत्ति के थे. उन्होंने प्राथमिक विद्यालय भुसौला में कक्षा तीन तक पढ़ाई की. उसी समय उनका मन घर-बार छोड़ने कहा हुआ. इसके बाद वह महाराष्ट्र चले गए.
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बचपन में उनका नाम कृष्णचंद्र तिवारी था. मुंबई के वनदेवी मंदिर में गुरु ओंकारेश्वर नाथ का सानिध्य प्राप्त कर संत जीवन में रम गए. घरवालों ने कई बार उनसे घर आने के लिए कहा, लेकिन वह नहीं लौटे. यहां गांव में उनके छोटे भाई राकेश चंद्र तिवारी ने बताया कि चार भाई मुंबई में ही रहते हैं. एक भाई दिनेश चंद्र ने संत के शव का अंतिम संस्कार कराया.
65 वर्षीय संत की इतने लंबे समय बाद इस तरह से मौत की सूचना मिलने के बाद घरवाले स्तब्ध हैं. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक मंगलवार को उनके घर सांत्वना देने वालों का मजमा लगा था. घरवालों की विवशता यह है कि लॉकडाउन के कारण कोई पहुंच नहीं पाया.
Source : News Nation Bureau