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साहित्य अकादमी पुरस्कार समारोह में भारतीय भाषाओं के 24 रचनाकारों को साहित्य अकादमी पुरस्कार से नावाजा गया।
इन रचनाकारों उनकी उत्कृष्ट रचनाओं के लिये 1-1 लाख रुपये दिये गए।
अकादमी के अध्यक्ष विश्वनाथ तिवारी ने कहा कि उन्हें 'पुरस्कार' शब्द पसंद नहीं है बल्कि वो इसे 'सम्मान' कहना ज्यादा पसंद करते हैं। उन्होंने कहा कि पुरसस्कार शब्द से उन्हें ऐसा लगता है जैसे किसी की रचना को पैसों से तौला जा रहा है। जबकि लेखकों के लिये पैसा कोई मायने नहीं रखता है।
उन्होंने कहा, "मध्यकाल में राजा इंद्रजीत सिंह ने आचार्य केशवदास मिश्र को 20 गांवों की जागीर दी थी। अगर उस समय की बात की जाए तो आज के पुरस्कार कुछ भी नहीं है।... इसलिये मैं कहता हूं कि लेखक पुरस्कार से परे है। हम सिर्फ ऐसे कार्यक्रमों से उनका सम्मान कर सकते हैं।"
24 भारतीय भाषाओं के लेखकों को सम्मानित किया गया है। जिसमें अंग्रेज़ी, हिंदी, बंगाली, उर्दू, संस्कृत, बोडो, कश्मीरी, मणिपुरी, और नेपाली भाषाएँ शामिल हैं।
तिवारी ने कहा कि साहित्य किसी एक स्थान पर सीमित नहीं होता है और लेखक कुद से अलग चीज़ों को देखता है और फिर लिखता है। लेखक सभी को समानता से देखता है। उसके लिये क्षेत्र, समुदाय, जाति जैसी बातें उसके जेहन में नहीं आती हैं।
उन्होंने अकादमी की आलोचना करने वालों को भी जवाब दिया और कहा कि जो लोग ये कहते हैं कि अकादमी में मध्यम दर्जे के लोग आ गए हैं। उन्हें ये समझना चाहिये कि प्रतिभा भगवान की दी हुई चीज़ है, जो लाखों में से किसी एक को मिलती है। जहां तक कि अपनी प्रतिभा को बेहतर करने का सवाल है उसपर आप मेहनत करते हैं और फिर उसे बेहतर कर पाते हैं।
जिन लोगों को पुरस्कार मिला है उसमें जेरी पिंटो, नसेरा शर्मा, प्रभा वर्मा, कमल वोरा और पारोमिता सत्पथि के नाम शामिल हैं।
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Source : News Nation Bureau